यायावर पर चर्चा के दौर पर सबसे ज्यादा जो बात उभर कर सामने आई वह है इस शब्द के साथ जुड़ा अस्थिरता और पानी के गुणों से समानता का भाव। यायावरी के इस पड़ाव में जानते है सैलानी,घुमक्कड़ और आवारागर्द के बारे में।
सैलानी
हिन्दी उर्दू में यायावर के अर्थ में ही सैलानी शब्द भी प्रचलित है और भाषा मेलालित्य लाने के लिए अक्सर इसे भी प्रयोग में लाया जाता है। सैलानी वह जो सैर-सपाटा लगाए । सैलानी अरबी मूल का शब्द है और बरास्ता फारसी, हिन्दी उर्दू में दाखिल हुआ। इस शब्द की व्युत्पत्ति भी देखें तो वहां भी बहाव,पानी ,गति ही नज़र आएंगे। अरबी में एक लफ्ज है सैल जिसके मायने हुए पानी का बहाव, बाढ़ या जल -प्लावन। गौर करें कि किसी किस्म के प्रवाह चाहे भावनाओं का हो या लोगों का हिन्दी उर्दू में सैलाब शब्द का इस्तेमाल खूब होता है । अलबत्ता सैलाब का मूल अर्थ तो बाढ़ ही है मगर प्रवाह वाला भाव प्रमुख होने से इसके विविध प्रयोग भी हो जाते हैं जैसे आँसुओं का सैलाब। सैल से ही बन गया सैलानी अर्थात् जो गतिशील रहे। सैरसपाटा पंसद करनेवाला। इसी कड़ी में आता है सैर लफ्ज जिसका मतलब भी है तफरीह ,पर्यटन,घूमना-फिरना आदि। इससे बने सैरगाह, सैरतफरीह जैसे लफ्ज हिन्दी में चलते हैं।
घुमक्कड़ / आवारागर्द
अब बात घुमक्कड़ की । यायावर के लिए घुमक्कड़ भी एकदम सही पर्याय है। घुमक्कड़ वो जो घूमता -फिरता रहे। यह बना है संस्कृत की मूल धातु घूर्ण् से जिसका अर्थ भी चक्कर लगाना, घूमना, फिरना, मुड़ना आदि है। घूमना, घुमाव, घुण्डी आदि शब्द इसी मूल से उपजे हैं। हिन्दी-उर्दू के घुमक्कड़ और गर्दिश जैसे शब्द इसी से निकले हैं उर्दू-फारसी का बड़ा आम शब्द है आवारागर्द। इसमें जो गर्द है वह उर्दू का काफी प्रचलित प्रत्यय है। आवारा से मिलकर मतलब निकला व्यर्थ घूमनेवाला । इसका अर्थविस्तार बदचलन तक पहुंचता है। जबकि घूर्णः से ही बने घुमक्कड़ के मायने होते हैं सैलानी, पर्यटक या घर से बाहर फिरने वाला। यूं उर्दू-हिन्दी में गर्द का मतलब है धूल, खाक। यह गर्द भी घूर्ण् से ही संबंधित है अर्थात् घूमना-फिरना। धूल या या खाक भी एक जगह स्थिर नहीं रहती। इस गर्द की मौजूदगी भी कई जगह नज़र आती है। जैसे गर्दिश जिसका आमतौर पर अर्थ होता है संघर्ष । मगर भावार्थ यहां भी भटकाव या मारा मारा फिरना ही है। इसी तरह गर्दिशजदा, गर्दिशे-दौरां, गर्दिशे-रोज़गार आदि लफ्ज भी हैं।
आपकी चिट्ठी
पिछली पोस्ट मन गंदा तो कैसा तीरथ पर सर्वश्री संजय, अनूप शुक्ल , मीनाक्षी, शिवकुमार मिश्र और ज्ञानदा की पावन प्रतिक्रियाएं मिलीं। मानस तीर्थ वाला संदर्भ आप सबने पसंद किया इसकी खुशी है। सबका आभार।
ये पड़ाव कैसा रहा, ज़रूर बताएं
अगली कड़ी यायावरी की आखिरी कड़ी होगी।
Sunday, December 16, 2007
बदचलन भी होते हैं घुमक्कड़ [किस्सा-ए-यायावरी 4]
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 11:03 PM
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
5 कमेंट्स:
सैलाब से सब डरते हैं कि कहीं डूब ना जाएं और हम हैं कि आते ही डूबने के लिए हैं क्योंकि यहां भी एक सैलाब आता है... शब्दों को सैलाब. और इससे अच्छी सैरगाह भी कोई नहीं. गर्दिश की बात भली चलाई... अब यायावरी के अंतिम पड़ाव का इंतजार है. इसने तो आसक्त कर लिया है जी.
जो आवारागर्द होगा उसके तारे गर्दिश में रहेंगे...पर उसे घबराने की जरूरत नहीं है...बस आवारागी को सफर में बदलने की कला आनी चाहिए...
घुमक्कड़ी में फक्कड़ी समाहित है शायद।
हमेशा की तरह जानकारी से परिपूर्ण लेख । सैल याने पानी का बहाव और उसीसे बना सैलाब । क्या सलिल से भी इसका कोई रिश्ता है ?
Sagar Kumar
Post a Comment