Thursday, December 3, 2009

तंगहाली और आतंक का रिश्ता

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गरीबी अपने आप में डरावनी है
हि न्दी में फ़ारसी से आया तंग शब्द खूब प्रचलित है और इसके कई मुहारवरेदार प्रयोग मिलते हैं जिससे भाषा में रवानी और कहन में अनोखापन पैदा हो जाता है जैसे हाथ तंग होना यानी आर्थिक कष्ट होना या माली हालत ठीक न रहना। तंगी में गुज़ारा करना भी इसी कड़ी में है। तंग करना यानी परेशान करना। तंग-दिमाग़ यानी ओछी सोच रखना। उर्दू में तंग से बने कई शब्दयुग्म है जो कमोबेश उन्हीं अर्थों में हिन्दी में भी प्रचलित हैं जैसे तंगहाल या तंगहाली यानी गरीबी, निर्धनता की अवस्था, तंगनजर या तंगज़ेहन यानि संकुचित दृष्टिकोणवाला, धर्मान्ध अथवा कट्टर धार्मिक, तंगदिल यानी ओछा, अनुदार, ओछी मानसिकता का व्यक्ति आदि। इसी तरह तंगख़याली का अर्थ भी संकीर्ण सोच वाला होता है। भाषायी कट्टरता से परे, जो लोग हिन्दुस्तानी जबान बोलने में यकीन रखते हैं, वे इन तमाम शब्दों का इस्तेमाल खूब करते हैं। कभी सोचा है कि हिन्दी के आतंक शब्द से फारसी के तंग की गहरी रिश्तेदारी है!!! तंगहाली में आटा गीला वाले मुहावरे को गरीबी में आटा गीला के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है। गरीबी अपने आप में डरावनी है, आतंकित करती है। तंगी के चलते न जाने कितने लोग मौत को गले लगा लेते हैं। यह है तंगी का आतंक से रिश्ता।
तंग शब्द का अर्थ होता है संकीर्ण, संकुचित, कम, थोड़ा आदि। गौर करें कि किसी चीज़ की कमी या न्यूनता कष्टप्रद होती है। चाहे स्थान का छोटा या संकुचित होना हो या धन की कमी, अल्पबुद्धि हो या भाग्य की कमी ये सब तंग के दायरे में आ जाते हैं। इसीलिए तंग शब्द के साथ कष्ट, परेशानी, मुश्किल अथवा क्लेश का भाव भी जुड़ा हुआ है। कष्ट की अवस्था को तंगी में गुज़र इसलिए कहते हैं। किसी को परेशान करने के संदर्भ में अक्सर तंग होना या तंग करना का प्रयोग किया जाता है। हिन्दी में इससे तंगाई जैसा शब्द भी बना लिया गया है जिसमें खस्ता माली हालत का संकेत है। तंग शब्द इंडो-ईरानी परिवार का है और इसका संस्कृत रूप है तङकः जिसका अर्थ है बीमारी, व्याधि आदि। यह बना है तङकः धातु से जिसमें बर्दाश्त करना, सहन करना जैसे भाव हैं। सीधी सी बात है, शरीर के अवयवों को सुचारू कार्य करने में जब किसी कमी का सामना करना होता है, उससे ही विकार पैदा होते हैं जिसे व्याधि या बीमारी कहते हैं। इसीलिए इस शब्द में दुख झेलना, कष्ट में रहना, क्लेश या विपदा झेलना आदि भाव भी समाए हैं। तङ्कः का एक अन्य अर्थ है कष्ट में रहना, दुख atanki झेलना आदि। जाहिर सी बात है कि असामान्य परिस्थिति को ही सहन किया जाता है। संस्कृत में ही तङ्कः का अगला रूप बनता है तङ्गः जिसका अर्थ भी कष्टमय जीवन या अभाव ही है। मगर जब सहनशक्ति की सीमा चुक जाए तब इस तंगी या अभाव की कल्पना भी भयभीत करती है, सो तङगः में भय, डर का भाव भी निहित है।
संस्कृत की सहोदरा और प्राचीन ईरान की भाषा अवेस्ता ने तङ्गः से ही तंग रूप ग्रहण किया जो फारसी में भी चला आया। यहां भी अर्थ वही रहे। गौर करें तङकः में जब उपसर्ग लगा तो बना आतङकः जिसका अर्थ है जरावस्था, रोग, व्याधि आदि क्योंकि ये सभी शरीर में किसी न किसी विकार या कमी के चलते ही उत्पन्न होते है। इसी के साथ आतंक में पीड़ा, कष्ट, व्यथा का भाव भी निहित है। व्याधि और पीड़ा का साहचर्य सहज ही है। पीड़ा का एक बार अनुभव हो जाने के बाद उसकी कल्पना भयकारी होती है सो आतङ्कः शब्द के साथ भय अथवा डर का भाव स्थायी हो गया और इससे बने हिन्दी के आतंक शब्द के साथ यह रूढ़ हो गया। हिन्दी में आतंक का मतलब सिर्फ भय, डर, दहशत है। मौजूदा दौर आतंक का दौर है। दिनभर समाचार माध्यमों के जरिये इस शब्द का इस्तेमाल होता है। आतंक से बना है आतंकवादी या आतंककारी अर्थात वह व्यक्ति जो भयादोहन के जरिये अपना काम साधता है। डर पैदा कर अपना मंतव्य सिद्ध करता है।  समाचार माध्यमों में कई भार आतंकवादी के वैकल्पिक रूप में उग्रवादी शब्द का प्रयोग भी होता है जो ठीक नहीं है। उग्रवादी और आतंकवादी में कर्म का फ़र्क है। उग्रवादी मूलतः उग्र राजनीतिक विचाराधारा का होता है, जबकि आतंकवादी हिंसक क्रिया-कलापों के जरिये अपना लक्ष्य पाना चाहता है। आज दुनियाभर में पसरे आतंकवाद के राजनीतिक निहितार्थ चाहे जो हों, पर इसके मूल में कहीं न कहीं किसी किस्म के अभाव, कमी, संकीर्णता जैसे कारण ही मौजूद हैं। जो लोग आतंकवादी बन रहे हैं उनमें कई ऐसे हैं, जिन्हें तंगहाली ने आतंकी बनने पर मजबूर किया है। हालांकि तंगहाली के अलावा तंगज़हनी, तंगनजरिया और तंगदिली भी आतंकवाद की बड़ी वजह है। 

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16 कमेंट्स:

Udan Tashtari said...

चलिये..तंग करना और आतंक में भी रिश्ता जान लिया. आभार.

Khushdeep Sehgal said...

अजित जी,
तंगी पर खुले दिल से जानकारी लुटाने के लिए आभार...

जय हिंद...

शरद कोकास said...

मुझे गज़ल याद आ रही है ..तंग आ चुके है कश्मकशे ज़िन्दगी से हम .. और संगदिल आ भी जा इतना तंग दिल न बन .. से लेकर लता जी का गाया गीत ..आज दर्जी से मेरी जंग हो गई..
मै यही सोचता हूँ सब कुछ हो बस दिमाग की गलियाँ तंग न हों ताकि आतंकवाद जन्म ही न ले सके ।

दिनेशराय द्विवेदी said...

तंग के बिना पतंग काबू में नहीं आती। जो अपनी पतंग में अच्छा तंग बांध लेता है वही अच्छा पतंगबाज हो सकता है।

निर्मला कपिला said...

तो ये रंगी ही आतंक का कारण बनती है । तंगी चाहे शिक्षा की हो आर्थिक हो या अग्यानता हो या फिर धर्म का मर्म न जान पाने की आतकी तो बना ही देती है। अच्छी जानकारी के लिये आभार्

Randhir Singh Suman said...

nice

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

वाकई! तंग और आतंक शब्दों के अर्थो, मूलों और परिस्थितिजन्य तमाम शब्दों में गहरी समानता है. एक शे'र अर्ज करता हूँ-

तंग गलियों से जब मैं निकला;
देखा तब एक सड़क खुली थी.

अजित वडनेरकर said...

@sharad kokas
सही कहा शरद भाई,
तंगी में कशमकश तो होती ही है। खींचतान सिर्फ इसलिए ताकि स्पेस बने।
इस स्पेस की व्याख्या कई तरह से की जा सकती है। पर सारी कशमकश
स्पेस के लिए है, जिसकी तंगी है।
हम भी ब्लागर इसलिए बनें क्योंकि स्पेस की कमी थी।
हमने भी ठीक कहा न?

Unknown said...

"…जो लोग आतंकवादी बन रहे हैं, वे भी इसीलिए क्योंकि उन्हें तंगहाली ने आतंकी बनने पर मजबूर किया है…" इससे असहमत। कई उदाहरण गिनाये जा सकते हैं, जहाँ खाये-पिये-अघाये लोग भी आतंकी बने हैं…

अजित वडनेरकर said...

@Suresh Chiplunkar
सुरेशजी, जिस वजह से आप असहमत हैं, वह सही है। कुछ असावधानी से वह वाक्य लिखा गया है। उसे दुरुस्त कर दिया है। बाकी आपकी विचारधारा से परिचित हूं। मेरी स्पष्ट मान्यता है कि आतंकवाद की समस्या के मूल में भी आर्थिक असमानता एक बड़ी वजह है। धार्मिक और जातीय कारण तो उपकारक हैं जिन्हें प्रमुखता से पेश किय जाता है।

रंजना said...

तंग शब्द आतंक से भी सम्बंधित हो सकता है इसका अनुमान कतई नहीं था...लाजवाब विवरण....बहुत बहुत आभार..

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

"विभुक्षिता किम् न करोति पापम्?"

Gyan Dutt Pandey said...

बुद्धि और चेतना के स्तर पर तंग (संकुचित) ही आतंकवादी बनता है!

काशिफ़ आरिफ़ said...

लो जी सुरेश जी यहां भी असहमत हो गये.....

अजीत जी आपको अपनी बात पर जमा रहना चाहिये....जो आंतकवादी अमीर है उनमें से कुछ आंतक के पैसे से अमीर हुये है और बाकी का दिमाग किसी कथित मौलाना ने फ़िरा दिया होगा

डॉ महेश सिन्हा said...

अब यह सच सबके सामने आ चुका है कि लोग तंग हो कर आतंकवादी नहीं बनते बल्कि यह एक प्रायोजित कार्यक्रम है

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

आतंक हमारे तंग जेहन से ही पनपता है . उग्रवादी और आतंकवादी का अर्थ आज समझ आया .

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