संस्कृत धातु या का मतलब होता है जाना, कूच करना, आगे बढ़ना आदि। यायावर में इस या की दो बार आवृत्ति का यही आभिप्राय है कि फिर फिर जाने वाला। एक जगह टिक कर न बैठनेवाला अर्थात घुमक्कड़।
पर्यटन, देशाटन, भिक्षाटन
यायावरी शब्द जुड़ता है देशाटन और पर्यटन से । यायावरी में जहां मन की मौज प्रमुख है वहीं देशाटन या पर्यटन में एक किस्म की व्यवस्था का बोध होता है।
देशाटन का मतलब हुआ देश में भ्रमण करना और पर्यटन का भी अर्थ घूमना फिरना है। ये शब्द बने हैं अट् धातु से जिसमें इधर-उधर घूमने का भाव है।इससे बने अटनं का मतलब भी यही हुआ। प्राचीन समाज में साधु-संतों के लिए भिक्षा के जरिये ही पेट भरना उचित माना जाता था उसके लिए वे निश्चित समय और निश्चित मात्रा में अन्न जुटाते थे जिसे भिक्षाटन कहा जाता था। आज भी सामान्य गृहस्थ जब नर्मदा परिक्रमा के लिए निकलते हैं तो सच्ची परिक्रमा का सुख पाने के लिए पूरी परिक्रमा अवधि में भिक्षा पर ही गुज़ारा करते हैं। प्रसिद्ध चित्रकार और लेखक अमृतलाल वेगड़ ने अपने अद्भुत यात्रा वृत्तांत सौंदर्य की नदी नर्मदा में इसका बहुत सुंदर वर्णन किया है। पर्यटन से ही बना पर्यटक जिसका मतलब हुआ सैलानी।
यान की महत्ता
पर्यटन , देशाटन अथवा यायावरी ज़रूरी नहीं कि पैदल ही की जाए। किसी वाहन के ज़रिए भी इसे सम्पन्न किया जा सकता है। या धातु से ही बना है यानम् जिसका मतलब हुआ समुद्री यात्रा, जाना, चलना, सवारी करना, वाहन, गाड़ी वगैरह। जलयान, शयनयान, वायुयान, अंतरिक्षयान आदि हिन्दी के जाने पहचाने शब्द इसी मूल से उपजे है।
यान शब्द का दार्शनिक अर्थों में भी प्रयोग हुआ है। बौद्ध एवं वैष्णव परंपरा में यान शब्द का अर्थ वे मार्ग अथवा पणालियां हैं ( प्रणाली शब्द का एक अर्थ मार्ग भी होता है। ) जो मनुश्य को मोक्ष की ओर ले जाएं । इसी क्रम में देखें तो बौद्धधर्म के दो पमुख मार्ग हीनयान और महायान से यह भाव स्पष्ट है। राष्ट्रकवि रामधारीसिंह दिनकर ने संस्कृति के चार अध्याय मे इसका सुंदर विवेचन किया है। ।
सन्यासी के आगे गृहस्थ
बुद्ध के परिनिर्वाण के पांचसौ वर्ष बाद महायान सम्म्रदाय उठ खड़ा । बुद्ध ने मूर्तिपूजा की मनाही की थी, महायान ने बौद्धधर्म के भीतर ही देवी-देवताओं की पूरी सेना खड़ी कर दी। बुद्ध ने कहा कि मोक्ष के अधिकारी केवल भिक्षु हो सकते थे , महायान ने मोक्ष की आशा उनके सामने भी रख दी जो गृहस्थ थे। तत्कालीन समाज में बौद्धधर्म के लिए एक आलोचना सी चलती थी कि यह कैसा धर्म है जिसमे गृहस्थों के लिए मुक्ति का मार्ग ही नहीं है। महायान ने इसे आसान कर दिया। बुद्ध को भगवान बना दिया । बुद्ध के मानवीय रहते तो उनके सिद्धांतो का अनुकरण बाध्यकारी हो सकता था पर जब वे भगवान बना दिए गए, लोकोत्तर बना दिए गए तो आसानी हो गई क्यों कि ईश्वर का अनुकरण नहीं किया जा सकता क्योंकि लौकिक मनुश्य लोकोत्तर चरित्र का अनुकरण असंभव मानता है।
हीनयान, महायान
इसी लिए जब गृहस्थों के लिए भी बौद्ध धर्म में मुक्ति की राह प्रशस्त हो गई तो महायान नाम सार्थक हो गया। महायान यानी बड़ी नौका जिस पर बैठकर सभी भवसागर के पार जा सकते है। और हीनयान अर्थात छोटी नौका जिस पर वे ही बैठ सकते हैं जिन्होने सन्यास लिया है।
इसी क्रम में महायान के भीतर से कई तरह विकृतियां जन्मीं जिन्होने वज्रयान जैसा पंथ भी उगला जिसने बौद्धधर्म की बहुत बदनामी करवाई। वैष्णवों का सहजिया सम्प्रदाय भी सहजयान से ही जन्मा है। और हां, मुहिम के अर्थ में अभियान भी इसी मूल से जन्मा है। विषय का विस्तार बहुत हो सकता है। मगर हमारे मतलब की बात इतने में ही आ गई है।
अभियान शब्द के बहाने अगली कड़ी में कुछ और यायावरी करेंगे।
आपकी चिट्ठी
सफर की पिछली कड़ी बदचलन भी होते हैं घुमक्कड़ पर सर्वश्री संजय, ज्ञानदत्त पाण्डेय, बोधिसत्व और आशा जोगलेकर की टिप्पणियां मिलीं। सहयात्री बनने के लिए आभारी हूं।
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Tuesday, December 18, 2007
और बुद्ध को ईश्वर बना दिया [किस्सा-ए-यायावरी 5]
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 3:25 AM
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4 कमेंट्स:
शब्दों के इस सफर में लगा जैसे सुखयान पर बैठकर हमने बहुत जानकारी पा ली... और आनन्द पाने के लिए अभियान की प्रतीक्षा है.
महायान, हीनयान, वज्रयान, और सहजयान के बारे मे जानकारी हुई.
गया वर्धन के लिए धन्यवाद.
आज पहली बार आपके चिट्ठे पर आना हुआ पर इतना व्यवस्थित और उद्देश्य परक चिट्ठा देख कर मन खुश हो गया. मुझे ऐसी जानकारियों में हमेशा से ही दिलचस्पी रहती है. आगे भी नियमित आना पड़ेगा अब तो.
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने हिंदी साहित्य की भूमिका में हीनयान और महायान के बनने की बात बड़े सहज तरीके से की है...
आपको पढ़ने की लत लग गई है...
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