Sunday, February 7, 2010
कोई वाकौ देवांग कहै है…
क
भी देवांग नाम के कपड़े का नाम सुना है? आज जिसे हम टेपेस्ट्री के नाम से जानते हैं, किसी ज़माने में उसका नाम देवांग था। रेशम से मिलती-जुलती किस्म के एक चमकदार कपड़े को ताफता कहते हैं। यह धूपछांही भी कहलाता है क्योंकि इसका ताना एक रंग का होता है और बाना दूसरे रंग का। रोशनी के विविध आयामों के साथ यह रंग बदलता है। यह भी इंडो-ईरानी भाषा परिवार का शब्द है और भारतीय भाषाओं में इसकी आमद बरास्ता फारसी हुई है। मध्यकालीन शृंगार रस के कवि बिहारी के प्रसिद्ध दोहे में इसका प्रयोग देखिए- छुटि न सिसुता की झलक, झलक्यो जोबन अंग। दीपति देह दुहुन मिली, दिपत ताफता रंग।। वयः संधि के तथ्य को धूपछांही ताफता रंग के जरिये बहुत खूबी से समझाया है। ताफता का एक अन्य नाम देवांग भी है। हालांकि हिन्दी में यह अप्रचलित है किन्तु बिहारी पर लिखी प्रसिद्ध हरिप्रकाश टीका में ताफता के संदर्भ में देवांग शब्द का उल्लेख भी है। ख्यात समालोचक पं पद्मसिंह शर्मा ने संजीवन भाष्य में इसे उद्धरित किया है। इसके चमक-दमक वाले गुण की वजह से इसे देवांग यानी देवताओं की प्रकाशमान, कांतिवान काया समान चमकदार कपड़ा कहा गया है। फारसी का ताफ्तः (ताफ्ताह) हिन्दी में आकर ताफता हुआ। यही शब्द अंग्रेजी में जाकर टाफेटा taffeta हुआ।
मोटे कपड़े या पर्दों को अंग्रेजी में टेपेस्ट्री कहते हैं जिसका मूल भी यही ताफ्तः है जिसके मूल में ताफ्तान है। इसमें चमक, प्रकाश या कांति का भाव है। यह ताब का पू्र्व रूप है जिसका अर्थ भी दीप्ति या प्रकाश है। ताब की रिश्तेदारी संस्कृत की तप् धातु से बने तपः से है जिसका अर्थ गरमी, दाह, प्रज्जवलन आदि है। अग्नि में दीप्ति समाई हुई है इसलिए तपः में चमक, प्रकाश या रोशनी का भाव भी है। फारसी का ताब इसी का रूपांतर है जिसमें गरमी, आभा, चमक, मज़ाल, हिम्मत और सामर्थ्य जैसे भाव हैं। हिन्दी का कठिन परिश्रम के लिए तप शब्द भी इसी मूल का है। कठिन साधना करने की वजह से ही परिव्राजक को तपस्वी कहा जाता था। श्रम से उपजे स्वेदकणों में भी चमक का भाव है। परिश्रम से व्यक्तित्व अनुभव की आभा से दमकता है। तपस्वी को ही ऋषि का दर्जा मिलता है। तपना, तपाना, ताप जैसे शब्द इसी मूल से आ रहे हैं। फारसी में खाना पकाने के बर्तन, देग या हांडी को तबाक भी कहते हैं। जाहिर है इसे आग पर रखा जाता है ताप के जरिये इसमें भोजन पकाते हैं इसीलिए इसे तबाक कहते हैं। तवा भी इसी मूल से आ रहा है। तबाक का हिन्दी में देशज रूप तबकड़ी है। स्पष्ट है कि टाफेटा, टेपेस्ट्री, ताफता या ताफ्तः जैसे शब्द जो एक खास किस्म के कपड़े के लिए इस्तेमाल होते हैं जिनका इस्तेमाल रोशनदान, दरवाजे के पर्दे के लिए होता है ताकि खिड़की या दरवाजा खुला रहने पर भी परदे के जरिये भीतर की निजता सुरक्षित रहे मगर रोशनी भी अवरुद्ध न हो, इसलिए इस कपड़े में धूपछांही चमक की खासियत होती थी जो इसके विशिष्ट तानेबाने से आती थी। ये तमाम शब्द मूलतः संस्कृत के तपः से आ रहे हैं जिसमें चमक का भाव है।
प्राचीनकाल में प्रचलित एक प्रसिद्ध कपड़े किमख्वाब का रिश्ता भी चीनी भाषा से जुड़ता है। किमख़्वाब एक बेहद कीमती कपड़ा है जिसे रेशम और स्वर्णतन्तुओं से बुना जाता है। यह शब्द चीनी, जापानी, अरबी, तुर्की, फारसी, उर्दू, अंग्रेजी और हिन्दी में समान रूप से जाना जाता है। पश्चिम में इसे किन्कॉब kincob कहा जाता है जिसके मायने हैं स्वर्णनिर्मित कपड़ा। चीनी में इसे किनहुआ, फारसी में किमख्वा और हिन्दी में किमख्वाब कहा जाता है। मूलतः यह चीनी भाषा से ही अन्य भाषाओं में गया है। चीनी में किन का अर्थ है स्वर्ण और हुआ का अर्थ होता है पुष्प। भाव है स्वर्णतन्तुओं की फुलकारी वाला वस्त्र अथवा स्वर्णतन्तुओं से निर्मित फूलो जैसे नर्म एहसास वाला महीन वस्त्र। शुक्ला दास की फैब्रिक आर्टः हैरिटेज आफ इंडिया में बताया गया है कि जापान में किमख्वाब को चिनरेन कहते हैं जो वहां चीनी भाषा से ही गया है। एक अन्य व्युत्पत्ति के अनुसार यह चीनी और इंडो-ईरानी मूल से बना शब्द युग्म है। किमख्वाब में स्वर्ण के अर्थ में चीनी मूल का किन् शब्द ही है मगर खुवाब (xuwab) का रिश्ता इंडो-ईरानी परिवार से है। संस्कृत का एक शब्द है स्वपस् जो स्व+अपस्(मोनियर विलियम्स) से मिलकर बना है जिसका अर्थ है करना, बहुत अच्छा करना, कुशलता से करना आदि। स्वपस् का अगला रूप हुआ अवेस्ता का ह्वपः (hvapah)। गौर करें संस्कृत का स अवेस्ता में जाकर ह में तब्दील हो रहा है। इसका फारसी रूप हुआ खाब या खूब (xuwab) अर्थात प्रवीणता के साथ किया कार्य, महीन, बारीक काम, कलाकर्म जिसमें दस्तकारी का काम भी शामिल हो। सोने की कारीगरी वाले कपड़े के तौर पर किमख्वाब का अर्थ यहां स्पष्ट है।
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16 कमेंट्स:
टेपेस्ट्री को कभी देवांग भी कहते थे, आज जाना! आभार!
देवांग तो एक टी वी पत्रकार है . :)........... अच्छी जानकारी
अच्छी जानकारी मिली। धन्यवाद।
दुर्लभ जानकारी मिली . आपकी प्रत्येक पोस्ट ज्ञानवर्धक होती है
बहुत से शब्दों के नए अर्थ जाने।
@
रेशम और स्वर्णतन्तुओं से बुना
बनारसी साड़ी भूल गए भाऊ !
तानो-बानो से कईं रंग के गुँथ कर है बनी,
त़प किया, ताप सहा फिर तो सजी और संवरी,
कर्म के धर्म ने सपनो को हकीक़त दी है,
ज़िन्दगी तब कही जाकर के है किम्ख्वाब बनी.
ताफता और देवांग पहली बार सुना मगर धूप छाँव और हम लोग टापटा जरूर कहते थे शायद यही तापता है किमख्वाब और चिकन का नाम भी पता था मगर विस्तार से जानकारी आपसे मिली बहुत अच्छी जानकारी है धन्यवाद।मैने चिकन और टापटा के पुराने सूट आज भी सम्भाल कर रखे हुये हैं निशानी के तौर पर्
कपड़े का नाम देवांग होता है यह पहली बार पता चला। बिलकुल नर्ह जानकारी के लिये बहुत बहुत आभार।
वाह, भरतलाल के गांव में बुनकर टफटी बुनते हैं। यह नहीं जानता था वह देवांग है!
ताफता के लिए प्रयुक्त देवांग शब्द मेरे लिए भी नया है !
ज्ञानवर्धन के लिए धन्यवाद।
देवताओं के अंग पर शोभा दे वैसा देवांग !
" कीन्खाब के पर लगना "
भी शायद प्रयुक्त होता है न ?
- लावण्या
आज तो पूरी दुनिया की सैर करा दी. किमख़्वाब तो आप की किस्मत में होगा. हम ने सुना ज़रूर है, पंजाबी में खीम्खाब भी कहते हैं. आधा चीनी और आधा इंडो-ईरानी अटपटा नहीं लगता?
वैसे भारत में पुराने ज़माने में यह कपडा बहुत बनता था.
ताफता को ताबी भी बोलते हैं.
'ताप' का भारोपीय मूल 'tep'(उष्ण) है जिसे अंग्रेजी का एक आम शब्द tepid(गुनगुना) बना है. और भी कई शब्द हैं. पंजाबी में 'तत्ता'(गर्म) है.
हान्ड़ी शब्द देशज हे या तद्भव कोई बता सकता हे क्या plz
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