अन्धकूप दो शब्दों से बना शब्दयुग्म है। अन्ध+कूप। अन्ध बना है अन्ध् धातु से जिसमें गहरापन, कालापन, अन्धता, दिखाई न पड़ना, तमस आदि भाव है। अन्धकूप से तात्पर्य है ऐसा कुआं जिसमें कुछ दिखाई न पड़े। पर बात उतनी स्पष्ट नहीं है। सवाल वही है कि कुए में तो पानी दिखता है, अगर पानी नहीं है तो कुआं सूखा ही होगा। जाहिर है उसे सूखा कुआं कहना ज्यादा युक्तियुक्त होगा। जल के परावर्तक गुण पर गौर करें तो अंधकूप की गुत्थी सुलझती है। कुआं चाहे जितना गहरा हो या उथला, अगर उसमें पानी है तो उस पानी में आसमान से आती रोशनी की किरणें परावर्तित होती हैं। कुएं की जगत पर खड़े होकर भीतर के पानी में अपना चेहरा भी नज़र आता है। परावर्तन की वजह से ही कुए के भीतर एक आभासी दृष्यता कायम हो जाती है। कुएं की आंख उसका पानी है। पारदर्शिता पानी का वह गुण है जो उसकी निर्मलता को बड़ा आधार देता है। स्वच्छ स्फटिक के समान चमकदार, पारदर्शी जल की सतह पर ही छवियां भी निर्मित होती हैं। अतः स्पष्ट है कि जिस कुएं के भीतर कुछ दिखाई न देता हो, वही अंधाकुआं है। लोगों की प्यास बुझानेवाला कुआं भी अपनी जलदृष्टि से बाहर के जीवंत जाग्रत समाज को देखता है। जब कुएं की नेत्रज्योति ही समाप्त हो जाएगी तब न उसे कुछ दिखना है और न ही उस कूप में किसी अन्य को कुछ नज़र आना है। गौर करें कि हमारे नेत्र कोटर की तरलता भी जब खत्म हो जाती है, तब कम दिखाई देना शुरू हो जाता है। स्वार्थ के आगे भी आदमी अंधा हो जाता है। इसीलिए कहा गया है कि आंख का पानी मर जाना। यानी दृश्यता के लिए पानी का होना ज़रूरी है। यह पानी प्रतीक है तरलता का, गति का, पारदर्शिता का। जिस समाज में पारदर्शिता नहीं होगी, वह समाज अंधकूप ही है। तो यह है अन्धकूप का अर्थ।
अन्ध् से कई शब्द बने हैं जैसे अन्धकार जो अन्ध + कारः से मिलकर बना है। इसका प्राकृत रूप हुआ अंधआर और देशज रूप बना अंधेरा या अंधियारा। मराठी में यह अंधार है। बांग्ला, उड़िया में आंधार, गुजराती में अंधारु, अंधेरु, सिन्धी में अधारु, पंजाबी में संभवतः यह अन्हेरा है। दृष्टिहीन को हिन्दी में अंधा कहा जाता है जो अन्धक से बना है। भक्तकवि सूरदास देख नहीं सकते थे। दृष्टिहीन को प्रतीकात्मक रूप से सूरदास कहने का चलन हिन्दी में है। मनमांगी मुराद के संदर्भ में अंधा क्या चाहे, दो आंखे जैसी कहावत में दृष्टि का महत्व ही उभर रहा है। अंधेर के साथ फारसी का गर्दी प्रत्यय जुड़ने से बनता है अंधेरगर्दी। फारसी के गर्दी प्रत्यय में निरंतरता, क्रम, चक्कर का भाव है। इस तरह अंधेरगर्दी का मतलब है घोर अनाचार का सिलसिला और मनमानीपूर्ण व्यवहार। इसी क्रम में आता है अंधेरनगरी जैसा लोकप्रिय मुहावरा। जहां किसी किस्म के नियमकायदों की पालना न हो, अनाचार और तानाशाहीपूर्ण व्यवस्था जहां हो उसे अंधेरनगरी कहा जाता है। अंधेरनगरी, चौपट राजा कहावत भी ऐसे ही शासन के बारे मे है। ऐसे ही राज में बिचौलियों की बन आती है। अंधा बांटे रेवड़ी, फिर फिर आपन देय वाली कहावत से सिद्ध होता है कि जब अज्ञानी और अयोग्य के हाथों में अधिकार आ जाते हैं तब काबिल और भलेमानुसों के बुरे दिन शुरू होते हैं। अन्ध शब्द का उपसर्ग की तरह प्रयोग करने से कुछ अन्य शब्द भी हिन्दी में मुहावरों की अर्थवत्ता के साथ प्रचलित हैं जैसे अन्धश्रद्धा या अन्धभक्ति। किसी विचार या व्यक्ति के प्रति सम्मान या लगाव की भावना जब अतिरेक से परे चली चली जाए तो उसे अंधश्रद्धा या अंधभक्ति कहते हैं। भक्त शब्द बना है संस्कृत की भज् धातु से जिसका अर्थ है भाग, हिस्सा। इससे बने भक्त का अर्थ है जुड़ाव या लगाव। इसमें वि उपसर्ग लगने से बनता है विभक्त जो लगाव या जुड़ाव का विलोम है यानी बांटना, बंटा हुआ आदि। भक्त में मन, वचन, कर्म से किसी विचार या आराध्य से संप्रक्त या जुड़ाव का भाव है। यह भावना ही भक्ति कहलाती है। समाज में प्रचिलत विभिन्न चमत्कारों, महिमामंडन और धारणाओं के आधार पर अक्सर कोई व्यक्ति या वाद लोकमानस में ख्यात हो जाता है। बिना सोचे-समझे (मन की आंखे खोले बिना) जब लोग उससे जुड़ने लगते हैं उसे अंधभक्ति कहते हैं। आराध्य को ठीक से जाने-पहचाने बिना उसके पीछे चलने को अंधानुसरण है। समाज में प्रायः किसी न किसी नायक की छवि लोगों पर असर डालती है। लोग उसकी नकल करते हैं बिना यह जाने कि उसका वह रूप असली नहीं है, नायकत्व की छद्म छवि प्रभावी हो जाती है। यही अंधानुकरण है अर्थात किसी की देखादेखी, उसी के अनुरूप कार्य करना।
तेज रफ्तार के लिए अंधी रफ्तार शब्दयुग्म प्रचलित है। सामने देखे बिना तेज गति पकड़ने से दुर्घटना ही होती है। हाईवे पर अंधामोड़ लिखे हुए संकेतक अक्सर दिखते हैं। सीधी सपाट राह अगर अचानक मुड़ती है तो वहीं पर है अंधा मोड़ जिसे समझ पाना कुछ कठिन होता है, इसलिए वह नज़र नहीं आता। अंधी रफ्तार के साथ तो हरगिज़ नहीं। बिना यह जाने कि आगे परिस्थिति कैसी है, को अंधाधुंध चलना या भागना भी कहते हैं। यह बना है अंध+धुंध या अंध+धूम्र से। जिसका अर्थ है दिखाई न पड़ना। धुंध शब्द भी धूम्र से ही बना है। जब धुआं निकलता है तब आसपास की दृश्यता कम हो जाती है। सर्दियों में जब वातावरण की नमी सघन रूप लेती है तो उससे साफ दिखना बंद हो जाता है, जिसे धुंध कहते हैं। धूल भरी तेज हवाओं को आंधी या अंधड़ कहा जाता है जिसमें तेज रफ्तार हवा से उड़ते धूलकणों की वजह से कुछ दिखाई नही पड़ता है। प्रतिस्पर्धा के इस युग में हर कोई एक दूसरे से आगे निकलना चाहता है। इस बेलगाम भागमभाग को अंधीदौड़ कहते हैं।
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17 कमेंट्स:
शब्द ज्ञान पुष्ट हुआ. सार्थक प्रयास के लिये साधुवाद
कई शब्दों का वृहत अर्थ बताती आपकी सारी प्रविष्टियाँ हिंदी ब्लॉग्गिंग में सार्थक भूमिका निभाती हैं ...!!
अंधकूप भी जान लिया. धन्यवाद!
'अन्धकूप' की व्याख्या तो धुंधली धुंधली से मन में थी लेकिन जैसे आप ने समझाई, बस आखें ही खुल गई. यह आप की शब्द साधना का परिणाम है. वैसे यह भी सही है कि 'कूप', 'कूआं' या पंजाबी 'खूह' का अपना एक अर्थ बिना पानी का कूआं या 'खाई' भी होता है.
पंजाबी में अँधा को 'अन्ना' और अंधेरा को 'हनेरा'. लिखा जाता है. आप का लिखा 'अन्हेरा' भी बोलने के ज्यादा निकट है. दरअसल पंजाबी एक तानवी भाषा(tonal language) है जिसके कई शब्दों के उचारण का सुनने से ही पता चलेगा.
'अंधेर खाता', 'खूह खाता' या 'अँधा खाता' मुहावरे भी होते हैं जिन का मतलब 'बेकार यतन' कह सकते हैं.
एक कहावत है 'अँधा कुत्ता वाओ (हवा)को भोंके'(बेकार हाथ पैर मारना). 'अंधे हाथ बटेरा'( किसी को वह चीज़ मिलनी जिस के वह लायक न हो) भी होता है.
'अँधा मोड़' तो अंग्रेज़ी(blind corner/bend) का अनुवाद ही लगता है.
'अंधी गली'(blind alley) के बारे में यह बात मैं नहीं कह सकता.
किसी के हाथ-पल्ले कुछ न पड़े तो पंजाबी में उसे 'हनेरू' कह देते हैं.
अंधे को सत्कार से नेत्रहीन कहा जाता है लेकिन 'सिंह बोलों' में इसे 'सूरमा' और काने को 'पंज-अखा'( पांच आँखों वाला) कहा जाता था.
(लड़ाईओं के दौरान सिख सैनकों ने एक गुप्त भाषा बनाई थी जिस को 'सिंह बोले' कहा जाता है.
दृष्टिहीनता या दृष्टि में बाधा के लिए अंध शब्द का उपयोग हुआ है। अंध के प्रयोग से बने अन्य शब्दों का अच्छा वर्णन इस पोस्ट में है। पर अंध के नजदीक ही एक और शब्द है गंध वह भी बहुत महत्वपूर्ण है, यह अंधे की लाठी भी है। जरा इस पर भी नजर डालें अंध के साथ उस के संबंध के साथ।
बहुत अच्छी जानकारी धन्यवाद्
अंधे कुयें में रोशनी डालती पोस्ट! जै हो!
Hameshakee tarah gyan wardhak!
@बलजीत बासी
अंधामोड़ तो अंग्रेजी का अनुवाद ही है। इसीलिए उसे हमने मुहावरा नहीं कहते हुए प्रसंगवश उल्लेखभर किया है। हनेरु काम का शब्द है। सुमोपा के उपन्यासों में पंजाबी की एक कहावत पढ़ी थी-अन्ने कुत्ते हिरना दे शिकारी...इसका सही अर्थ तो आप ही बता सकते हैं।
दिनेशजी, आपका सुझाव महत्वपूर्ण है। गंध को इस पोस्ट में जोड़ना पड़ेगा। वैसे स्वतंत्र रूप में गंध शब्द पर अलग पोस्ट लिखी जा चुकी है, आपको याद होगा-http://shabdavali.blogspot.com/2009/12/blog-post.html
लाभान्वित हुए।
विषय पर अच्छा विश्लेषण.
@ अजित भाई
हमेशा की तरह इस बार भी खूब लिखा आपने नज़रों / दिल / दिमाग़ / रफ़्तार और धरती के सारे अंध कूप ! मुझे पता नहीं ये 'तत्व' है या 'रंग'मात्र या जीवन की उत्पत्ति का है आदि स्रोत! जब से अन्तरिक्ष के अंधकूपों और डार्क मैटर के बारे में सुना है बड़ा कन्फ्यूज्ड हो गया हूँ !
@ द्विवेदी जी
क्षमा कीजियेगा आपका सुझाव पढ़कर मेरी आंखों के सामने अंधेरा छा गया ! गंध और अंध शब्द मूलतः अलग अलग इन्द्रियों से चीन्हे जाने वाले शब्द लगते हैं मुझे ! अगर तुक मिलाने के लिए बाते करें तो बंध भी कहां बुरा है !
'अन्ने कुत्ते हिरना दे शिकारी' का अर्थ है व्यर्थ की तलाश करने या भटकने वाले, आवारागर्द. अंग्रेजी में कह सकते हैं :wild goose chase.
एक 'अन्नी कुकडी(मुर्गी) खसखस का चोगा भी है' जब कोई दिए काम करने के सामर्थ्य न हो.
इस शब्द के तो बेशुमार मुहावरे और कहावतें हैं. आँख संबंधी सबी भाषाओँ में मेरे ख्याल से सब से अधिक मुहावरे होते हैं क्योंकि मूंह के बाद यह हमारे शरीर का सब से अधिक भावबोधक अंग है. नेत्रहीनता की स्थिती में भी यह बात काफी हद तक सच्ची है. और हाँ अंधों में काना राजा तो हम भूल ही गए!
कानून, प्रशासन और आम आदमी...
अंधे कुए में झाँका तो लंगड़ा वहां दिखा,
पूछा, की कौन है तू यहाँ कर रहा है क्या?
बोला, निकाल दो तो बताऊँगा माजरा,
पहले बता कि गिर के भी तू क्यों नही मरा?
मैं बे शरम हूँ, मरने कि आदत नही मुझे,
अँधा था मैरा दोस्त यहाँ पर पटक गया,
मुझको निकाल देगा तो ईनाम पाएगा!
शासन में एक बहुत बड़ा अफसर हूँ मैं यहाँ.
तुमको ही डूब मरने का जज ने कहा था क्या?
कानून से बड़ा कोई अंधा हो तो बता?
अच्छा तो ले के आता हूँ ;चुल्लू में जल ज़रा,
एक ''आम आदमी'' हूँ, मुझे काम है बड़ा......!
mansoor ali hashmi
बहुत खूब मंसूर साहब। खूब नज़र उतारी है आम आदमी की?
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