Friday, December 25, 2009

मामा शकुनी, सुगनचंद और शकुन्तला

क्रिसमस पर मंगलकामनाएं

11m
दु नियाभर के समाजों में हर अच्छी शुरूआत के लिए शगुन-विचार करने का रिवाज है। बोल-चाल की हिन्दी में इसे सगुन बिचारना या सगुन-बांचना भी कहते हैं। नया काम मंगल बेला में हो जाए, ऐसे कार्य जो पुण्य प्राप्ति की आकांक्षा रखकर किये जाने हैं, उनके संबंध में  शुभाशुभ  सोचकर  ही कोई निर्णय लिया जाए, यही सारी बातें आदिकाल से शगुन-विचार के तहत आती रही हैं। शगुन का एक अन्य रूप शकुन भी हिन्दी में खूब प्रचलित है। इसके सगुन, शगुन, सुगन, सुगुन जैसे देसी रूपों के अलावा शकुन जैसा शुद्ध तत्सम रूप व्यवहार में हैं। शकुन या शकुन्तला जैसे नाम जहां स्त्रियों में होते हैं वहीं इससे सुगनचंद या सगुनचंद जैसे पुरुषवाची नाम भी प्रचलित हैं। शगुनिया हिन्दी में उस पुरोहित को कहते हैं जो पोथी-जंत्री बांच कर शुभकार्य के मुहूर्त निकाल कर रोजी चलाता है। ये तमाम रूप बने हैं संस्कृत के शकुनः से जिसका मतलब है शुभ लक्षण, अवसर आदि। शकुन में निषेधात्मक उपसर्ग लगने से अपशकुन शब्द बनता है जिसका अर्थ बुरा समय, खराब संकेत, अशुभ लक्षण आदि होता है। शकुन का प्राकृत रूप होता है सगुणु जिससे बना शगुन। जिस तरह शुभ चिह्न, एक पक्षी विशेष वगैरह। शकुनः के आधार में है संस्कृत धातु शक् जिसमें काल, समय, समर्थ होने की इच्छा रखना, कर सकने की इच्छा रखना शामिल है।
हाभारत के ख्यात चरित्र , कौरवों के मामा शकुनी का नाम भी इसी धातु से बना है। इसका मतलब हुआ जो स्वयं अपनी आत्मा का उद्धार कर सके। शकुनि में इसका विरोधाभास ही नज़र आता है। इस पांडव-द्वेषी गांधारी-बंधु के चरित्र की काली छाया समाज पर इतनी गहरी रही कि आज मुहावरे के तौर पर धृतराष्ट्र की पत्नी गांधारी के भाई का उल्लेख मामा शकुनी के रूप में ही होता है। महाभारत में कौरवों के इस निकट संबंधी का उल्लेख ऐसे व्यक्ति के तौर पर आता है जिसका परामर्श अनिष्टकारी हो। जाहिर है अपनी मूल भावना के अनुरूप शकुनी नाम तो मंगलकारी है मगर शकुनि के कुसंस्कार इस मंगलकारी शब्द की अर्थवत्ता पर हावी हो गए और यह नाम कुख्यात हो गया। अगर कौरवों के पक्ष में सोचें तो शकुनि की सोच और तिकड़में अस्थाई रूप से तो मंगलकारी थीं। शुभाशुभ विचार काल विशेष में ज्योतिष और नक्षत्र-गणना के आधार पर होता है जिससे यह तय हो सके कि अमुक और इच्छित घड़ी उस कार्य के योग को प्राप्त करने में योग्य या सक्षम है या नहीं। शक्ति का अर्थ होता  है बल, ताकत या सामर्थ्य, जो इसी मूल धातु अर्थात शक् से आ रहे हैं। यही नहीं वाहन के अर्थ में शकट शब्द भी इसी कतार में है जिसका अर्थ होता है गाड़ी। वाहनों को हमेशा ही शक्ति का प्रतीक समझा जाता है क्योंकि ये भारवाही होती हैं जिससे इनमें शक्ति स्थापित होती है। हिन्दी का छकड़ा शब्द शकट से बने शकटिका का ही रूप है। शूद्रक के प्रसिद्ध नाटक मृच्छकटिकम् यानी मिट्टी की गाड़ी में यही शब्द झांक रहा है।
Harappa-oxcartकुनः का एक अर्थ मांगलिक लक्षणों वाला एक पक्षी भी होता है जिसे पालना अच्छा समझा जाता है। इसके लिए शकुन्तः शब्द भी है। नीलकंठ को भी शकुन्तः कहा गया है।  वैसे आप्टे कोश में चील, गिद्ध जैसे पक्षियों का नाम इस संदर्भ में आता है। ध्यान रहे, पक्षियों का अलग अलग अवसरों पर घरों की मुंडेर, पेड़ों पर बैठना, कूकना आदि विभिन्न संस्कृतियों में प्राचीनकाल से ही शगुन-विचार के दायरे में आता रहा है। तोता का एक नाम शुकः भी है जिसके आधार पर हिन्दी में सूआ, सुआ और सुग्गा जैसे शब्द भी बने हैं। राजस्थानी में इसे सुवटिया भी कहते हैं। शुक-सारिका का जोड़ा भी मांगलिक माना जाता है।एक छोटी चिड़िया, गोरैया को भी शकुनी कहा गया है।इसी तरह शकुनि का अर्थ गिद्ध, चील, बाज और मुर्गा जैसे पक्षी भी हैं। शकुन्त, शकुनी, शकुन्तकः, शकुन्तिः जैसे शब्द संस्कृत में पक्षियों के ही नाम हैं। पुराणों की प्रसिद्ध नायिका शकुन्तला के नामकरण के पीछे यही मांगलिक भाव है। ऋषि विश्वामित्र से उत्पन्न कन्या को उसकी मां मेनका जन्म के बाद ही वन में छोड गई थीं जहां शकुन्त पक्षियों ने उसकी देखभाल की इसलिए उसका नाम शकुन्तला पडा। बाद में कण्व ऋषि ने उसे पाला । पुराणों के अनुसार दुष्यंत से उसका गांधर्व विवाह हुआ और पुत्र भरत उत्पन्न हुआ जिसके नाम पर इस देश का नामकरण भारत हुआ। [सम्पूर्ण संशोधित और विस्तारित पुनर्प्रस्तुति]

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15 कमेंट्स:

Udan Tashtari said...

बढ़िया.

Anonymous said...

बहुत से शुभ शगुन हो रहे हैं । विशिष्टता से ओतप्रोत इस विलक्षण ब्लोग के समस्त आलेखों को पुस्तक रूप में पढने, संग्रहीत करने और मित्रों को पढवाने की लालसा शीघ्र पूरी हो जाये ; यही अभिलाषा है ।

'शूद्रक' के प्रसिद्ध नाटक मृच्छकटिकम् यानी 'गारा की गाड़ी' का उल्लेख बहुत भाया । भारत भवन भोपाल मे अक्सर इसका मालवी बोली में बडा अनूठा नाट्यरूपांतंरण प्रदर्शित किया जाता रहा है जो हृदय को झकझोरता है । शकट (गाडी) और शकटिका का शगुन से भी कोई सम्बन्ध हो सकता है यह जानकारी बहुत विस्मयकारी है । ( विचार यह भी पनपा कि आज के सन्दर्भों में हम छोटी कारों को निरपवाद रूप से शकटिका कह सकते हैं ) ।

ज्ञान के खजाने की सैर करवाने के लिये बहुत आभार !!!

मनोज कुमार said...

बहुत अच्छी जानकारी। क्रिसमस पर्व की बहुत-बहुत शुभकामनाएं एवं बधाई।

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

@ नीलकंठ यानी तोता
@ एक छोटी चिड़िया, गोरैया को भी शकुनी कहा गया है जो संभवतः सारिका यानी मैना ही है

भाऊ! इन दोनों बातों में गड़बड़ लग रही है। ये पक्षी अलग अलग हैं, एक नहीं। या यह मेरा अल्पज्ञान है ?
______________________
पुराना कलेवर अधिक जँचता था। व्यक्तिगत अभिरुचि की बात हो सकती है।

Arvind Mishra said...

पहले शकुन्त पक्षी ......जिसने शकुन्तला का नामकरण दिया -यह इतना बड़ा तो होना ही चाहिए की नवजात शकुन्तला को अपने परों से पूरा ढक सके -जाहिर है कोई छोटा मोटा पक्षी नहीं हो सकता ! मेरे मेरे खोजबीन के मुताबिक़ एक पक्षी जो है तो गिद्ध परिवार का -परोहा 'ज चिकेन -सफ़ेद गिद्ध ,गोबर गिद्ध या धोबन शकुन्त है ! यह गिद्ध परिवार की होकर भी मनुष्य से काफी घुल मिल जाती है -पालतू बन जाती है -मैंने खुद जाँच लिया है ! (वैज्ञानिक नाम है -Neophron percnopterus)
रही बात शकुन शब्द की तो कहीं ऐसा तो नहीं की शकुनी मामा के अवतरण के बाद से ही यह उनके प्रभाव के निवारण की कोई लोकप्रथा न चल पडी हो ?

दिनेशराय द्विवेदी said...

आज अचानक सफर के कलेवर से रंग गायब हो गए। पिछला रंग कुछ गहरा अवश्य था लेकिन वह परंपरा का प्रतीक सा लगता था। गिरजेश जी की टिप्पणी महत्वपूर्ण है।

डॉ टी एस दराल said...

क्रिसमस की शुभकामनायें.

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

एक व्यक्ति के दुश्कर्म उसके नाम का अर्थ भी बदल देते है .

abcd said...

शानदार..... अजित भैय्या

अजित वडनेरकर said...

@गिरिजेश राव
@अरविंद मिश्र
@दिनेशराय द्विवेदी
आप तीनों की बातें सही हैं। ध्यान दिलाने के लिए आभार। इसके मुताबिक परिवर्तन कर दिया है। धोबन-शकुन्त बढ़िया है।

रंजना said...

आज इस एक पोस्ट में कितनी ही बातें जान्ने को एकसाथ मिल गयीं...
शकुंतला का जन्म रहस्य...पूर्णतः अनभिग्य थी मैं...
दुष्टता का पर्याय शकुनि जिस के नाम पर आज तक कोई भी अभिभावक अपने बच्चों का नामकरण नहीं करना चाहते,उसका शाब्दिक अर्थ इतना पवित्र है..कभी यह ध्यान में आ ही नहीं पाया था...
बहुत बहुत आभार इस ज्ञानवर्द्धक विवेचना के लिए...

hem pandey said...
This comment has been removed by the author.
hem pandey said...

कूर्मांचल में मांगलिक कार्यों (विवाह, उपनयन संस्कार,नामकरण, जन्मदिवस आदि ) में मंगल गीतों के गायन से पहले एक विशिष्ट गीत गाया जाता है जिसे 'शकुनाखर' कहते हैं.

Baljit Basi said...

पक्षिओं की हरकतों से शुभ या अशुभ शगुन जोड़ना सब सभ्यताओं में है. शगुन शब्द की व्युत्पति तो शक (पक्षी) से जोड़ी ही जाती है. अंग्रेजी शब्द auspicious (शुभ) और augur(शगुन) भी भरोपी अवि(पक्षी) से जुड़ता है जो आगे संस्कृत 'वीह', पक्षी से जुड़ा हुआ है. पुराने ज़माने में गावों में औरतें जब कोई काम, खास तौर पर चरखा कातना शुरू करती थीं तो वह किसी छोटे लड़के को थोड़ी देर पास बैठने के लिए कहती थी जिसको पौन्खा देना कहिते थे . विश्वास था की इससे काम ज्यादा होगा . खुश करने के लिए कई बार कई औरतें मुझे कहती थीं तुम्हारा पौंखा अच्छा है. 'पौंखा' शब्द 'पक्षी' से ही जुड़ा हुआ है. इसका मतलब पंख भी है और पंख लगा तीर भी है. कई जगह शादिओं में दुल्हे के स्वागत में एक पोंखा नाम की रसम भी होती है.

पक्षियों के नामों की बड़ी गड़बड़ है जगह जगह अलग अलग नाम है . मैना को पंजाबी में गुटार भी कहा जाता है और सारख भी, हरिअनावी में गुरसाल और कैबर, मराठी में शैड सालोंकी है.

कोपल कोकास said...

aapne bahut khubsurat likha hai aacha laga .

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