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रि हाइश के लिए मनुष्य सबसे पहले किसी स्थान का चयन करता है। वहां कोई आश्रय बनाता है जिसमें मुख्यतः निर्माण के नाम पर चाहरदीवारी और छप्पर ही खास होता है। सभ्यता के विकास के साथ आश्रयों की निर्माण तकनीक और बसाहट में परिष्कार हुआ। सुव्यवस्थित आशियाने बनें और उनके समूह को धीरे-धीरे बस्ती का रूप मिलता गया। किसी सामूहिक रिहाइश के लिए आज बस्ती, पुर, कटरा, कस्बा, मोहल्ला, नगर, किला, मण्डी, सराय, शहर, गंज, सिटी और शहर जैसे अनेक नाम मिलते हैं। दिलचस्प यह कि ये सभी नाम किसी वक्त सिर्फ छप्पर और चहादीवारी से बनी एक आवासीय इकाई भर थे। बाद में सामूहिक बसाहटों के नाम भी इन्हीं से बनते चले गए। भारत में क़स्बा qasba एक आम शब्द है। गांव से कुछ बड़े और नगर से छोटी बसाहट को क़स्बा कहा जाता है। ज़िला या तहसील जैसी कोई प्रशासनिक परिभाषा के दायरे में क़स्बा नहीं आता यह अपने आप में एक ऐसी बसाहट होती है जिसमें नगरोन्मुखी संस्कार होता है। क़स्बा मूलतः सेमिटिक शब्द है और इसकी अर्थवत्ता व्यापक है। इसका अरबी रूप qasbah होता है।
क़स्बा बना है अरबी की क़स्ब qasb धातु से जिसमें काटना, आघात करना, जिबह करना, खोखला करना, पृथक करना, आंत, बांस, वंशी, सरकण्डा, नरकुल, पाईप, पानी का नल, नहर, एक्सल, अक्षदण्ड, आधार स्तम्भ, क़िला, कोठी जैसे अर्थ निहित हैं। इन सभी अर्थों पर गौर करें तो क़स्ब में खोखला, रिक्त या खाली स्थान का भाव उभरता है। खोखलेपन का यही भाव बांसुरी, बांस में विस्तारित हुआ। जानवरों को जिबह करने के बाद उनके आंतरिक अंगों को निकालने के बाद सिर्फ खाल की खोखल ही बचती है जिसमें भूसा भर कर मृत जीवों के वास्तविक मॉडल बनाए जाते थे। पुराने ज़माने में पशुओं की खाल से तम्बू, शामियाने बनाए जाते थे। आश्रय निर्माण की प्राचीन तकनीक पहाड़ी कोटरों को चौड़ा कर, काट छांट कर रहने योग्य बनाने की ही थी। कहने का मतलब यह कि चारों और से घिरे, सुरक्षित रिक्त स्थान का भाव ही कस्ब में मुख्यतः है जो इसे आश्रय से जोड़ता है। यूं काटने, आघात करने जैसे भावों का विस्तार जिबह करने में हुआ। उर्दू का क़साई शब्द इसी मूल से निकला है। क़स्ब से बना क़साब Kasab या क़स्साब Qassab / Kassab जिसका मतलब है पशुओं को जिबह करनेवाला, खाल उतारनेवाला। इस वर्ग के लिए पूर्वी प्रांतों जैसे बिहार, बंगाल में बक्र-कसाब यानी बकरा जिबह करनेवाला शब्द भी है। हिन्दुओं में खटीक या खटिक जाति होती है जो अति पिछड़े और निम्न वर्ग में आती है। मूलतः ये लोग मांस का धंधा करते हैं। बक्र-कसाब की तरह इनके लिए भी हिन्दी शब्दसागर में बकर खटीक शब्द मिलता है। खटीक शब्द संस्कृत के खट्टिकः से बना है। इसमें शिकारी का भाव है। शिकार के लिए आखेट इसी मूल से आ रहा है। हिन्दी में शिकारी को अहेरी कहते हैं जो आखेटकः से बना है और आखेटकः > आखेड़क > आहेड़अ > आहेड़ा > अहेरी के क्रम में रूपांतरित हुआ। क़स्ब धातु में निहित काटने, पृथक करने के भाव की व्याख्या कुछ विद्वान एक किले की संरचना में देखते हैं। उनके मुताबिक क़स्बा यानी किले की ऊंची दीवारे उसे शेष इलाके से काटती हैं, पृथक करती है, इसीलिए गढ़ी या दुर्ग के लिए अरबी में क़स्बा नाम पड़ा। किले की दीवार को भी फ़सील इसलिए कहते हैं क्योंकि यह वीराने और आबादी में फ़ासला बताती है। फ़सील और फ़ासला एक ही मूल से जन्मे हैं। यह भी माना जा सकता है कि क़ला (किला) या मोहल्ला की तरह क़स्बा भी किसी ज़माने में फौजी पड़ाव रहा होगा। गढ़ी या दुर्ग के बाहर भी खेमे लगते होंगे और उन्हें भी कस्बे की अर्थवत्ता मिली होगी। बाद में जब दुर्ग-नगर को नया नाम मिला तब भी इस बस्ती की पहचान कस्बा के रूप में सुरक्षित रही। ठीक वैसे ही जैसे कई शहरों में छावनी, पड़ाव, कैंट जैसी आबादिया मिलती हैं। खेमों से कस्बा का सादृष्य क़स्ब धातु में निहित अर्थ आधार-स्तम्भ या अक्षदण्ड से उभरता है। किसी भी निर्माण के लिए आधारस्तम्भ का होना बहुत ज़रूरी है। तम्बू का आधार एक मुख्य स्तम्भ ही होता है। अरबी स्थापत्य कला में मीनारों का स्थान महत्वपूर्ण है। किसी मीनार के बीचोबीच जिस मुख्य स्तम्भ या पोले पाईप के सहारे सीढ़ियां ऊपर जाती हैं, उसे भी क़स्बा ही कहते हैं। ये सभी संदर्भ तार्किक और प्रामाणिक है। पर्वतीय गुफा को चौड़ा करते हुए भी उसमें आधार-स्तम्भ बनाना आवश्यकत होता था वर्ना छत के ढहने का खतरा था। क़स्बा के जो प्रचलित अर्थ शब्दकोशों में मिलते हैं, जैसे गांव से बड़ी बसाहट, छोटा शहर, बड़ी बस्ती वगैरह, वह दरअसल दुर्ग-नगर वाले अर्थ का विस्तार है। क़स्बा किसी ज़माने में दुर्ग था। उससे भी पहले सिर्फ पहाड़ी आश्रय था। बाद में इसमें दुर्ग-नगर की अर्थवत्ता ग्रहण की क्योंकि यह छोटी आबादी ही होती है। प्रसिद्ध दुर्गों के नाम वाली बस्तियां बाद में उन्हीं के नामों से प्रसिद्ध हो गईं जैसे पठानकोट, सियालकोट, कोट्टायम, कोटा और दुर्ग आदि। मगर ये अब बड़े शहरों में तब्दील हो चुके हैं। जाहिर है कि दुर्ग के भीतर की बसाहट हमेशा सीमित होती है। आबादी का विस्तार परकोटे से बाहर जब होता है तब दुर्ग-नगर क़स्बा के स्थान पर नगर या शहर कहलाता है। क़स्बा का दुर्ग-नगर वाला अर्थ बाद में उन सभी छोटी आबादियों के लिए भी इस्तेमाल होने लगा जहां दुर्ग का अस्तित्व नहीं था। एशिया के कई शहरों में कस्बा नाम की बस्तियां हैं। मध्यप्रदेश के सीहोर में कस्बा बस्ती है। कोलकाता का एक उपनगर क़स्बा ही कहलाता है। अरब में अल-कस्बाह नाम की कई आबादियां है। मलेशिया में जॉर्जकस्बा नाम का एक पर्यटन स्थल है। स्पेन में एक जगह है अल्काज्बा या अल्काज्वा। जाहिर है यह अरबी के अल-कस्बाह का ही रूपांतर है। आज का कस्बा अपनी आबादी के लिए कम और मानसिकता के लिए अधिक जाना जाता है। कस्बे की संकुचित सीमाओं का बयान ही कस्बाई मानसिकता मुहावरे में भी झलक रहा है जिसका अर्थ होता है छोटी, संकुचित या अपरिष्कृत सोच होना।
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16 कमेंट्स:
अच्छा है. शब्दों के अर्थ और उसकी पृष्ठभूमि का बारे में काफी जानकारी मिली.
शानदार ज्ञानवर्धक कड़ी.
अनेक नई जानकारियाँ मिलीं।
क्स्बे के बारे में जानना दिलचस्प है । इतना अर्थ विस्तार - "क़स्बा बना है अरबी की क़स्ब qasb धातु से जिसमें काटना, आघात करना, जिबह करना, खोखला करना, पृथक करना, आंत, बांस, वंशी, सरकण्डा, नरकुल, पाईप, पानी का नल, नहर, एक्सल, अक्षदण्ड, आधार स्तम्भ, क़िला, कोठी जैसे अर्थ निहित हैं।"
"क़स्बा किसी ज़माने में दुर्ग था।"
हमें तो हमारा शहर दुर्ग अपनी बसाहट और प्रकृति मे अभी भी कस्बा ही लगता है । अच्छी जानकारियाँ मिली ..आखेटक से अहेरी तक की यात्रा भी अच्छी लगी और अज्ञेय की कविता " बावरा अहेरी " याद आ गई ।
बहुत रोचक और ज्ञानवर्धक.
बिहार में एक पुराना जगह है. यह पुराने महलों, किलों के साथ साथ आधुनिक ग्रामीण नगरीय क्षेत्र है. कस्बा नाम का यह क्षेत्र अररिया और पूर्णिया शहर के बीच अवस्थित है.
बहुत दिनों बाद खम्मा घण्ी
बहुत जानकारी भी पोस्ट। बहुत से शहरों के नाम के आगे पुर मेर कोट नेर सर लगना उत्सुकता पैदा करता था। फोटो बहुत ही सुन्दर लगा। एकदम कस्बानुमा ।
मूल धातू/अर्थ पता चला, वरना आजतक शब्द इस्तेमाल तो करते थे, लेकिन मूल पता नही था..
बेहद जानकारी पूर्ण लेख। बधाई।
नई और अच्छी जानकारी के लिये धन्यवाद्
यथा नाम तथा गुण अपना पाकिस्तानी मेहमान कसाब उसने तो हमें ही जिबह कर दिया
कसाई के अर्थ में तो कसाब शब्द फेमस हो गया है !
शब्दों का सफर अच्छा लगा
ग्यान वर्धक जानकारी
कस्बे और कसाई को बहुत सही जोडा है।
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11वाँ राष्ट्रीय विज्ञान कथा सम्मेलन।
गूगल की बेवफाई की कोई तो वजह होगी?
आज छोटी ही टिप्पणी करेंगे!
NICE.
कस्बा तो लगता है व्याख्या मे शहर से भी बडा हो गया। अब लगे हाथ शहर का विवरण भी दे दीजियेगा । धन्यवाद्
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