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Friday, September 11, 2009
सिर्फ मोटी खाल नहीं काफी…
श रीर की ऊपरी परत हिन्दी-संस्कृत त्वचा कहलाती है। अंग्रेजी में इसे स्किन कहते हैं। संस्कृत में ही शल्क भी त्वचा के लिए प्रयोग में आता है। इन सब शब्दों में मूल भाव आवरण का है। जाहिर है त्वचा या स्किन एक किस्म का आवरण ही है जिससे हमारा शरीर ढका रहता है। शरीर की यह ऊपरी परत ही भीतरी नाज़ुक और संवेदनशील अंगों की प्रकृति के दुष्प्रभावों से बचाए रखती है। कपड़े पहनने की तमीज़ इन्सान सभ्यता के विकास के साथ सीखी। प्रकृति ने किसी भी जीवधारी को वस्त्र देकर नहीं भेजा था। एक मूल आवरण त्वचा या खाल के तौर पर हर प्राणी के पास था जिससे उसकी रक्षा होती थी।
...जिस्म की हिफ़ाज़त के लिए खाल का मोटा होना ही काफी नहीं बल्कि कोई उसे स्पर्श भी न सके, यह सिफ़त भी उसमें होनी चाहिए...
सबसे पहले बात करते हैं खाल शब्द की जो बोलचाल की हिन्दी में प्रचलित है। खाल शब्द में मोटा-खुरदुरा सा भाव है और मनुष्य की त्वचा के लिए इसका प्रयोग न होकर पशुओं के संदर्भ में ज्यादा होता है। किंतु मानव त्वचा के लिए खाल का प्रयोग गलत नहीं है। ढीठ, बेशर्म के चरित्र को स्पष्ट करने के लिए मोटी खाल का मुहावरे के तौर पर भी प्रयोग होता है। इसी तरह कठोर दंड के अर्थ में खाल में भुस भरना मुहावरा भी मशहूर है। सूती कपड़े की बुनाई से पहले मनुष्य पशुओं की खाल ही ओढ़ता था। संस्कृत के खल्कः से बना है हिन्दी का खाल शब्द। है। आवरण के अर्थ में संस्कृत का शल्क शब्द ज्यादा प्रचलित है। पशु की खाल अथवा वृक्ष की छाल को भी शल्क ही कहते हैं गौरतलब है कि संस्कृत शब्द शल्कम से ही छाल बना है। शाल्मलि वृक्ष को ही फारसी में साल कहते हैं। शाल्मलि का एक रूप शालः भी है। इसी शाल से ही चादर, अंगवस्त्र सरीखे वस्त्र शाल का भी नामकरण हुआ है।
हिन्दी के छाल, खाल, शल्क या अंग्रेजी का स्किन भारोपीय भाषा परिवार के ही शब्द हैं और इनमें रिश्तेदारी भी है। शल्क या स्किन की मूल धातु में काटने, बांटने, दरार या छीलने का भाव है। गौर करें आवरण में निहित भाव पर। किसी भी आवरण का उद्धेश्य मूल आत्मा, स्वरूप को ढकना, छुपाना या उसकी रक्षा करना होता है। रक्षा तभी हो सकती है जब आवरण न सिर्फ मोटा हो बल्कि ऐसा भी हो कि शत्रु उसे छू भी न पाए। स्पर्श न करने का संदर्भ यहां शल्क या छाल की मूल धातु शल् में निहित तीक्ष्णता, तीर, बरछी, कांटा जैसे भावों से स्पष्ट होता है। जो सतह खुरदुरी या नुकीली होगी उस सतह को छूना कठिन है। इसी तरह अंग्रेजी में स्किन skin यानी त्वचा की मूल धातु sken है जिसमें कठोरता, काटना जैसे भाव हैं। शल्य चिकित्सा वाले शल्य शब्द का अर्थ सर्जरी होता है जिसमें त्वचा को छेद कर, भेद कर ही चिकित्सा की जाती है। यह शल्य इसी शल् धातु से बना है। अंग्रेजी का scale शब्द भी इसी कड़ी का शब्द है। स्कैल में जहां आवरण का भाव है वहीं विस्तार, परिमाप आदि भाव भी इसमें समाहित हैं जो आवरण के भाव को स्पष्ट करते हैं। इसकी मूल धातु है(s)kel जिसमें छेदना, काटना, फाड़ना जैसे भाव हैं। जाहिर है जिस्म की हिफाज़त के लिए खाल का मोटा होना ही काफी नहीं बल्कि कोई उसे छू भी न सके इतना धारदार भी होना चाहिए।
शल् में निहित रक्षा या आवरण का भाव अंततः उसे आश्रय से जोड़ता है। शल्क यानी आवरण के मूल में जो शल् धातु से जिसमें तीक्ष्ण, तीखा, हिलाना, हरकत देना, गति देना, उलट-पुलट करना जैसे भाव है। ये सभी भाव भूमि में हल चला कर खेत जोतने की क्रिया से मेल खाते हैं। हल की तीक्ष्णता भूमि को उलट-पुलट करती है। शालः शब्द के मूल में बाड़ा अथवा घिरे हुए स्थान का अर्थ भी निहित है। भूमि में शहतीरों को गाड़ कर प्राचीन काल में उसके चारों और बाड़ बनाकर आश्रय का निर्माण किया जाता था। यही शालः पाठशाला, धर्मशाला जैसे आश्रयों में भी है और घुड़साल, टकसाल जैसे शब्दों में भी। मुंबई की प्रसिद्ध चाल का उद्गम भी इसी शालः से हुआ है। प्राचीन भारोपीय भाषा परिवार की धातु (s)kel से ही अंग्रेजी का शेल shell शब्द भी बना है जिसमें आवरण, छिलका या ढांचा जैसे भाव हैं। हिन्दी के छाल या शल्क से इसकी तुलना गौरतलब है। अंग्रेजी के सेल cell का मतलब होता है कोशिका, कमरा या प्रकोष्ठ। यहां कक्ष के अर्थ में भी सेल शब्द का प्रयोग होता है और किसी संगठन के विभाग की तरह भी। यह भी इसी कड़ी का शब्द है।
यह तो जाहिर है कि त्वचा, शल्क या खाल के मूल में रक्षा के अर्थ में आवरण का भाव है जो उसे शरीर की रक्षापरत भी बनाते हैं और इसका एक अन्य संबंध आश्रय से भी स्थापित करते हैं। रक्षा कवच के तौर पर शल्क में खुरदुरेपन या तीक्ष्णता के गुण से उसे हानि पहुंचाने के उद्धेश्य से छूना कठिन होता है। स्पर्श का यही भाव है खाल के लिए संस्कारी, सभ्य भाषा में इस्तेमाल होने वाले शब्द त्वचा में जो बना है त्वच् धातु से। इसमें इसमें स्पर्शज्ञान का भाव प्रमुख है। इसके अलावा त्वचा का अर्थ किसी भी जीव के बाहरी आवरण, खाल, छाल, चमड़ा आदि भी होता है। गौरतलब है कि किसी भी सतह का आभास छूने से ही होता है इसलिए त्वचा शब्द में स्पर्श का भाव महत्वपूर्ण है। त्वच् में निहित स्पर्श और अंग्रेजी के टच touch की साम्यता गौरतलब है।
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 1:04 AM
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21 कमेंट्स:
चलते-चलते टच और त्वच् की साम्यता ने लुभाया । गजब की व्युत्पत्तियाँ । आभार ।
बेहतर जानकारी । आभार ।
लेखनी प्रभावित करती है.
इस सुखद स्पर्श से ज्ञानार्जन हुआ।
बधाई!
हम सरकारी कर्मी -प्रजाति की तो खाल मोटी है जानवरों की क्या बात करें !
हाँ इसकी व्याख्या करें -
बजा कहे जिसे आलम उसे बजा समझो
जबाने खल्क को नक्कारिये खुदा समझो
और अगर स्मृति दोष के चलते इसमें कोई त्रुटि हो गयी हो तो उसे भी दुरुस्त करियेगा -यहाँ खल्क शब्द ही है न ?
खाल जानदार चीज है। मृत हो कर भी काम आती है। उसे कह देना अपनी खाल में रहे सब से जबर्दस्त धमकी है दुनिया की।
बहुत उम्दा जानकारी.
रामराम.
यह जानकारी बहुत हीं ज्ञानवर्धक रही । आभार ।
aap to adbhut ho sarkaar.....shabdon kee khaal udhedkar unka jo roop hamen dikhaate ho....vo bemisal hai....sach....aapko bahut bahut bahut saadhuvaad ....!!
हम तो अपनी खाल में ही रहते है . इसीलिए संतुष्ट है
वाकई त्वच् में निहित स्पर्श और अंग्रेजी के टच touch की साम्यता अद्भुत है.. हैपी ब्लॉगिंग
अच्छी व्याख्या की है
@डॉ अरविंद मिश्र
टिप्पणी के लिए शुक्रिया डॉक्टसाब और साथ ही इसके जरिये एक उम्दा शेर पढवाने का भी। इसमें लोकतंत्र की महिमा बखानी गई है। व्यंग्य है। अब क़रीब दो सौ साल पहले ज़ौक़ साहब के पास ये लिखने के लिए क्या हालात थे, उसका संदर्भ अलग है। यहां जो ख़ल्क़ आया है वह संस्कृत के खल्कः से अलग है जिसका ताल्लुक खाल से है। सेमिटिक परिवार की अरबी भाषा के ख़ल्क़ khalq का अर्थ निर्माण, सृजन, घेरा हुआ, विशाल, विस्तारित, अंतरिक्ष आदि होता है। हालांकि ख़ल्क़ शब्द का दायरा काफी व्यापक है जो सृष्टिरचना से संबंधित है। यहां ख़ल्क़ का अर्थ दुनिया से है जिसमें जनता या लोग का भाव ही उभर रहा है। एक पोस्ट लिखी थी,http://shabdavali.blogspot.com/2008/03/khalaq-khalq.html खल्लास हो जाएगा एक दिन सब कुछज़रूर देखें। अलबत्ता नक्कारिये की जगह नक़्क़ारा-ए-खुदा होना चाहिए।
बजा कहे जिसे आलम उसे बजा समझो
ज़ुबान-ए-खल्क को नक़्क़ारा-ए-खुदा समझो
डेढ़ साल पहले http://shabdavali.blogspot.com/2008/02/blog-post_18.html नक़्क़ारा पर एक पोस्ट लिखी थी।
खाल के बाल की खाल निकालने में भी आपकी जादूगरी बिढया है।
सचमुच त्वच और टच के भाव एक से ही हैं....
बहुत ही सुन्दर विवेचना ....आभार.
ेक और बेहतर जानकारी आभार्
बहुत ही अच्छी जानकारी ...........इसके लिए बहुत बहुत आभार
Wah Bahut hee twachee post ya kahen touchi post.
shalya ka earth chubhan bhee hai sirf physical hee nahee emotional bhee.
त्वचा पहले रक्षा ही करती थी- दुरुस्त. अब तो त्वचा की रक्षा के लिए सेंकड़ों मलहम उपलब्ध है
अंन्तिम पैराग्राफ से यह तत्व ज्ञान हो रहा है कि त्वचा अंग्रेजों के हत्थे चढ़ी होती तो टचा बन जाती! :-)
खाल हो या त्वचा, उसमें स्पर्श के पहचान की जो बेजोड़ संवेदनशीलता पाई जाती है, उसके परिप्रेक्ष्य में यह लेख सम्वेदनहीन लगता है। मतलब कि उस बहाने से 'व्यास जी' से अधिक घोंटाई अपेक्षित थी। ;)
वैसे यह दायित्त्व अरविन्द मिश्र जी को अधिक सूट करता है।
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