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Tuesday, February 2, 2010
ग्रैमी, फोनाफोनी और भुनभुनाना
डि जिटल संगीत के ज़माने में आज ग्रामोफोन की बात करना ज़रूरी लगता है। गोल घूमती लाख की तश्तरी और उस पर उभरती भोंपू की आकृति के भीतर किसी ज़माने में रूमानियत का एक भरापूरा संसार समाया था। शौकीनों के यहां आज भी ग्रामोफोन का बाजा रखा मिल जाएगा। ग्रामोफोन का अगला रूप टेप रिकार्ड हुआ। फिर इसकी जगह वाकमैन ने ली और आज ज़माना आईपॉड का है। ग्रामोफोन शब्द से पहले बना था फोनोग्राम जो दो शब्दों फोन और ग्राम से मिलकर बना है। फोनोग्राम से अभिप्राय ध्वनि संकेतों के मुद्रित रूप से है। अंग्रेजी का फोन शब्द आज दुनियाभर में सर्वाधिक प्रचलित शब्दों में है। भारोपीय मूल के इस शब्द की छाया कई रूपों में नजर आती है जैसे ग्रामोफोन, फोनोग्राम, फोनोग्राफ, फोनेटिक्स, फोनीम, टेलीफोन, लिंग्वाफोन, मेगाफोन जैसे न जाने कितने शब्द इस श्रंखला से जुड़े हैं। संगीत के क्षेत्र का विश्व सम्मान ग्रैमी भी इसी मूल से उपजा है।
अंग्रेजी का फोन शब्द मूलतः ग्रीक भाषा के phone से आया है जिसका अर्थ है ध्वनि, वाक् , आवाज़, कहना आदि। ग्राम शब्द भी ग्रीक मूल से उपजा है जिसका मूल भी ग्रीक भाषा का ग्राम्मा है जिसका अर्थ है अल्पभार या किसी लिपि का अक्षर। इसकी मूल धातु है graphein जिसमें दर्ज करने, उत्कीर्ण करने, लिखने का भाव है। ग्राम शब्द का वजन की लघुतम इकाई के तौर पर पहले फ्रैंच भाषा में इस्तेमाल शुरू हुआ उसके बाद ध्वनि, लिपि और भार के अर्थ में इसका अंग्रेजी में भी इस्तेमाल होने लगा। अठारहवी सदी के शुरुआती दौर में अंग्रेजी में फोनोग्राफ शब्द अंग्रेजी में सुनाई पड़ना शुरु हुआ जिसमें बोले गए शब्द के अंकन का भाव था यानी आशुलिपि या शार्टहैंड की तरह। बाद मे इसमें ध्वनिसंकेतों के अंकन का भाव जुड़ा। इसी कड़ी में फोनोग्राम शब्द भी आता है। एडिसन ने अपने प्रसिद्ध आविष्कार को फोनोग्राफ नाम ही दिया था। बाद में जब एलिनर बर्लिनर ने चपटी डिस्क वाले भौंपू का आविष्कार किया तब से उसे ग्रामोफोन कहा जाने लगा।
फोन शब्द का भारोपीय मूल है भा bha जिसमें बोलना, कहना जैसे भाव हैं। संस्कृत में इसकी रिश्तेदारी भण् से है जिससे भने भणति का अर्थ भी कहना, सुनना होता है। मालवी राजस्थानी में भण शब्द इन्ही अर्थों में मौजूद है। संस्कृत की भण् bhan धातु से जिसका मतलब होता कहना, पुकारना,शोर मचाना, ध्वनि करना। जब बहुत कुछ कहने-सुनने को कुछ नहीं रहता तब भी अक्सर हम कुछ न कुछ कहते ही हैं जिससे भुनभुन करना या भुनभुनाना कहते हैं। जाहिर है इसका पूर्व रूप भणभण रहा होगा। कहने की ज़रूरत नहीं कि मच्छर जैसा तुच्छ जीव के पंखों की गुंजार-ध्वनि को हमने भिन-भिन नाम दिया और इस क्रिया को भिनभिनाने की व्यंजना दी वह इसी भण् धातु से आ रही है। फोन शब्द से हिन्दीवालों ने भी कुछ महावरे बना लिए जैसे फुनियाना यानी फोन पर बतियाना जबकि फोनाफोनी में बतियाने के साथ किसी मामले पर त्वरित भाव से फोन पर दिशानिर्देश या फोन पर उस मामले को तूल देने का भी भाव है। भारोपीय भा धातु एक अन्य अंग्रेजी शब्द में नज़र आती है जिसका प्रयोग भी हिन्दी में खूब होता है। मशहूर, प्रसिद्ध के अर्थ में फेमस, फेम जैसे शब्द अब सिर्फ अंग्रेजी के नहीं रह गए। फेमस शब्द बना है फेम fame से जो लैटिन के फैमा से बना है जिसमें वार्ता, चर्चा आदि का भाव है। इसका मूल भी भा ही है। बाद में फैमा के साथ समाचार, ख्याति, शोहरत, बातचीत आदि भाव भी जुड़ते चले गए क्योंकि चर्चा का विषय बनते हुए ही लोग चर्चित, ख्यात होते जाते हैं। फेम का ही अगला रूप फेमस हुआ।
लोकप्रिय संगीत के विश्वस्तरीय सम्मान को आज ग्रैमी अवार्ड्स के नाम से जाना जाता है। ग्रैमी अवार्ड्स की स्थापना अमेरिका की द नेशनल ऐकेडमी ऑफ रिकॉर्डिंग आर्टस् एंड साइंसेज़ ने 1957 में की थी जिसका उद्धेश्य संगीतकारों और रिकार्डिस्टों को संगीत के सुरीले सफर में उनके योगदान के लिए पुरस्कृत करना था। पुरस्कार का नाम चुनने के लिए ग्रामोफोन के ग्राम से ही ग्रैमी शब्द चुना गया। दरअसल इसके मूल में अमेरिकन एकेडमी ऑफ टेलीविज़न आर्ट्स एंड्स साइंसेज द्वारा स्थापित एम्मी अवार्ड से नाम साम्य बैठाना था। इस अवार्ड के रूप में जो पदक दिया जाता है उसमें ग्रामोफोन की रूपकृति ही है।
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12 कमेंट्स:
तो ये बात है.. फोन और भिनभिनाने का आपस में संबंध है... बढि़या रहा। जय हो ...
कल ही ग्रेमी देखा और आप आज हाजिर..राकेट स्पीड.
बहुत अच्छा लगा यह जानकारी पाकर.
बड़ी पुराणी याद दिलाई आज.
गोल घूमती लाख की तश्तरी को पंजाब के गाँव के लोग 'तवा' बोलते थे. ग्रामोफोन को 'रेडुआ' भी बोला जाता था.
भारोपीय मूल भा से ग्रीक और लातीन के जरिये अंग्रेजी के फेट , फेब्ल, प्रिफेस,कैकोफ़ोनि, उर बैन भी बने है. पंजाबी में फजूल
बातों को 'भसड़ भसड़' करना बोलते हैं. खली कमरा भाँ भाँ करता है. कोई बात बनी अजित जी , या मैं भसड़ भसड़ ही कर रहा हूँ? बलजीत बासी browser poblem
अच्छी जानकारी..
सुन्दर और उपयोगी जानकारी.
रोचक और बेहतरीन विश्लेषण ! आभार ।
देह से इतर ,ध्वनियों पर नियंत्रण / रूपांतरण के मानवीय प्रयास पश्चिम में सफल हुए तो नामकरण भी वहीं से आना था अब ग्रीक और अंग्रेजी से शब्द ग्रामोफ़ोन बना तो बात जमती है लेकिन उससे भी मजेदार बात यह है कि प्रारंभिक इलेक्ट्रानिक उपकरण भी शुरू होते समय इस तरह का स्वर उत्सर्जित करते थे जैसे भंवरे , मक्खियों और मच्छरों की जगत व्याप्त ध्वनियां और हमारा भुनभुनाना ! इस लिहाज़ से इलेक्ट्रानिक उपकरणों , कीटों और मनुष्यों के मध्य गज़ब का ध्वनि साम्य हुआ 'भुन' ... भले ही देश , स्थान या समय कोई भी हो ! इसे संस्कृत के भण् धातु से जोड़कर देखना मुझे अधिक महत्वपूर्ण लगा !
आजकल फोन पर भुनभुनाने के अलावा कोई काम बचा ही नहीं है
बलजीत प्राजी,
ये टिप्पणी तो देख ही नहीं पाया था। भसड़ भसड़ हिन्दी में भी खूब प्रचलित है।
मेरे ख्याल से यह देशज शब्द है। भसर भसर रूप भी इसका है। इसके मूल में लगातार जीभ चुभलाने, जबड़ा चलाने, चबाने, बोलने, चबर-चबर करने का भाव है।
ज्यादा ऊंची हांकनेवाले को पूर्वी बोलियों में भसोड़ी भी कहते हैं। खाना और बोलना ये दो मनुष्य की आदिम इच्छाएं रही हैं जिनके बिना वह उदास हो जाता है:)
बाकी खोज जारी है।
जैजै
बौद्ध काल के प्रिष्ठ्भूमी पर लिखी एक उपन्यास पढ़ रही थी और उसमे गुरुकुल में गुरु द्वारा शिष्य के लिए "भंते" शब्द का संबोधन जब देखा,तो यही अंदाजा लगाया था कि उस समय के गुरुकुल में जब सुनकर सबकुछ सीखने की प्रथा थी,तो भंते शब्द का प्रयोग इसी अर्थ में किया जाता होगा...
आज आपकी यह पोस्ट पढ़,यह कुछ और स्पष्ट हुआ...
सदैव की भांति ज्ञानवर्धक,उपयोगी आलेख..
बहुत अच्छी जानकारी धन्यवाद्
राजस्थानी में पढने के लिये एक शब्द और प्रचलित है वह है भणना। मुहावरा भी है कि भणिया पढिया री होड़ नी व्है। एक और भी है कि भणीया पण गणिया कोनी। मतलब पढ तो लिये पर समझ नही आई।
इसी से शायद भंते शब्द निकला होगा।
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