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मुंह के भीतर स्वादेन्द्रिय का काम करनेवाला शरीर का महत्वपूर्ण अंग जीभ है। इसे ज़बान भी कहा जाता है। जीभ का रसना नामकरण जहां स्वाद के मद्देनज़र हुआ है वहीं इसे जीभ या ज़बान वाणी उत्पन्न करनेवाले अंग के रूप में मिला है। अंग्रेजी में जीभ को टंग कहते हैं जो भारोपीय भाषा परिवार का शब्द है। जीभ और ज़बान एक ही मूल से निकले शब्द हैं और इस तरह इन्हें इंडो-ईरानी परिवार में रखा जाता है मगर इसी मूल से अंग्रेजी का टंग tongue शब्द भी निकला है। इस तरह ये तीनों शब्द सहोदर हैं और भारोपीय भाषा परिवार के माने जाते हैं। जीभ के लिए ज़बान शब्द फारसी भाषा से आया है। संस्कृत में जिव्हा शब्द का प्रयोग रसना के लिए होता है। जिह्वा का प्राकृत रूप हुआ जिब्भ और इससे हिन्दी में बना जीभ। संस्कृत जिह्वा का मूलरूप जिह्वः है। जिसका जन्म ह्वै धातु है जिसमें पुकारना, बुलाना, नाम लेकर पुकारना, आवाज़ करना जैसे भाव हैं। जाहिर है ये सारी क्रियाएं जीभ के जरिये ही सम्पन्न होती है जिसका रिश्ता वाक् शक्ति से है। ह्वै + ड के मेल से बना जिह्वः जिससे बने जिह्वा से ही हिन्दी का जीभ शब्द बना। ह्वै से बना है ह्वानम् जिसमें पुकारने, बुलाने , क्रन्दन करने, आमंत्रित करने का भाव है। बुलावा, आमंत्रण, निमंत्रण, ललकार, चुनौती के अर्थ में हिन्दी में आह्वान शब्द खूब जाना पहचाना है। यह तत्सम शब्द है और संस्कृत से जस का तस लिया गया है। आह्वान में देवताओं को संबोधित करने का भाव है वहीं बुलाने का भाव भी है। यह बना है ह्वै धातु में आ उपसर्ग लगने से जिसमें जोड़ने, समाने, शामिल करने का भाव है। इसके साथ इसमें ल्युट् प्रत्यय भी लगता है।
भाषाविज्ञानियों नें इन सभी शब्दों के लिए मूल रूप से एक धातु dnghwa की कल्पना की है। संस्कृत जिह्वा का अवेस्ता में वर्ण विपर्यय के जरिये हिज्वा hizva, हिजुआ hizua- और हिजु hizū- जैसे रूप हुए। प्राचीन फारसी में इसके hzanm, hizânam जैसे रूप हुए और फिर मध्यकालीन फारसी में यह उज़वान uzwân, हिज़बाना hizabana हुआ और फिर फारसी में इसने ज़बान zaban का रूप लिया। फारसी-ईरानी की पड़ोसी भाषा आर्मीनियाई मे यह लेज़ू और लिथुआनी में ल्यूजूविस हुआ। भारोपीय धातु dnghwa से लैटिन का प्राचीन रूपांतर dingua हुआ। मूल रूप से इंग्लिश और जर्मन रूपों का उद्गम पुरानी लैटिन के dingua से माना जा सकता है जिसका एक रूप गोथिक भाषा के टुग्गो tuggo के रूप में सामने आया और दूसरा रूप लैटिन में लिंगुआ हुआ जिससे भाषा के अर्थ में अंग्रेजी का लैंग्वेज शब्द सामने आया। से माना जा सकता है जो लैटिन में लिंगुआ बना। अंग्रेजी टंग की व्युत्पत्ति गोथिक को टुग्गो से मानी जा सकती है। ओल्ड इंग्लिश से इसका रूपांतर tunge/tongue के क्रम में टंग हुआ। जर्मनिक में यह zunga/Zunge के रूप में मौजूद है। हिन्दी में ज़बान और ज़ुबान दोनों रूप इस्तेमाल होते हैं जो मूलतः फारसी से आए हैं। हिन्दी में आमतौर पर नुक्ता नहीं लगता है। एक ही भारोपीय मूल dnghwa से टंग शब्द बना और लैटिन के लिंगुआ के जरिये भाषा के लिए लैंग्वेज शब्द बना। इसके विपरीत इसी मूल के इंडो-ईरानी भाषा परिवार में ऐसा नहीं हुआ। फारसी उर्दू के ज़बान शब्द में दोहरी अर्थवत्ता का विकास हुआ। इसमें जीभ और भाषा दोनों का भाव है। हिन्दी में जीभ और ज़बान से बने कई मुहावरे प्रचलित हैं जैसे-ज़बान चलाना या ज़बान चलना जिसका अर्थ है किसी की शान के खिलाफ बोलना, बढ़ चढ़ कर बोलना अथवा वाद-विवाद करना। वाचाल के अर्थ में अक्सर लम्बी ज़बान मुहावरे का प्रयोग होता है। यह मूलतः फारसी से आया है जिसका असली रूप है ज़बान दराज़ करदन अर्थात जबान लम्बी करना। चूंकी बोलने की क्रिया जीभ के जरिये ही होती है इसलिए ज्यादा बोलने, शेखी बघारने या ऊंचे सुर में बोलने के लिए यह मुहावरा इस्तेमाल होता है। इसी तरह ज़बान संभाल कर बोलना यानी सोच समझ कर कुछ कहना, जबान बंद रखना यानी चुप रहना जैसे मुहावरे भी भाषा को अधिक अर्थपूर्ण बनाने के लिए प्रयुक्त होते हैं। लम्बे समय तक किसी भेद को छुपाए रखने के बाद उसे सार्वजनिक करने के संदर्भ में ज़बान खोलना कहते हैं। अपनी कही बात से मुकरना या बयान बदलने के अर्थ में ज़बान से फिरना या ज़बान बदलना जैसे मुहावरे प्रयोग किए जाते हैं। कठिन और पेचीदा तथ्यों को याद रखने के संदर्भ में ज़बानी याद होना कहा जाता है। हवाई या आधारहीन बातों के संदर्भ में ज़बानी जमाखर्च मुहावरा खूब लोकप्रिय है। बड़बोलेपन को लेकर चेतावनी देने के लिए ज़बान खींचना भी आम मुहावरा है। किसी को वचन देने के संदर्भ में ज़बान देना कहा जाता है। ज़बान बंद रखना यानी चुप रहना। नोकज़ोख करने के लिए ज़बान लड़ाना मुहावरा इस्तेमाल होता है। ज़बान का पक्का होना मुहावरा वचनबद्धता निभानेवाले के लिए इस्तेमाल होता है जबकि इसके विपरीत ज़बान का कच्चा मुहावरे का प्रयोग वादाफरामोशी के लिए किया जाता है। ज़ुबान के साथ फारसी का बद् उपसर्ग लगने से बनता है बद्ज़ुबान का अर्थ है जो तीखी और घटिया बातें करता हो। इसी तरह ज़ुबान में बे उपसर्ग लगने से बनता है बेजुबान यानी न बोलनेवाला अथवा गूंगा।
जीभ को रसना भी कहते हैं। रसना शब्द बना है रस से। रस यानी तरल, द्रव या सार। स्वाद के लिए रस होना ज़रूरी है। मुंह में जीभ के इर्द-गिर्द लार ग्रंथियां होती है जो खाद्यपदार्थ का स्पर्श होते ही सक्रिय हो जाती हैं जिससे रस का सृजन होता है। इसीलिए जीभ को रसना भी कहते हैं। दार्शनिक अर्थो में रसना राग-रंग और विलास की प्रतीक है क्योंकि यह जीवन के भौतिक आधार यानी रसीले-चटपटे पकवानों से तृप्त होती है। ज्ञानी कहते हैं कि जीवन का आधार भक्ति-रस है जो मन के भीतर उपजता है। इस तरह देखें तो स्वाद का असली रिश्ता रसना यानी जीभ से है जो भोजन का रस भी लेती है और बातों का भी।
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12 कमेंट्स:
रहिमन जिह्वा बावरी कह गयी सरग पताल
आपुन तो भीतर गयी जूता खाय कपार
वाह.
बहुत शुक्रिया अरविंद जी यह
दोहा संदर्भित करने के लिए।
ज़बान ने कितनी ज़बानों को मिला दिया. बहुत खूब रही यह पोस्ट.
लेकिन आप ने ज़बान के ही सारे मुहावरे देकर बेचारी जीभ के साथ न्याय नहीं किया. मैं यह बर्दाशत नहीं करूंगा और जीभ को न्याय दिला कर रहूँगा:
काली जीभ वाली( अपशब्द बोलने वाली); जीभ मूतना( मूंह में पानी आना); जीभ लुतर लुतर चलाना; दांतों नीचे जीभ देना, जीभ को जंदरा(ताला) मारना(चुप रहना); जीभ कढना( निकलना) ( सांस निकलना, किसी को कुछ न समझना ); जीभ दिखाना (किसी को चिढाना); जीभ का सुआद (चस्का); जीभ का मीठा (मून्ह का मीठा)
जीभ उतारना( ललचाना); जीभ गन्दी करना( गालिआं निकालना ); जीभ सूखना( प्यास लगाना); जीभ न सूखना( बातें ख़तम न होना); जीभ पर लाना( मूंह पर कहना); जीभ लम्काना(लालच करना)
'जीभी' का मतलब जीभ जैसी कोई चीज़ है जैसे डंक का तीखा सिरा यहाँ निब ल्स्गाई जाती है, जूते के फीते के नीचे वाला लोलक, टंग क्लीनर.
*
मनु मेरो गजु, जिहबा मेरी काती- नामदेव
*
निवणु सु अखरु खवणु गुणु जिहबा मणीआ मंतु- फरीद
अर्थात नम्रता, क्षमा और मीठी जबान वाले गुण मन्त्र की तरह हैं.
बहुत खूब बलजीत भाई,
आप सफर के साथी हैं और कौन स्टेशन छूटा यह देखना तो आपका काम ही है:)
ज़बान और जीभ से मिलती जुलती सी बातें थीं सो जीभ को जान बूझकर बख्श दिया था।
शुक्रिया आपका।
बहुत बढ़िया..जुबान संभाल कर कह रहे हैं जी.
्रसमय है जीभ का ग्यान धन्यवाद।
''ज़ुबाँ शीरीं , मुलक गीरी''..... फ़ारसी मुहावरा याद आया.
दिलचस्प लेख....विचारणीय, प्रेरणीय......
अब ज़ुबाँ खुलवा ही दी है तो सुनिए......
दो धारी तलवार ज़ुबाँ है,
करवाती तकरार ज़ुबाँ है.
मिलवादे तो यार ज़ुबाँ है.
चढ़वादे तो दार* ज़ुबाँ है.
जीभ जिव्हा पर क्यों न चढ़ती?
थोड़ी सी दुशवार ज़ुबाँ है.
अंग्रेजी पर टंग[tongue] बैठी है,
किसकी ये सरकार ज़ुबाँ है.
लप-लप, लप-लप क्यों करती है?
पाकी या फूँफ्कार ज़ुबाँ है.
,,,,,,सिलसिला जारी है...जुबान रुक ही नहीं रही....अब ऐसा लिखेंगे तो सुनना तो पड़ेगा ही......अगले अशआर ...आत्म-मंथन पर:-
http://mansooralihashmi.blogspot.com
जरा ज़बान संभाल के…
अजित जी, यह पोस्ट तो मील का मोती(पत्थर) सामान है. तारीफ़ से बाहर की बात है... ऊपर से अरविन्द जी, बलजीत जी और तजुर्बेकार मंसूर जी के शब्द... सैकड़ो दाद इसपर :)
जीभ से जुड़े तमाम मुहावरे एकसाथ पाकर दिल बाग़ बाग़ हो गया..
मधुर वचन है औषधि,
कटुक वचन है तीर!
जबान पर अंकुश रखना बहुत जरूरी है!
जरा ज़बान संभाल के…
अजित जी, यह पोस्ट तो मील का मोती(पत्थर) सामान है. तारीफ़ से बाहर की बात है... ऊपर से अरविन्द जी, बलजीत जी और तजुर्बेकार मंसूर जी के शब्द... सैकड़ो दाद इसपर :)
माला तो कर में फिरै, जीभ फिरै मुँह माहि।
मनुआ तो चहुँ दिशि फिरै,ये तो सुमिरन नाहि।।
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