Tuesday, February 9, 2010

हुजूर, अंगूर नहीं, खट्टे हैं खजूर…

grapes320

समें कोई शक नहीं कि दुनिया की हर भाषा में शब्दों का कारवां सचमुच सौदागरों ने ही आगे बढ़ाया। ये सौदागर ही थे जो लोगों की रोज़मर्रा की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए दूर-दराज़ देशों से जोखिम उठाकर माल असबाब लाया करते। इनके जरिये ही लोग दुनिया जहान की चीज़ों, बोलियों और रीति-रिवाज़ों से परिचित होते। खाने-पीने की कितनी ही वस्तुओं के नाम आज दुनियाभर में मशहूर हैं वे इन्ही सौदागरों की वजह से है। सौदागरों में सबसे मशहूर हुए हैं अरब के सौदागर क्योंकि समुद्री यात्राओं में इनके जैसा पूरे एशिया में कोई ओर नहीं था। पश्चिमी दुनिया को भारतीय मसालों से परिचित कराने का श्रेय इन्हीं अरब सौदागरों को जाता है। हालांकि तब अरब का क्षेत्र अरब नाम से नहीं जाना जाता था। आज से चार हजार साल पहले से यूरोप और पूर्वी एशिया में सामुद्रिक मार्ग से व्यापारिक रिश्ता कायम था। फोनेशियाई लोग इसमें माहिर थे। अरबी संस्कृति में जो कुछ भी आज पूर्वी एशियाई असर है उसमें इन फोनेशियाई व्यापारियों का भी योगदान है।
भारतीय खान-पान की एक खासियत उसका खट्टा-मीठा-चरपरा होना है। उत्तर की ओर जहां तीखा-चरपरा स्वाद बढ़ता जाता है वहीं दक्षिण की ओर बढ़ते हुए उसमें खटास की मात्रा बढ़ने लगती है। खटाई के लिए प्राचीनकाल से भारत में इमली का प्रयोग होता है। इमली में खट्टापन होता है इसीलिए इसका नामकरण इमली हुआ। यूं नामकरण के आधार पर इमली को आँवले की बहन कहना चाहिए। संस्कृत में इमली को अम्लिका कहते हैं जो अम्ल से बना शब्द है। अम्ल का अर्थ होता है खट्टा, तिक्त स्वादयुक्त। अम्ल शब्द बना है संस्कृत धातु अम् से जिसमें शीघ्रता का भाव है। अम् का एक अन्य अर्थ होता है कच्चापन। गौर करें जितने भी मीठेफल होते हैं वे अपनी कच्ची अवस्था में खट्टे, तीते या कड़ुए स्वाद वाले ही होते हैं। आम के कच्चे रूप को देसी ज़बान में अमियां ही कहते हैं जिसमें से कच्चापन झांक रहा है। कच्चापन एक किस्म की खटास पैदा tamarind_tree_fruits_6करता है जो जीभ को तो सुहाती है मगर व्यवहार को नहीं। मन तभी खट्टा होता है जब किसी का बर्ताव बुरा लगे। किसी का व्यवहार तभी बुरा लगता है जब उसमें परिपक्वता न होकर कच्चापन हो। इस कच्चेपन में शीघ्रता या जल्दबाजी झांक रही है। कच्चाफल खाना एक किस्म की जल्दबाजी ही है, क्योंकि फल के पकने तक  इंतजार नहीं करना चाहते। जल्दबाजी में कच्चापन हाथ आता है। कच्ची या अधपकी चीज़ से हमेशा नुकसान होता है। इसीलिए कहते हैं कि सहज पके सो मीठा होय। इमली के खट्टेपन के पीछे इमली का कच्चापन नहीं बल्कि अम् धातु में निहित कच्चेपन का अर्थ है। इमली तो पकने के बाद भी खट्टी ही होती है और कच्ची भी खट्टी ही होती है। खटास के लिए भी अम्ल शब्द का ही प्रयोग होता है। एसिड यानी अम्ल। इसी अम्ल से बना है आमलकः जिसका देशज रूप हुआ आँवला। इसी तरह आम का मूल भी यही अम् धात है। हमारे यहां जितना लोकप्रिय आम है उससे ज्यादा मशहूर इससे बना मसाला अमचूर (आम्रचूर्ण)है।  प्रसंगवश बताते चलें कि हिन्दी में खट्टा, खटास जैसे शब्द संस्कृत के कटु से बने हैं जिसका अर्थ होता है तेज़, तीखा, तिक्त, कड़ुआ, आम्लिक, तेज़ गंधयुक्त आदि। खट्टापन भी तीक्ष्ण असरवाला होता है इसलिए तिक्त के अर्थ में कटु शब्द इसके लिए प्रचलित था। बाद में लोकमानस ने खट्टे के अर्थ में कटु से ही खट्टा शब्द बनाया और कड़ुआ शब्द भी इसी कटु से बना लिया।
गौरतलब है इमली, आँवला और अमचूर का शुमार भी भारतीय मसालों में होता रहा है। अरब व्यापारी जब भारत आए तो सबसे पहले दक्षिण-पश्चिमी तटवर्ती इलाकों में ही उनके जहाजों ने लंगर डाला था। बाद में गुजरात तट से भी उनका कारोबार चलने लगा। मज़े की बात यह कि पश्चिमी दुनिया को इमली की खटास से परिचित कराने का काम इन्हीं अरब सौदागरों ने किया। अरबों ने दक्षिण भारत में जब रसम का स्वाद चखा तो वे इसकी खटाई के शैदाई बन गए। वैसे राजस्थान में इमली को आमली कहते है और उससे बनने वाला रसीला पेय अमलाना कहलाता है जो लू का रामबाण इलाज है। इसमें गुड पड़ता है। बहरहाल, जब अरबों को इमली की जानकारी मिली तब उनकी कारोबारी बुद्धि सक्रिय हुई। उन्हें लगा कि निश्चित ही भोजन को और ज़ायकेदार बनाने में इमली बेहद ज़रूरी पदार्थ है और वे पश्चिमी दुनिया को इससे परिचित कराने के बारे में सोचने लगे। यहां समस्या थी कि इमली को अरब में क्या कह कर बेचा जाए। आखिर इमली नाम से वहां इसे कौन खरीदेगा? या इसका निहितार्थ उन्हें कितना समझ में आएगा। व्यापारी के पास हर समस्या का इलाज होता है। अरबों ने पाया कि इमली का रंग और आकार बहुत कुछ सूखे हुए खजूर कि कुछ किस्मों से मिलता-जुलता था। सो उन्होंने इसे तमर ऐ हिन्द कहा अर्थात हिन्दुस्तानी खजूर। उन्हें पता था कि अरब में खजूर सबसे लोकप्रिय फल है। इसी नाम का प्रयोग किसी अन्य देश से आए फल के लिए करने से उसकी लोकप्रियता भी बढ़ने की संभावना थी। यही हुआ। तमर ए हिन्द tamar e hind या तम्र उल हिन्द tamr-ul Hind अरब में मशहूर हो गई। बाद में अरब सौदागरों ने इसे भूमध्यसागरीय व्यापार के जरिये यूरोप तक पहुंचा दिया।
ध्यान दें कि अरब में खजूर को तम्र कहा जाता है। उर्दू-फारसी में इसका रूप तमर हो जाता है। मद्दाह के कोश में देखें तो तमर शब्द का अर्थ सूखा हुआ खजूर मिलेगा जबकि उसके नीचे ही तमर-हिन्दी शब्द मिलेगा जिसके आगे उसका अर्थ इमली लिखा गया है। भाषाविज्ञानी तम्र को सेमिटिक मूल का शब्द मानते हैं। कोशो में खजूर के अर्थ में तम्र का उद्गम हिब्रू के तमर tamar से बताया जाता है जिसका अर्थ एक किस्म का ताड़ का वृक्ष ही है। मुझे लगता है हिब्रू तम्र और अरबी तमर जैसे शब्द भी भारतीय मूल से उपजे हैं और हजारों वर्ष पूर्व फोनेशियाईयों की व्यापारिक गतिविधियों का हिस्सा बनते हुए सामी भाषाओं में दाखिल हुए। संस्कृत में ताड़ प्रजाति का एक प्रसिद्ध वृक्ष है तमाल जिसका साहित्य से लेकर आयुर्वेद तक उल्लेख है। “तरणि तनुजा तट तमाल तरुवर बहु छाए” जैसे पद्य में अनुप्रास  की छटा के साथ तमाल की छाया भी साफ दिख रही है। तमाल का अर्थ होता है जो काली छाल वाला हो। तमाल की एक किस्म से तेजपत्र होते हैं जिसका शुमार भी भारतीय मसालों में होता है। तेजपत्ता या तेजपान को तमालपत्र भी कहा जाता है। संस्कृत में तम् धातु में कालापन या अंधेरे का भाव है। यह तमाल ही हिब्रू का तम्र और अरबी का तमर है। यह आश्यचर्यजनक है कि एक palm भारतीय फलदार वृक्ष के नाम पर सुदूर पश्चिम एशिया में उगनेवाले उसी जाति समूह के एक अन्य वृक्ष, जिस पर खजूर उगते हैं, का नामकरण हुआ। फिर सुदूर पश्चिम से व्यापारी आते हैं और इमली की सादृश्यता तम्र से जोड़ते हैं जो मूलतः भारतीय आधार से उठा शब्द है। फिर इमली तमर-उल-हिन्द बनकर अरब पहुंची। वहां से स्पेन होते हुए यह ब्रिटेन पहुंची और इसका रूपांतर तब तक टैमरिंड tamarind (tamar-ind) अर्थात इमली हो चुका था।
प्रसंगवश बताते चलें कि महाराष्ट्र में इमली का प्रयोग खूब होता है। हालांकि वहां खानपान में खटास के लिए कोकम का प्रयोग भी किया जाता है। इमली और कोकम दोनों का शर्बत भी प्रसिद्ध है। मराठी में इमली को चिंच कहते हैं। संस्कृत में एक शब्द है चिञ्चा जिसका मतलब होता है इमली का पेड़ या उसका फल। मराठी में भी इमली का शुद्ध रूप चिञ्च ही है। मगर मराठी व्युत्पत्ति कोश में कृ.पा. कुलकर्णी इस शब्द को द्रविड़ मूल का मानते हैं और फिर उसका संस्कृत में प्रवेश हुआ बताते हैं। संस्कृत में तिन्तिड़िका, तिन्तिड़ी या तिंतिलिका एक वृक्ष का नाम है जिसका अर्थ है इमली का पेड़। भाषाविज्ञानियों का कहना है कि द्रविड़ चिञ्चा का चेहरा चिञ्चिणी,तित्तिंणी में बदला फिर इस शब्द का संस्कृत रूपांतर बतौर तिन्तिड़िका, तिन्तिड़ी या तिंतिलिका में हुआ होगा। छत्तीसगढ़ के  बस्तर में इमली को तितिर कहते हैं और बंगाल में इमली को तेंतुली कहते हैं जो इसके द्रविड़ मूल से होने की पुष्टि करते हैं। एक खास बात और। मालवा में एक खेल खेलते हैं अष्टा, चंगा, पो। यह चौपड़ की तरह होता है और मोहरों से खेला जाता है। पासे के रूप में  इसमें इमली के बीज के दोनो हिस्सों से गणना की जाती है जिसे चिंयाँ कहते हैं। यह माना जा सकता है कि मालवी में इमली के बीजों को चिंयाँ कहा जाता है जो मूलतः चिंञ्चा का ही देशज रूप है। 
पुछल्ला-भोपाल का एक पॉश इलाका है चार इमली जहां अधिकांश भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी रहते हैं। चार इमली से ऐसा लगता है जैसे यहां इमलियों के चार पेड़ हों। दरअसल एक सदी से भी पहले किसी वक्त यहां इमली के पेड़ों की बहुतायत थी जहां चोर आकर छुपते थे या अपना माल छुपाते थे। इसीलिए आसपास के इलाके में इसे चोर इमली कहा जाने लगा। बाद में चोर से समानता न बैठा पाने की वजह से इसे चार इमली कहा जाने लगा। शायद इसके पीछे यह वजह भी रही हो कि आला अफ़सर चोर इमली मं बसते अच्छे नहीं लगते। लोग पता नहीं क्या क्या मायने निकालते।

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19 कमेंट्स:

Sanjay Kareer said...

भले ही खट्टे सही... कम से कम एक फोटो तो अंगूरों की भी लगाते बड़े भाई। लेकिन पढ़ कर मुंह की हालत खराब हो गई... :)

Udan Tashtari said...

बहुत जानकारीपूर्ण..आभार!

अविनाश वाचस्पति said...

वैसे भी अंगूर में अ है
इसलिए भी अच्‍छे हैं
आम में भी जुड़े हुए
अ के लच्‍छे हैं

खजूर का ख
उसे खट्टा बनाता है
और आंवला, इमली, अमचूर की
उपयोगिता बतलाता आपका सफर
सदा खट्टे मीठे का अद्भत स्‍वाद
मन में भीतर तक बहाता है।

अमिताभ मीत said...

आप की जानकारी को क्या कहूँ ? कमाल है !!

रवि रतलामी said...

चार इमली का अर्थ आज समझ में आया! वैसे तो, हाल ही की खबरों को मानें तो चार इमली क्या, 74 बंगले, 45 बंगले, सिविल लाइन्स सभी में चोर बसते हैं आजकल :(

आपको आपकी किताब प्रकाशन हेतु बधाई. वैसे इसे दो-एक साल पहले नहीं निकल जाना था?

उम्मतें said...

आप भाषा के प्रति संवेदनशील ना हों तो समझ में ही नहीं आयेगा की संस्कृति और भाषाओं की समृद्धि में वणिकों और यायावरों का योगदान कितना महत्त्वपूर्ण है ! यह जानना मजेदार है कि कारोबारी बुद्धि नें खट्टेपन को मीठा नाम दिया ! फिर तमर-उल-हिंद का स्पेन या ब्रिटेन में टैमरिंड(tamar-ind) हो जाना ...वाव... गोया शब्द भी इंसानों जैसे जहां पहुंचे ...दिल मिले...वहीं बस गये !

यहां बस्तर में इमली को "तितिर" कहते हैं जो इसके द्रविड़ियन मूल की पुष्टि करता है !

bijnior district said...

बहुत लाभप्रद जानकारी:

दिनेशराय द्विवेदी said...

बाराँ में शहर के बाहर नदी के किनारे एक बाग था जिसे ठाकुर का बाग कहते थे। वहाँ बहुत पेड़ थे इमली के हम वहाँ "गुलाम लकड़ी" खेलने जाया करते है।

निर्मला कपिला said...

बहुत कमाल की जानकारी है धन्यवाद्

किरण राजपुरोहित नितिला said...

वाह भाईसाहब वाह !!!!!!!!!
आज की जानकारी तो कमाल की है, आपको नमन है .
एक तो हमें इमली इतनी पसंद है उसपर आपने रसीली इमली की फोटो लगा दी अब पोस्ट पढ़े या इमली देखे !!!!!!!!

किरण राजपुरोहित नितिला said...

एक बात रह गई . राजस्थान में इमली को आमली कहते है और उससे बनने वाला रसीला पेय अमलाना . जो लू का रामबाण इलाज है.इसमें गुड पड़ता है;

Himanshu Pandey said...

पुछल्ले के छल्ले से सजा यह आलेख बेहद खूबसूरत है । सर्वांगीण अध्ययन, बेहतरीन विश्लेषण । आभार ।

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

इमली का जिक्र और मूह में पानी का भी कोई रिश्ता है क्या

पहले चार इमली में चोर छिपाते थे पैसा अब उनके घर बन गए

Baljit Basi said...

बहुत दिनों बाद आपका यह भरपूर और तस्सली देने वाला लेख पढ़ा.लम्बा होने की वजह से आप मुहावरे नहीं दे पाए. कुछ देने की कोशिश करता हूँ,पता नहीं हिंदी में हैं या नहीं. आम को पंजाबी
में अम्ब बोला जाता है.
आम के आम गुठलियों के दाम
आम लेने है,या पेड़ गिनने है.
अम्ब लैना (तू मेरे से क्या आम लेना है ? अर्थात तेरा मेरा क्या लेना देना)
तूं काहदा पटवारी, कि मुंडा मेरा रोवे अम्ब नुं! (लोक गीत)
जिउ कोकिल कउ अम्बु बालहा तिउ मेरै मनि रामईआ - भगत नामदेव
अम्बाला शहर भी कहते हैं अम्ब से बना.
सियाने का कहा और आमले का खाया, बाद में सुआद देता है.
दिल्ली कितनी दूर है? जितनी लम्बी खजूर है.
अंग्रेजी का मैंगो mango भी तमिल से गया. तमिल: मंके{मं(आम)+के(फल)} > पुर्तगीज मंगा> अंग्रेजी मैंगो mango
अजित जी गुरबानी में 'अमिउ', शब्द बहुत बार आया है जिसको अमृत से बना माना जाता है, क्या इसका आम या इसके रस रिश्ता हो सकता है?

भाठी भवनु प्रेम का पोचा इतु रसि अमिउ चुआईऐ - गुरु नानक

Baljit Basi said...

पिछों सुझी
आपके पुछल्ला से याद आया, हमारे एक पंजाबी के व्यंगकार ने अंग्रेजी PS(Post Script)की तर्ज़ पर पंजाबी शब्द घड दिया : पिछों सुझी

अजित वडनेरकर said...

शुक्रिया बलजीत भाई,
बहुत दिनों बाद आपकी ओर से भी तसल्ली देनेवाली प्रतिक्रिया मिली है:)

इस पोस्ट में आम और आंवला तो प्रसंगवश आया है। इन पर निश्चित ही अलग से पोस्ट बनाने का बहुत पहले से तय था पर रिश्तेदारी न बताना भी प्रस्तुत पोस्ट को अपूर्ण बनाता। आम जैसे महत्वपूर्ण फल का एशियाई मूल खासतौर पर इसकी भारतीय पहचान पर तो यकीनन एक अलग पोस्ट बनाने की तैयारी बहुत पहले से थी, पर इस इमली ने मुंह में पानी ला दिया जब घर में ही चिञ्च शब्द सुना।

कहावतों और मुहावरों की बाबत आपका क़यास सही है। मेरी एक पोस्ट अमूमन 800 शब्दों की होती है जबकि यह 1200 शब्दों की बन गई थी। दो हिस्सों में तोड़ा नहीं जा सकता था, इसलिए यह काम नहीं किया। आपने जिन कहावतों-मुहावरों का उल्लेख किया है वे अधिकांश पंजाबी के हैं मगर दिलचस्प हैं। पोस्ट को अपडेट करते वक्त निश्चित ही इनका उपयोग करना चाहूंगा।

आभार....

अजित वडनेरकर said...

बलजीत भाई,

आपने पूछा है कि गुरबानी में 'अमिउ', शब्द बहुत बार आया है जिसको अमृत से बना माना जाता है, क्या इसका आम या इसके रस रिश्ता हो सकता है?
गुरबानी का जो प्रसिद्ध उद्धरण दिया है-
भाठी भवनु प्रेम का पोचा इतु रसि अमिउ चुआईऐ - गुरु नानक

मेरा मानना है कि यहां अमृत से ही रिश्ता है। संतों और सूफियों की बानी अपने विशिष्ट प्रतीकों की वजह से सहज बोधगम्य होती रही है। ये प्रतीक लगभग सभी संत कवियों ने आमतौर पर इस्तेमाल किए हैं जैसे अमृत, तिलक, चदरिया, आत्मा, मैल, माया, मोह, जीव, काया, प्रकाश वगैरा वगैरा....
सो इस तरह देखें तो सूफ़ियाना बात कहने के पीछे आम का प्रतीक कोई प्रभाव या खास अर्थ नहीं बताता जबकि अमृत से बने अमिऊ में सार है। वैसे भी अमृत तो एक पदार्थ मात्र है, उसका सार तो उसके गुण यानी रस होने में ही है।

रंजना said...

अद्भुद विवेचना...वाह...
बंगाल में इमली को तेंतुली कहते हैं...शायद यह उसी तिन्तलिका से निकला हुआ शब्द है..नहीं ????

खट्टी मीठी रसीली,इस सुन्दर शब्द विवेचना के लिए बहुत बहुत आभार..

Mansoor ali Hashmi said...

पिछों सुझी..............
पुछल्ले पे छल्ला!

इमली 'पक कर'* भी तो खट्टी ही की खट्टी ही रही,
चोर को चार किया, फिर भी न फितरत बदली,
शाखे ऊंची थी!, मिले फल [तमर] उसे जो आला* थे,
बदली सरकारे मगर फिर भी न किस्मत** बदली.

* सीनियर होकर, *i a s अफसर , **देश की

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