ब्लाग दुनिया में एक खास बात पर मैने गौर किया है। ज्यादातर ब्लागरों ने अपने प्रोफाइल पेज पर खुद के बारे में बहुत संक्षिप्त सी जानकारी दे रखी है। इसे देखते हुए मैं सफर पर एक पहल कर रहा हूं। शब्दों के सफर के हम जितने भी नियमित सहयात्री हैं, आइये , जानते हैं कुछ अलग सा एक दूसरे के बारे में। अब तक इस श्रंखला में आप अनिताकुमार, विमल वर्मा , लावण्या शाह, काकेश ,मीनाक्षी धन्वन्तरि ,शिवकुमार मिश्र , अफ़लातून ,बेजी, अरुण अरोरा और हर्षवर्धन त्रिपाठी को पढ़ चुके हैं। बकलमखुद के ग्यारहवें पड़ाव और सत्तावनवें सोपान पर मिलते हैं खुद को अलौकिक आत्मा माननेवाले प्रभाकर गोपालपुरिया से। इनका बकलमखुद पेश करते हुए हमें विशेष प्रसन्नता है क्योंकि अब तक अलौकिक स्मृतियों के साथ कोई ब्लागर साथी यहां अवतरित नहीं हुआ है। बहरहाल, प्रभाकर उप्र के देवरिया जिले के गोपालपुर के बाशिंदे हैं । मस्तमौला हैं और आईआईटी मुंबई में भाषाक्षेत्र में विशेष शोधकार्य कर रहे हैं। उनके तीन ब्लाग खास हैं भोजपुर नगरिया, प्रभाकर गोपालपुरिया और चलें गांव की ओर । तो जानते हैं दिलचस्प अंदाज़ में लिखी गोपालपुरिया की अनकही ।
ब्राह्मण के नाम पर कलंक
आइए, आपलोगों को अपनी बेवकूफी की एक और घटना सुनाकर बेवकूफाधिराज उपाधि भी अपने नाम कर लेता हूँ-
मैं उस समय किसान उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, कंचनपुर में कक्षा 6 में पढ़ता था। एकदिन आठवीं घंटी में मौलबी साहब कृषि पढ़ा रहे थे। जब वे एक पाठ पढ़ा चुके तो मनोरंजन के लिए बच्चों से कविताएँ सुनने लगे। जब कई छात्रों ने कविताएँ सुना दी तो उसके बाद भैसाडाबर नामक गाँव का एक मुस्लिम लड़का (नाम याद नहीं आ रहा है शायद शहनवाज था) खड़ा होकर एक शायरी सुनाया। आप भी आनन्द लें- चलती हुई जहाज को कोई रोक नहीं सकता, मुसलमान के बच्चे को कोई ठोक नहीं सकता।
जी,हाँ। इस शायरी का मजा तो मैंने भी लिया पर दूसरे अंदाज में। मैंने आव देखा न ताव और उस लड़के के पास पहुँचकर उसकी गाल पर एक चाटा रसीद कर दिया। वे महानुभाव तो रोने लगे पर मेरा क्या हुआ? वही जो होना था, मैं सीना तानकर चंद्रशेखर आजाद की तरह मौलबी साहब की छड़ी का आनन्द लेता रहा। ज्यादे नहीं, बस चार डंडे।
ब्लागरी की शुरुआत
इस लत का जिक्र करने से पहले मैं आप लोगों को बता दूँ कि मैं बचपन से ही कुछ न कुछ लिखा करता था। नोटबुक में नहीं तो हाथ पर या जमीन पर। मेरी ब्राह्मण कविता सुनने के बाद मेरे ही गाँव के श्री नर्वदेश्वर पाण्डेय (रिस्ते में मेरे चाचा) ने कहा था कि बाबू, तुम ब्राह्मण के नाम पर कलंक हो। मैं 12हवीं में पढ़ते समय ही मंथरा काव्य भी लिख दिया था। आई.आई.टी. में आने के बाद, एक दिन आशीष नाम के एक लड़के से मुझे पता चला कि मैं ब्लाग बनाकर अपनी रचनाएँ नेट पर प्रेषित कर सकता हूँ। फिर क्या था, आनन-फानन में मैंने "प्रभाकरगोपालपुरी" नाम से एक ब्लाग बनाया और अपनी कुछ रचनाएँ भी प्रेषित कर दी।मे जीतू भाई की कृपा से नारद मुनि ने मेरे ब्लाग का प्रचार-प्रसार शुरु किया पर कुछ ब्लाग संबंधी समस्याओं के कारण मुझे एकदिन इस ब्लाग को डिलिट करना पड़ा। फिर मैंने "प्रभाकरगोपालपुरिया" नाम से चिट्ठा बनाया और अपनी समस्या जीतू भाई को लिख भेजी। जीतू भाई ने कोई बात न कहकर "प्रभाकर गोपालपुरिया" के प्रचार-प्रसार का जिम्मा नारद को सौंप दिए।
टिप्पणियों की शक्ति
आजकल जैसे श्री, श्री, श्री 1008 श्री उड़नतश्तरीजी महाराज अपनी उड़नतश्तरी पर विराजमान
होकर हर चिट्ठे का दरवाजा खटखटा जाते हैं वैसे ही उस समय श्री अनुनादजी महाराज का नाद हर जगह गुंजायमान होता था। समय-समय पर आप अग्रजों, विद्वानों का टिप्पणीरुपी आशीर्वाद और स्नेह मिलता रहा और मैं लिखता रहा। धैर्यपूर्वक एक अवतारी पुरुष की आत्मकथा सुनने के लिए आप सबको बहुत-बहुत धन्यवाद एवं नमस्कार। [समाप्त]
[इंटरनेट कनेक्शन की शिफ्टिंग के चलते टेलीफोन विभाग ने हमें तीन दिनों की गैरहाजिरी के लिए मजबूर किया। आप फिर भी सफर में बने रहे इसका शुक्रिया]
14 कमेंट्स:
अवतारी पुरुष की आत्मकथा सुन कर भावविह्ल हो उठे. :)
बड़ा मजेदार रहा प्रभाकर भाई को जानना.
बहुत शुभकामनाऐं.
Aapko pahali bar padha par aapki sdgi bahut pasand aai .peeche jakar teeno bhag padhen.
वाह। मौलवी साहब की सण्टी ने सेकुलर बना दिया होगा!
भैंसा डाबर वाले की बेवकूफी को बड़ी जल्दी में निपटाया। हमारी टीम होती तो तसल्ली से, कायदे से निपटाती। मौलवी साहब की संटी भी नहीं होती पास में।
अजित भाई,
सादर नमस्कार,
इन पंक्तियों में कुछ खटक रहा है--------ज्यादे नहीं, बस चार डंडे। इस लत का जिक्र करने से पहले मैं आप लोगों को बता दूँ कि मैं बचपन से ही कुछ न कुछ लिखा करता था।---
चार डंडे के बाद अचानक इस लत का जिक्र.... लगता है बीच में कुछ छूट गया है। कृपा करके देख लीजिएगा। सादर धन्यवाद।
प्रभाकर जी,
आपको शुभकामनाएँ
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डा.चन्द्रकुमार जैन
kyaa baat hai..
aapne to us bachchhe ko bhi thok diya, jo is gumaan me tha ki use koi thok nahi sakta hai.. :)
bahut badhiya..
वाह जी वाह ठोकू महाराज की जय हो :)
उस बेचारे ने सामान्य जनता के लिए कहा था... उसे क्या पता था कि यहाँ अवतारी पुरूष बैठे हुए हैं :-)
बहुत दिलचस्प रहा आप के साथ ये सफर....बहुत दिनों तक आप की बातें याद आती रहेंगी...
नीरज
अलौकिक आत्मा के आलोक से प्रभावित हुए बिना भला कोई कैसे रह सकता है। अपने जीवन के रोचक किस्सों को इतनी बेबाकी से सुनाने के लिये प्रभाकर भाई को धन्यवाद।
चलती हुई जहाज को कोई रोक नहीं सकता,
मुसलमान के बच्चे को कोई ठोक नहीं सकता।
भई मेरा एक दोस्त हे पाकिस्तान से मेने उसे यह शेर सुनाया, ओर वो बहुत हसां, फ़िर आप के करारे थपड की बात बताई, तो दोस्त बोला बस एक ही
धन्यवाद, बहुत मजे दार यादो के लिये
जीवनगाथा को पढ़ते पढ़ते साहित्य कुंज पर मंथरा का काव्य भी जल्दी से पढ़ आए हालाँकि 200 से भी अधिक काव्यांश इत्मीनान से फिर पढ़ेगे... आपको हमारी ढेरो शुभकामनाएँ...
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