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Sunday, December 6, 2009
नाखुदा हम जिसे समझ बैठे…
म नुष्य के शरीर का महत्वपूर्ण अंग है कान। इसकी व्युत्पत्ति हुई है संस्कृत की कर्ण् धातु से जिसकी व्यापक अर्थवत्ता है और इससे बने अनेक शब्द हिन्दी में प्रचलित हैं। कर्ण् धातु में छेदना, प्रवेश करना, घुसना जैसे भाव शामिल हैं। कान की संरचना के संदर्भ में इन भावों का अर्थ स्पष्ट है। इससे बने कर्ण का अर्थ है किसी वस्तु को थामने वाली संरचना, बाहर निकला हुआ हिस्सा, हत्था, दस्ता या मूठ आदि। कर्ण शब्द की कान के संदर्भ में यहां गुणवाचक अर्थवत्ता भी है और भाववाचक भी। श्रवणेन्द्रिय होने की वजह से यहां स्पष्ट है कि कानों में ध्वनि प्रवेश करती है। इसी तरह सिर के दोनों और उगे कानों के संदर्भ में यह समझने की ज़रूरत नहीं है कि कान ही क्यों पकड़े जाते हैं। हाथ भी पकड़े जा सकते हैं, मगर हाथों पर मनुष्य का नियंत्रण है और उन्हें बांध कर किसी की गिरफ्त से बचा जा सकता है, जबकि कानों पर उसका नियंत्रण नहीं है, इसीलिए कोई भी इन्हें सहजता से थाम सकता है।
कर्ण से बना है कर्णधार शब्द जिसका हिन्दी में मुहावरेदार प्रयोग होता है। सर्वेसर्वा, जिम्मेदार, नेता, अगुआ अथवा मुखिया के लिए कर्णधार शब्द का प्रयोग होता है। कर्ण का प्रयोग गणितीय शब्दावली में भी होता है जिसका मतलब त्रिभुज के सामने की रेखा से है। कर्ण का अर्थ किसी वृत्त की तिर्यक रेखा भी है। नाव के दोनो ओर तिर्यक स्थिति में लटकी पतवारों की रैखिक स्थिति भी कर्ण के गणितीय अर्थ को स्पष्ट करती है। कर्ण से कई शब्द बने हैं जैसे कर्णकटु अर्थात अरुचिकर ध्वनि, कर्णप्रिय यानी जो सुनने में भला लगे आदि। वैसे कर्णधार का मतलब होता है नाविक, मल्लाह या खिवैया। नेता या मुखिया के तौर पर कर्णधार का प्रयोग इसलिए होता है क्योंकि नाव सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति नाविक या मांझी ही होता है जिस पर यात्रियों को सही सलामत पार पहुंचाने की जिम्मेदारी होती है। सवाल है नाविक के संदर्भ में कर्णधार शब्द की व्याख्या क्या है। कर्ण+धार से बना है यह शब्द। धार से तात्पर्य धारण करने से है अर्थात जो कर्ण यानी पतवार को धारण करता हो, उसे थामता हो, वही है कर्णधार यानी नाविक।
संस्कृत के कर्ण का एक अर्थ पतवार भी होता है। किसी वस्तु को थामने वाले अंग या हिस्से को भी कर्ण कहते हैं। नाव के पिछले हिस्से में चप्पू जैसा ही एक उपकरण होता है जो पतवार कहलाता है। यह आकार में कुछ त्रिकोणीय होता है। यह पानी में समाया रहता है और इसका जो हिस्सा पानी से ऊपर होता है वह डंडेनुमा होता है जिसकी मूठ नाविक यानी नायक के हाथ में होती है। पतवार के जरिये ही नाव को थामा जाता है, मोड़ा जाता है। यूं सभी नावों में पीछे की ओर पतवार नहीं होती। सामान्य तौर पर जो नावें होती हैं उनमें नाव की दोनो ओर पतवार थामने के ठीये होते हैं। चप्पू के जरिये ही नाव को खेया भी जाता है और मोड़ा भी जाता है। पतवार शब्द बना है पात्र+पालः से। पात्र का अर्थ हुआ किसी वस्तु का आधार, जलाशय, नदी का पाट आदि। पालः का अर्थ हुआ संभालना, दिशा बताना आदि। इस तरह पात्र+पालः > पात्तवड़>पत्तवाल>पतवार के क्रम में इसका रूपांतर हुआ।
नाविक के लिए फारसी, उर्दू में नाखुदा शब्द है। अनुदित या लिप्यंतरित उर्दू साहित्य के जरिये हिन्दीभाषी इससे परिचित हैं और नाखुदा शब्द का हिन्दी में भी सीमित प्रयोग होता है। नाखुदा बना है ना+खुदा से। ना से अभिप्राय है नौका या नाव और खुदा का मतलब हुआ मालिक या स्वामी। जाहिर है यहां नाव के मालिकाना हक की बात महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि नाव खेने वाले से ही अभिप्राय है। उर्दू शायरी में कर्णधार के अर्थ में नाखुदा शब्द का खूब इस्तेमाल होता रहा है-नाखुदा हम जिसे समझ बैठे। उसी कम्बख्त ने डुबोना था।। आज राजनेताओं के संदर्भ में कर्णधार शब्द अपनी अर्थवत्ता खो चुका है। उनके बारे में तो यही शेर सही है। कर्णधार वही है जो मंझधार में डुबोए। अनेक सत्ता साझेदारों के प्रसंग में भी यही बात सही लगती है कि-राहज़न की बात कहूं किससे खुलकर। मीरे कारवाँ यारों, मीरे कारवाँ यारों।।
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10 कमेंट्स:
ज्ञानवर्धक व्याख्या!!
I would like you to discuss the word 'patra' if you have not already done so.I think patra also means 'boat'so that 'patrapala' is something that steers boat. English word 'vessel' (Like patra) means both container and ship, boat. The association between hollow utensils and boats appears in all languages.
हम ख़ुदा की तलाश में थे अभी,
नाख़ुदा से हमें मिला डाला,
कर्णधारों का ज़िक्र क्या कीजे,
जिसने मंझदार में डुबो डाला.
अच्छी जानकारी . आभार
नाखुदा ही था जिसने कर्णधार राम को भी दरिया पार कराया .
नाखुदा का मतलब आज ही आपके द्वारा जाना .
नाखुदा को स्पष्ट करने के लिए शुकिया.
इसका मतलब मूल अर्थ कर्ण का तिर्यक रेखा ही है, या ऐसी कोई चीज़ जो घुसाने या घुमाने योग्य हो.
कहां से शुरु हुये कहां पहुंचे!शानदार! कर्ण,कर्णप्रिय,कर्णकटु, कर्णधार से नाखुदा! वाह!
kuchh to jaankaaree thi, lekin itnee gaharee nahi...shukriya!
@बलजीत बासी
निश्चित ही पात्र में नौका की अर्थवत्ता भी है। इस रूप में भी पतवार का नाम अपने आप सार्थक है।
ब्यख़या बहुत ही अच्छा है लेकिन असल मे यही नाखुदा ही खुदा का रूप है मानो या न मानो
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