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Friday, November 20, 2009
शहर का सपना और शहर में खेत रहना [आश्रय-23]
खे त का रिश्ता गांव से जुड़ता है मगर शब्द व्युत्पत्ति के रास्ते में शहर और खेत एक दूसरे के पड़ोसी नज़र आते हैं। बड़ी नगरीय बसाहट के लिए आमतौर पर हिन्दी में शहर शब्द का इस्तेमाल ही होता है। हिन्दीभाषियों में अंग्रेजी के सिटी शब्द का यही सबसे पसंदीदा विकल्प है। शहर के अर्थ में नगर शब्द का इस्तेमाल बोलचाल में कम होता है अलबत्ता लेखन में इसका प्रयोग खूब होता है। नगर के विशेषण रूप यानी महानगर का प्रयोग आम ज़बान में होता है। महानगर के अर्थ में शहर का कोई विशेषण रूप नहीं है, मगर इसका प्रयोग नगर, महानगर दोनों अर्थो में होता है। यूं शहर का अर्थ नगर, पुरी, आबादी या बस्ती से है, जो ग्राम से बड़ी हो। शहर हमेशा एक सपना रहा है। गांववालों के लिए तो सपना समझ में आता है पर शहरवालों के लिए भी ताउम्र शहर एक ख्वाब ही बना रहता है। सपनों का शहर मुहावरा चाहे जितनी बार दोहरा लिया जाए, शहर दरअसल सपना नहीं, छलावा है।
शहर इंडो-ईरानी भाषा परिवार का शब्द है और एशियाई भाषाओं में इसका इस्तेमाल खूब होता है। हिन्दी में इसकी आमद फारसी से हुई है। प्राचीन ईरान के निवासी जरथ्रुस्तवादी अग्निपूजक थे। इनकी भाषा अवेस्ता थी जिससे संस्कृत का बहनापा रहा है और इसीलिए इन दोनों भाषाओं में
शहर के जन्म का मूल है क्ष अक्षर जिसमें विस्तार के साथ आघात, क्षेत्र, राज्य जैसे भाव हैं। जंग में मारे जाने के लिए एक मुहावरा खेत रहना भी प्रचलित है जिसका अभिप्राय यही है कि शरीर से प्राणों की मुक्ति जो आत्मा का विस्तार ही है।
काफी समानता भी है। मोटे तौर पर अवेस्ता से संस्कृत की समानता कही जा सकती है, पर मूलतः उसे वैदिकी कहना ठीक होगा। अवेस्ता में अर्यनम-क्षथ्र (arynam kshathta) नाम मिलता है, जिसका अर्थ है आर्यशासित क्षेत्र। इस इलाके से तात्पर्य समूचे मध्यएशिया से था। गौरतलब है, ईरान शब्द आर्याणाम से ही निकला है। अवेस्ता के क्षथ्र का अर्थ हुआ इलाका या राज्य। गौर करें, क्षथ्र संस्कृत के क्षेत्र का ही रूपांतर है जो त्र के स्थान पर थ्र हो जाने से हुआ है। संस्कृत का मित्र अवेस्ता में मिथ्र हो जाता है जिसका अर्थ सूर्य है। ईरानी और फिर फारसी में क्षथ्र का रूप बदला। क्ष व्यंजन से क ध्वनि का लोप हुआ और शेष रहा श। फिर थ्र से त ध्वनि का लोप हुआ और र ध्वनि का वियोजन होने से ह और र ध्वनियां अलग-अलग हो गई। इस तरह क्षथ्र का फारसी रूप हुआ शह्र जो उर्दू में भी शह्र और हिन्दी में शहर बन कर प्रचलित है। स्थान नाम के साथ क्षेत्र शब्द का इस्तेमाल हमारे यहां होता रहा है। खेत इसका ही रूपांतर है जैसे सुरईखेत, छातीखेत, साकिनखेत, रानीखेत। ये सभी स्थान उत्तराखण्ड में आते हैं। हरियाणा के कुरुक्षेत्र में यह अपने मूल स्वरूप में नज़र आ रहा।
शहर की खासियत होती है उसका फैलाव या विस्तार। जरथ्रुस्तवादी (पारसी) अगर अपने देश को आर्याणाम-क्षथ्र कहते थे तो उसमें आर्यों के विशाल क्षेत्र में फैलाव का भाव ही था, जो सिन्धु से लेकर वोल्गा तक विस्तृत था। देवनागरी के क्षः वर्ण में ही विस्तार छुपा है। क्षः (क्षह्) का अर्थ भी क्षेत्र, खेत और किसान ही होता है। संस्कृत के क्षेत्र का अर्थ होता है भूमि, मैदान अथवा स्थान। यह बना है क्षि धातु से जिसमें आघात करना, प्रलय, उथल-पुथल जैसे भावों के साथ शासन करना या राज्य करना जैसे भाव भी हैं। क्षि धातु से ही क्षत, क्षति जैसे शब्द बने है, जिनमें चोट, जख्म, हानि, बर्बादी जैसे भाव शामिल हैं। जंग में मारे जाने के लिए एक मुहावरा खेत रहना भी प्रचलित है जिसका अभिप्राय यही है कि शरीर से प्राणों की मुक्ति। क्षि जिससे बने क्षिति शब्द के मायने व्यापक हैं। क्षिति यानी पृथ्वी, घर आदि। आसमान के अर्थ में क्षितिज में इसका विस्तार समझना मुश्किल नहीं है। यूं इसका अर्थ हुआ, जो क्षिति से जन्मा हो। गौर करें क्षितिज-रेखा पर। पृथ्वी से आसमान जहां मिलते नजर आते हैं। शायद प्राचीन मानव को यहां से आसमान उगता नज़र आया हो!!! यानी प्राचीन मानव ने आसमान को पृथ्वी से उत्पन्न समझा। हिन्दी में यूं तो क्षेत्र से कई शब्द बने हैं, पर कुछ शब्दों का इस्तेमाल खूब होता है। जैसे, क्षेत्रफल यानी किसी इलाके की लंबाई-चौड़ाई का आंकड़ा। क्षेत्रीय का अर्थ खेत संबंधी भी होता था, अब यह सिर्फ इलाकाई या आंचलिक के अर्थ में बरता जाता है। क्षेत्रपाल एक क्षत्रियों का एक सरनेम भी है। क्षेत्राधिकार, वनक्षेत्र, भूक्षेत्र आदि।
क्षह् का अगला रूप खह् होता है। खः में निहित अंतरिक्ष, आकाश, ब्रह्म जैसे भावों और क्ष से बने अक्षर शब्द के अविनाशी, ब्रह्म जैसे अर्थों पर अगर गौर करें, तो देखते हैं मूलतः इनमें खालीपन और विस्तार का ही भाव समाया है, जिसे अंग्रेजी मे स्पेस कहा जाता है। यह अरबी के ख़ला (खाली स्थान, शून्य, अंतरिक्ष), ख़ल्क़ ( संसार, राज्य) जैसे शब्दों में भी साफ हो रहा है। क्षेत्र ने ही खेत का रूप लिया। पृथ्वी की सतह पर जितनी भी खाली जगह है, क्षेत्र कहलाती है। भूमि का वही क्षेत्र खेत कहलाता है, जिसे जोता जा सके। धरती के कठोर सीने को हल की नोक से छील कर मुलायम मिट्टी मे तब्दील करने की प्रक्रिया ही जुताई है। यहां आकर क्षिति शब्द में अंतर्निहित हानि, विनाश अथवा आघात जैसे शब्दों का अर्थ जुताई के संदर्भ में साफ़ होता है। क्षि धातु से ही क्षत, क्षति जैसे शब्द बने है जिनमें चोट, जख्म, हानि , बर्बादी जैसे भाव शामिल हैं। जंग में मारे जाने के लिए एक मुहावरा खेत रहना भी प्रचलित है जिसका अभिप्राय यही है कि शरीर से प्राणों की मुक्ति।
शह्र या शहर के मायने चाहे उर्दू हिन्दी मे सीमित हैं मगर इसके मूल शब्द क्षेत्र की व्यापकता ही शहर में भी है। शहर का अर्थ चान्द्रमास भी होता है और ईरानी कैलेंडर के हर महिने में एक भाव या संकेत है। एक महिना होता है शहरेवर (शह्रेवर) जो 23 अगस्त से 22 सितम्बर के दरमियान आता है। मद्दाह के मुताबिक यह क्वार का महिना हुआ मगर यह कातिक और अगहन के बीच पड़ता है। इसका भाव है राज्य-प्राप्ति की अभिलाषा। शहरेवर शब्द मूलतः अवेस्ता से आया है जहां इसका रूप था क्षथ्र-वैर्य (Kshathra Vairya) जिससे बना शहरेवर (Shahrivar). स्पष्ट है कि शहर यानी राज्य और वैर्य यानी अभिलाषा यानी वर। फारसी में शहर शब्द के साथ कई तरह के विशेषण भी लगते हैं जैसे शहरबंद यानी दुर्गनगरी। शहरबदर यानी जिसे बस्ती से निकालने का फ़रमान हुआ हो। शहरयार यानी शासक, राजा, बादशाह। इसके अलावा शहरी, शहरियत, शहराती जैसे शब्दों की आमद भी इधर से ही हुई है। शहर अपने आप में बस्ती है, पर नगर की तरह इसके आगे भी कुछ संज्ञाएं लगने से कई बस्तियां जानी जाती हैं जैसे बुलंदशहर, अनूपशहर, नवांशहर आदि।
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10 कमेंट्स:
अच्छी जानकारी रही! आभार!
क्षेत्र ,खेत का बारीक सा अंतर आज ही मालुम हुआ . और सबसे दिलचस्प आर्य गंगा से बोलगा तक फैले थे . मुझे तो लगता है आर्य भारत में आये नहीं थे यहाँ से गए थे पुरे विश्व में . यह जो भ्रांती है कभी तो दूर होगी . आर्यों का उदगम तो आर्याव्रत ही होगा
bahut achchi lagi yeh jaankari....
कोई दोस्त है न रकीब है,
तेरा शहर कितना अजीब है...
मैं किसे कहूं, मेरे साथ चल,
यहां हर सिर पे सलीब है...
जय हिंद...
बेशक शहर छलावा है पर यह कितना खूबसूरत है कि हम किसी न किसी आस या प्यास के बहाने इस छलावे के छल को निरंतर झेल रहे हैं।
शहर पर आपकी जानकारी रोचक है.
अपनी एक शे'र पढना चाहूँगा...
तेरे शहर में रात और दिन का कोई पता नहीं चलता
दोस्त, ये कैसी दुनिया है जहाँ दिन में तारे नजर आते हैं
- सुलभ
We have many place names that end with Khet eg Ranikhet,Suraikhet,Chhatikhet, Sakinkhet etc all of them in Uttarakhand.
@बलजीत बासी
आपने बहुत महत्वपूर्ण बात याद दिलाई है जिसका उल्लेख करना मुझसे छूट रहा था। स्थान नाम के साथ क्षेत्र शब्द का इस्तेमाल हमारे यहां होता रहा है। खेत इसका ही रूपांतर है जिसका उल्लेख आपने किया है। कुरुक्षेत्र में यह अपने मूल स्वरूप में नज़र आ रहा है।
आज के शहर भले ही बेदर्द हो गये है लेिकन इसकी उन्पत्ति कितने सुहाने शब्द से हुई है।
खेत रहना शहीद होने के रुप में क्यूं प्रयुक्त होने लगा?
शुक्रिया किरणजी।
अरे, इतने विस्तार से लिखा तब भी आप अगर बात नहीं पकड़ पाई तो यह मेरी लेखन शैली की कमी है।
इसी धातु से क्षत, क्षति जैसे शब्द बने हैं। खेत रहना यानी क्षत होना यानी शरीर का नष्ट होना जैसा भाव इसमें है। क्षत की अर्थवत्ता ही खेत रहना मुहावरे में ढल गई लगती है।
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