दुनिया में सर्वाधिक पसंद किए जाने वाला खाद्यान्न संभवतः चावल ही है । चावल से बननेवाले हजारों तरह के व्यंजन है मगर पुलाव को खास शोहरत हासिल है । वजह है , ग़ज़ब की लज्जत और ज़ायका। भारतीय उपमहाद्वीप से चलकर आज खुशनुमा पुलाव कांटिनेंटल डिश बन चुका है।
आनंदम् आनंदम्
विश्व का शायद ही कोई कोना ऐसा होगा जहां लोगों ने इसका नाम न सुना होगा। पुलाव के प्रति इसी ललक ने हिन्दी-उर्दू में एक खास मुहावरा बना डाला है - ख़याली पुलाव पकाना अर्थात् कल्पनालोक में घूमना, हवाई किले बनाना आदि। पुलाव को किस ज़बान का शब्द माना जाए ? फारसी, उर्दू या हिन्दी का? यह फारसी भाषा में भी है और उर्दू हिन्दी में भी। दरअसल पुलाव की उत्पत्ति संस्कृत से हुई है। आइये जानते हैं कैसे।
हर्ष, खुशी संचार का भाव जब मन में संचारित होता है तो उसे पुलक या पुलकित होना कहते हैं। संस्कृत की एक धातु है पुल् जिसका मतलब है रोमांच होना। इससे बना पुलकः जिसका मतलब भी रोमांच के साथ आनंदित होना, गदगद होना, हर्षोत्फुल्ल होना आदि है। गौर करें कि अत्यधिक रोमांच कि अवस्था में शरीर में सिहरन सी होती है। त्वचा के बाल खड़े हो जाते हैं। इसे ही रोंगटे खड़े होना कहते हैं। इसे यूं समझें कि इस अवस्था में एक एक बाल स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। यही पुलक है। यही पुलक जब चेहरे पर दिखती है तो खुशी, उत्साह, आवेग नुमांयां हो रहा होता है। यानी खिला खिला चेहरा। एक तरह की सरसों अथवा राई को भी पुलकः ही कहा जाता है वजह वही है खिला खिला दिखना । राई के दाने पात्र में रखे होने के बावजूद खिले खिले ही नज़र आते हैं।
रोम-रोम में पुलक
पुल् से ही बना है पुलाकः या पुलाकम् जिसका मतलब है सुखाया गया अन्न, भातपिंड, संक्षेप या संग्रह और चावल का मांड। इससे ही बना पुलाव जो बरास्ता फारस , अरब मुल्कों में गया जहां से स्पेन होकर यूरोप में भी इसने रंग जमा लिया । पुलाव की सबसे बड़ी खासियत है इसकी सुगंध और चावल का दाना दाना खिला होना। अब जब भी पुलाव खाएं तो उसके दाने-दाने में पुलक महसूस करें और तब इसके नाम की सार्थकता आपको समझ में आ जाएगी।
अपनी पसंद - हरा पुलाव पकाना सीखें
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आपकी चिट्ठी
सफर की पिछली कड़ी पसीने की माया और स्वेटर का बुखार पर सर्वश्री दिलीप मंडल, अनूप शुक्ल, संजय, ज्ञानदत्त पाण्डेय, शिवकुमार मिश्र और आलोक पुराणिक की टिप्पणियां मिलीं। ज्ञानजी , स्वेटर की स्कूटर से रिश्तेदारी करानेवाली बात मज़ेदार है। संजय भाई, ब्लाग की शक्ल बीते एक महिने से अचानक बिगड़ गई थी। हैडर के आसपास अनावश्यक स्पेस कायम हो गया है। छोटे भ्राताश्री पल्लव बुधकर इसे समझने में लगे हुए हैं कि कैसे ठीक किया जाए। वैसे आपको पसंद आया ,ये बड़ी बात है।
Sunday, December 23, 2007
आह, पुलाव..... वाह, पुलाव
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 10:46 PM
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14 कमेंट्स:
पढ़ते-पढ़ते तन-मन में सिहरना पैदा हो गई। वाह क्या स्वाद पकाया है पुलाव, धन्यवाद
पुलाव के इस अर्थ को समझाने के लिए शुक्रिया। याने कि अगर कोई व्यक्ति ज्यादा पुलकित नज़र आए तो उसे बोला जा सकता है कि 'मियॉं, कतई पुलाव हुए जा रहे हो।'
हरे पुलाव के लिए बहुत शुक्रिया। खाने के शौकिनों के लिए भी आपने अपने ब्लॉग पर आने का रास्ता खोल दिया यह रेसिपी देकर। आज बनाकर देखा जाए।
हम चले पुलाव खाने । ओह पर पहले पकाना भी तो होगा ।
पुलाव के बारे मे बेहद दिलचस्प जानकारी दी है आपने। धन्यवाद हरे पुलाव की रेसिपी बताने के लिए।
दिलचस्प, हम तो सोच भी नही सकते थे कि इस शब्द की उत्त्पत्ति संस्कृत से है। हम तो सोचा करते थे कि अरब में कहीं हुई होगी इसकी उत्पत्ति।
शुक्रिया।
प्रत्यक्षा जी, पुलाव बन जाए तो बताईएगा, भोजन भट्ट होने के नाते अपन भी पहुंच जाएंगे। :)
आप तक अब तक खुशबू नहीं पहुँची ? कैसे भोजन भट्ट हैं आप ?
समझा करो प्रत्यक्षा जी, सर्दी के दिन हैं, नाक बंद है, खुशबु कैसे मिलेगी। ;)
वैसे पुलाव का ज्यादा प्रयोग तो अरबी - उर्दू में देखा जाता है , उनके व्यंजन में ऐसे तमाम पकवान हैं जो पुलाव से हीं जुड़े हैं , आज यह जानकर प्रसन्नता हुई कि पुलाव संस्कृत का शब्द है , आपके पोस्ट को पढ़ते -पढ़ते मुंह में पानी आ गया! सोच रहा हूँ आज पुलाव ही बनबाया जाए!
हर बार की तरह इस बार भी काफ़ी दिलचस्प जानकारी है.... खाना "पीना" तो वैसे भी मेरी पहली कमजोरी है, और पुलाओ के बारे में जानकारी हासिल करने के बाद, अगली बार उसको खाते वक्त एक नई भावना का मन में होना तय है.... एक बार फ़िर से, शुक्रिया
रोचक जानकारी...........
वाह ..खुशी हुई जानकर कि पुलाव संस्कृत से जन्मा है ..इसका मतलब पुलो (पुलाव) फारसी में संस्कृत से लिया गया होगा.
पढते पढते ही मन कितना पुलकित हो रहा था ये बता नहीं सकती ........... इतना जरुर कहूंगी कि शब्दों के सफर में अब तक का सबसे सुंदर पडा़व है ये पुलाव !!! अभिनंदन !!!
बहुत खूब, यह जानकारी न थी .
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