संस्कृत-हिन्दी के स्वेद और अंगरेजी के स्वेट शब्द में गहरी रिश्तेदारी है और इससे ही जन्मा है स्वेटर. |
खांचों में बंटी इस दुनिया में इन्सान के एक होने का तर्क गले उतारने के लिए समाजवादी तरीके से बात समझाई जाती है और अक्सर खून-पसीने का जिक्र किया जाता है। यानी खून सबका लाल होता है और पसीने में मेहनत ही चमकती नज़र आती है वगैरह-वगैरह। भाषा विज्ञान के नज़रिये से भी यही साबित होता है कि हम सब एक हैं। पसीने के लिए अंग्रेजी के स्वेट sweat और इसके हिन्दी पर्याय स्वेद की समानता पर गौर करें। दरअसल यह शब्द भी प्रोटो इंडो यूरोपीय भाषा परिवार का है और भाषाविज्ञानियों ने इसकी मूल धातु sweid मानी है जो स्वेद की मूल धातु स्विद् के काफी करीब है,जिसमें मुख्यतः पसीना आना मुख्य भाव है। आप्टेकोश के मुताबिक इसमें ऐसी क्रियाएं भी शामिल है जिनके जरिये शरीर में गरमाहट आती है या पसीना उत्पन्न होता है। मालिश किया जाना, चिकना किया जाना जैसी क्रियाएं भी स्विद् में शामिल हैं। इससे बना है स्वेदः जिसमें अर्थ श्रमकण, श्रमजल, पसीन आदि है। जूं और चीलर जैसे परजीवियों का एक विशेषण है स्वेदज अर्थात "पसीने से जन्मे हुए" भाव यही है कि पसीने से उत्पन्न नमी पर गंदगी जल्दी जमती है और गंदगी की वजह से ही शरीर पर परजीवी पनपते हैं।
स्वेटर यानी सर्दियों का एक आम पहनावा। यह शब्द भी अंग्रेजी से हिन्दी में आया और आज गांवों से शहरों तक बेहद आमफहम है। सर्दियां आते ही आज तो दुकानें गर्म कपड़ों से सज जाती हैं और घर के बक्सों से स्वेटर भी निकल आते है। यह जानकर ताज्जुब हो सकता है कि किसी जमाने में डाक्टर की सलाह के बाद स्वेटर पहना जाता था। जैसा कि नाम से पता चलता है स्वेटर अंग्रेजी के स्वेट शब्द से बना है। जाहिर है स्वेटर के मायने हुए पसीना लाने वाला। पहले लोगों को जाड़े का बुखार आने पर पसीना लाने के लिए डाक्टर एक खास किस्म के ऊनी वस्त्र को पहनने की सलाह देते थे। तब इसे कमीज के अंदर पहना जाता था। बाद में जब सर्दियों से बचाव के लिए कमीज से ऊपर पहने जाने वाले पहनावे भी चलन में आए तो भी उनके लिए स्वेटर शब्द ही चलता रहा। सर्दियों में ही पुलोवर भी पहना जाता है। इस पर गौर करें तो पता चलता है इसका यह नाम गले की तरफ से खीच कर पहनने से (पुल-ओवर) पड़ा होगा। इस पर बशीर बद्र साहब का एक शेर याद आ रहा है-वो ज़ाफरानी पुलोवर उसी का हिस्सा है। कोई जो दूसरा पहन ले तो दूसरा ही लगे।।
गले की तरफ से खींच कर पहने जाने वाले एक अन्य वस्त्र का नाम जर्सी है। जर्सी शब्द गांव से लेकर शहर तक सभी स्थानो पर समान रूप से लोकप्रिय है। पूरी बाहों के पुलोवरनुमा स्वेटर या ऊनी वस्त्र को भारत में जर्सी कहने कहने का रिवाज है। यह अंगरेजी से आया हुआ शब्द है और भारत में ही नहीं, दुनियाभर में लोकप्रिय है अलबत्ता इसके साथ सर्दियों में पहने जाने वाले वस्त्र का जो ठप्पा लगा है, वैसा पूरी दुनिया में नहीं है। सबसे पहले जर्सी की व्युत्पत्ति की बात। जर्सी इंग्लिश चैनल में स्थित प्रसिद्ध चैनल आइलैंड्स नामक द्वीपसमूह का सबसे बड़ा द्वीप है जो ब्रिटेन का हिस्सा है। जर्सी द्वीप पर खास किस्म के ऊनी धागे का निर्माण होता है और जिससे एक बेहद नफ़ीस ऊनी कपड़े का निर्माण होता है जिसे वर्स्टेड क्लॉथ कहते हैं। भारत में भी वर्स्टेड ऊन की मांग है। जर्सी दरअसल इसी वर्स्टेड ऊन से बुनी हुई पोशाक है जिसका निर्माण जर्सीद्वीप पर शुरु हुआ और इसके नाम पर ही दुनियाभर में इस पोशाक को जाना गया। गौरतलब है कि ब्रिटेन एक ठण्डा मुल्क है इसलिए वहां सामान्य वस्त्र भी ऊनी धागे से ही बनते रहे हैं। इसे मोटे ऊनी वस्त्र और पतले ऊनी वस्त्र के तौर पर बांट सकते हैं। इसीलिए यूरोपीय देशों में जर्सी कमर से ऊपर पहना जाने वाला वर्स्टेड ऊन से बना एक सामान्य वस्त्र है जो पूरी बांह का भी हो सकता है, आधी बांह का भी और बिना बांह का भी। भारत की तरह जर्सी पर सर्दियों में पहने जाने वाले गरम कपड़े का ठप्पा नहीं लगा है। दुनियाभर के खिलाड़ियों की पहचान उनकी जर्सी के रंग और नंबर के आधार पर ही होती है।
दिलचस्प यह कि जिस वर्स्टेड ऊनी वस्त्र के लिए जर्सी का नाम ख्यात हुआ, वहीं ऊन की एक खास किस्म का वर्स्टेड नाम भी एक ब्रिटिश गांव के नाम पर ही ख्यात हुआ है। उत्तर पूर्वी ब्रिटेन के एक प्रान्त नॉरफॉक के वर्स्टेड गांव में बारहवीं सदी के आसपास बुनकर बिरादरी पनपी और उनके द्वारा तैयार भेड़ की नफीस ऊन ने इस देहाती नाम को फैशन की दुनिया में शोहरत दिलाई। ध्यान रहे है, दुग्धक्रान्ति के दौर में अपने देश में सर्वाधिक दूध देने वाली जिस जर्सी नस्ल की गाय का हल्ला था, उसका जन्म भी इसी जर्सी द्वीप पर हुआ था। सम्पूर्ण संशोधित और विस्तारित पुनर्प्रस्तुति
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22 कमेंट्स:
पंजाब में कई लोग अभी भी पसीना को परसीना बोलते हैं .
@बलजीत बासी
पंजाबी समेत कई भाषाओं में संस्कृत के उपसर्गों का रूप बदल जाता है। इसी के तहत "प्र" उपसर्ग का उच्चारण "पर" हो जाता है।
प्रलय-परलय, प्रगट-परगट, प्रदोष-परदोश, प्रणाम-परनाम आदि उदाहरण आम है। और भी कई हैं।
१.पंजाबी में स्वेटर बिना बाजु वाला उनी पहनावा है.
२.बाजु वाले सभी (जर्सी,पुलोवर, कार्डिगन ) कोटी कहलाते हैं.
क्या हिंदी में कोटी शब्द नहीं चलता ?
nice
आलेख के साथ साथ टिप्पणी भी जानकारीपूर्ण मिल रही है...आभार.
"संस्कृत-हिन्दी के स्वेद और अंगरेजी के स्वेट शब्द में गहरी रिश्तेदारी है
और इससे ही जन्मा है स्वेटर।"
बिल्कुल सही!
संस्कृत ही सब भाषाओं की जननी है
रोज की तरह रोचक जानकारी
स्वेद और स्वेट के संबंध में सोचा करता था - पुख्ता तौर पर समझ गया । आभार ।
'स्वेद' और 'स्वेट' तो मालूम थे किन्तु दोनों का अन्तर्सम्बन्ध इस पोस्ट से मालूम हो पाया।
आयुर्वेद में स्वेदन एक चिकित्सकीय प्रक्रिया है। कोटी का खूब याद दिलाया। हमारे तो नगर का नाम ही कोटा है। कोटी शब्द हिन्दी में भी प्रचलित है, पर कम।
बहुत अच्छी और रोचक जानकारी....
हेमंत कुमार
स्वेटर ,जर्सी ,पुलोवर का जिक्र पढ़ते ही पसीना आने लगा . शायद इसीलिए आज ठण्ड कम महसूस हो रही है
नातिन का स्वेटर बुन रही हूँ बुनते हुये आपकी पोस्ट याद आती रहेगी और उसे बताऊँगी स्वेटर शब्द की उत्पति । धन्यवाद
अच्छे आलेख के साथ अच्छी टिप्पणीयां पढ कर ज्ञानवर्धन हुआ।आभार।
इतनी जानकारी कहाँ से जुटा लेते हैं, आप !
बहुत बढ़िया.
लेकिन आप लिखते है, पढ़ते भी हैं, लिंक भी लगाते हैं, फिर टिपियाने से क्यों बचते हैं ?
अजित जी,
स्वेद और स्वेट...क्या ये गोरी चमड़ी वाले शब्द-चोर भी रहे हैं...
रही जर्सी की बात तो एक मोहतरमा अपने शौहर के लिए जर्सी खरीदने पहुंची..दुकानदार ने शौहर के गले का नाप पहुंचा...मोहतरमा ने कहा...नाप का तो ठीक से नहीं पता लेकिन उस निगोड़े का गला मेरे दोनों हाथों में पूरा आता है...
और आपके आदेशानुसार मेरा ई मेल है- Sehgalkd@gmail.com
जय हिंद...
बलजीत जी, पंजाबी शब्द और भाषा का अच्छा ज्ञान रखते हैं. परन्तु वे क्षेत्रीय पूर्वाग्रहों से ग्रसित मालुम लगते हैं. उनके प्रश्न
क्या हिंदी में कोटी शब्द नहीं चलता?
कोटी शब्द हिंदी के ही व्यव्हारिक शब्द है और इसी पहनावे के सन्दर्भ में खूब प्रचलित भी हैं. पूरी तरह से ढकने ओढने के भाव लिए हमारा एक शब्द है 'ओट' इसके ऊपर यदि हम कोई आवरण या रंग चढ़ा दे तो यह बन जाता है कोट. पहनावे के क्रम में यही कोटी कहलाता है. कमर या पेट पर बाँधा जाने वाला वस्त्र भी हिंदीभाषी क्षेत्रों में पेटीकोट कहलाता है.
ध्यान देने योग्य बात है की हिंदी या हिंदी ध्वनि जैसी अन्य भाषाओ में तद्भव शब्दों का व्यापक इस्तेमाल मिलता है. केंद्रीय भूमिका में यहाँ इस सफ़र में वडनेकर जी का प्रयास कुछ ऐसा दिखता है की वे अनेक बोल चाल वाली तद्भव, देसज और विदेसज़ शब्दों के मूल तत्सम शब्दों को तलाशते हुए संस्कृत के धातु तक पहुँचते है. अंग्रेजी की बात मैं नहीं जानता.
- सुलभ जायसवाल 'सतरंगी'
और हाँ, मेहनत की कमाई, पसीने और अत्याचार मालिक पर एक शे'र याद आया -
हम पसीने अपना बहाते है तुम हक मार जाते हो
रगों में हमारे खून नहीं अब सुलगता अलाव देखो
चलिए इसी बहाने अपने दुष्ट नेताओं को धमकी भी दे देता हूँ
"होश में आओ रहनुमाओं वरना इन्किलाब देखो !!"
- सुलभ
अजित जी
शब्दों के फंदों से स्वेटर क्या शब्द का पूरा इतिहास ही लिख दिया आपने तो .ज्ञानवर्धक और रोचक .
यह तो मुझे मालूम है कोटी शब्द हिंदी में है ,लेकिन क्या यह उन के बुने हुए आवरण केलिए व्यापक रूप में इस्तेमाल होता शब्द है यह मेरा संदेह है .जो शब्द अजित जी ने बताए वह सभी पंजाब में भी हैं .सभी जगह पढ़े लोग हर चीज के विशेष अंग्रेजी के शब्द ही इस्तेमाल करते हैं.हाँ पंजाब में सदरी मैं ने कभी नहीं सुना. ऐसी चीज को यहाँ "फतुही" कहा जाता है.
@सुलभ सतरंगी
सुलभ भाई,
बलजीत जी की टिप्पणी में पूर्वाग्रह जैसी कोई बात हमें तो नजर नहीं आई। उन्होंने सिर्फ जिज्ञासा जाहिर की है कि क्या कोटी हिन्दी में भी उन्हीं अर्थों में प्रचलित है?
कोटी शब्द हिन्दी का नहीं है। आपने जो संदर्भ दिए हैं उनमें ओट शब्द ही हिन्दी का है। कोटी, कोट, पेटीकोट ये सभी विदेशज मूल से आए हैं। इसके बारे में विस्तार से अगली पोस्ट में लिखूंगा।
शुभकामनाएं
@अजित जी, बलजीत जी
मेरी जिज्ञासा शांत करने के लिए आपका शुक्रिया. बाकी इस आलेख से सम्बंधित अभी भी इतने सारे शब्द हैं की संशय और कन्फ्यूजन होना वाजिब है.
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