Friday, February 19, 2010

कप-बसी धोते रह जाओगे…

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हि न्दी में आमतौर पर बोले जाने वाले और मिलते जुलते शब्द हैं कूप, कूपा या कप। एक जैसे लगते इन शब्दों के अर्थ हालांकि अलग अलग हैं मगर ये एक ही भारोपीय आधार से उठे शब्द हैं। कूप का अर्थ जहां कुआं होता है वहीं कूपा kupe हिन्दी में अंग्रेजी से आया शब्द है जिसका आशय रेल के डिब्बे या बोगी से है। इसी तरह कप cup शब्द का इस्तेमाल चाय की प्याली के अर्थ में रोजमर्रा की हिन्दी में खूब होता है। कप के साथ कप-बसी शब्दयुग्म का प्रयोग भी आम है। रेल का कूपा भी एक तरह का खण्ड या खोखला स्थान ही होता है। मराठी मे आला या दीवार में बने खण्ड को कप्पा कहते हैं।

किस्सा कप-बसी का
हिन्दी में कप स्वतंत्र रूप से भी कप-बसी के रूप में भी प्रयोग होता है। कप-बसी धोना शब्दयुग्म का तो अब मुहावरेदार प्रयोग भी होने लगा है। अगर किसी को नाकारा नालायक साबित करना हो तो यह कहना काफी है कि ये तो सिर्फ कप बसियां धोने के काबिल हैं। कप के साथ बसी शब्द का भारत की कई भाषाओं में प्रयोग होता है। मराठी में इसका रूप है बशी। यह शब्दयुग्म करीब पांच सदी पहले पुर्तगालियों के साथ भारत आया। कप शब्द का पुर्तगाली उच्चारण कोपो copo  है जो अन्त्यस्वरालोप के चलते कोप ही सुनाई पड़ता है। अंग्रेजों के आने के बाद भद्रलोक चाहे इस शब्द की आमद और उच्चारण के लिए अंग्रेजी का शुक्रगुजार हुआ हो मगर मराठी, कोंकणी और गुजरात के कुछ हिस्सों में यह कप-बसी बहुत पहले रच-बस चुके थे। पुर्तगाली में एक शब्द है बैसिआ अथवा बैसिओ ( bacia / bacio ) जिसका अर्थ है एक बड़ी थाली, तश्तरी या बाल्टीनुमा रचना जिसमें आमतौर पर पानी या 12065705941789360477nicubunu_RPG_फिर कोई अन्य तरल पदार्थ भरा जाए। बैसिआ का अर्थ बाद में डिनर-प्लेट के तौर पर भी होने लगा। पुर्तगाली लोग सूप या अन्य तरल पदार्थ के लिए कप का प्रयोग करते थे। ठण्डा करने के लिए जिस छोटी प्लेट का प्रयोग वे करते थे उसे बैसिआ कहते थे वहां से यह शब्द भारतीय भाषाओं में बसी, बशी के रूप में चला आया। बैसिआ शब्द का रिश्ता मूल रूप से गॉल भाषा परिवार से है जिसे बोलनेवाले यूरोप के पश्चिमोत्तर प्रदेशों में रहते हैं। गॉलिश भाषा में पानी की बड़ी नांद को बैक्का bacca कहा जाता है। देशी लैटिन में इसका रूप हुआ baccinum और फिर फ्रैंच में यह basin और अंग्रेजी में basin हुआ जिसका अर्थ जलाशय, नांद, जलीय क्षेत्र, कठौती, पात्र आदि है। इसी मूल से उपजा है बैसिआ या हिन्दी का बसी (कप) शब्द। वाशबेसिन को जब भी इस्तेमाल करें तो अब बसी से इसकी रिश्तेदारी भी ज़रूर याद कर लें।
कुएं का मेंढ़क या कछुआ!!
कूप शब्द का अर्थ है गहरा चौड़ा छिद्र, एक चौड़ा गड्ढा, गह्वर, नाभिछिद्र आदि। कूप से  हिन्दी तथा अन्य भारतीय   भाषाओं में कई शब्द बने हैं जैसे कुइयां, कुई, कुआं आदि। हमारे यहां कहावत है- बहता पानी निर्मला यानी पानी में अगर धार है, गति है तो वह शुद्ध रहता है, उसकी जीवनदायिनी शक्ति सुरक्षित रहती है। रुके हुए जल को अशुद्ध समझा जाता है। इस तरह देखें तो कुएं का पानी तो बहता नहीं, फिर भी कुओं का पानी पिया जाता है। दरअसल कुओं से लगातार पानी उलीचने से उसके भीतर भूगर्भीय जलस्त्रोत से ताजा पानी लगातार आता रहता है। फिर भी कुएं की घिरी हुई बनावट और जल की स्थिरता से कुछ कुछ मुहावरे जन्मे हैं जैसे कुएं का मेंढ़क। इसकी मूल संस्कृत उक्ति कूप मंडूक है। किसी व्यक्ति की अनुभवहीनता और सीमित ज्ञान के संदर्भ में यह मुहावरा इस्तेमाल होता है। कुएं का मेंढक कभी नहीं जान पाता कि बाहरी दुनिया कैसी है। कूप मंडूक की तर्ज पर संस्कृत में इसी अर्थ में कूप कच्छप मुहावरा भी है जिसका प्रयोग हिन्दी में नहीं है। लोकजीवन में भाषायी शुद्धता और उसके विकास को रेखांकित करती एक कहावत पर गौर करें-संस्किरत है कूप जल, भाखा बहता नीर। स्पष्ट है कि देवभाषा की उपाधि से लाद देने के बाद संस्कृत कभी लोकभाषा नहीं बन पायी और इसकी सहोदरा अन्य बोलियां बढ़ती चली गईं क्योंकि विकसित होने के लिए उनके पास देवभाषा जैसे कोई बंधन नहीं था। इस सिलसिले में हमें नलकूप शब्द को नहीं भूलना चाहिए।kupe
रेल का कूपा
कूप शब्द में निहित छिद्र, गड्ढा, विवर, कंदरा, खंदक, खाई आदि अर्थों की तुलना भारोपीय भाषा परिवार की धातु कूप keup से करें जिसका अर्थ भी खोखल, कूप, बिल, पात्र, नांद आदि ही होता है। रोजमर्रा की हिन्दी में पर बोला जानेवाला अंग्रेजी का शब्द कप (प्याला) इसी मूल से उपजा है और संस्कृत के कूप से उसकी रिश्तेदारी है। पात्र के अर्थ में जहां हिन्दी ने कूप से तरल पदार्थ रखने के लिए कुप्पी या कुप्पा जैसे शब्द बनाए वहीं अंग्रेजी में भारोपीय धातु कूप से प्याला या चषक के अर्थ में कप बनाया। भारोपीय कप से लैटिन में कप्पा बना जिसने कप का रूप लिया। कूप में निहित नांद या खोखल का भाव विस्तार हुआ लैटिन के cuppa में जिसका मध्यकालीन अंग्रेजी में cuppe में में रूपांतर हुआ। डच ज़बान में इसने kupe का रूप लिया। बाद में अंग्रेजी में भी यह चला आया। जर्मन में यह कोप, कोपे है तो पुर्तगाली में कोपो और इतालवी में कोप्पा। इन सभी रूपांतरों में चषक, कप, कूपा, बास्केट, जार, थैली, पात्र अथवा नांद का भाव है।
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15 कमेंट्स:

स्वप्न मञ्जूषा said...

कप, बेसिन , कुइयाँ, कूआँ, कुप्पा ..इत्यादि इत्यादि ..
बहुत खूब ...सब कितने जुड़े हुए हैं...आश्चर्य..!!
सुन्दर आलेख..
धन्यवाद..

Udan Tashtari said...

कैसे कैसे शब्दों के तार जुड़े हैं, वाकई जानकर अचंभा होता है.

मनोज कुमार said...

बहुत अच्छी जानकारी। धन्यवाद।

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

कुपे कार के एक प्रकार को भी कहते है शायद . उसकी बाडी कुप के आकार की होती होगी . एक स्टाईल और है उसे सैलून कहते है

दिनेशराय द्विवेदी said...

बसी, वाशबेसिन, तेल की कुप्पी और न जाने कौन कौन। बहुत सारे रिश्तेदार हमारे घर में रह रहे हैं और हमें पता ही नहीं।

निर्मला कपिला said...

कप बसी पहली बार शब्द सुना है। और
बहता पानी निर्मला
वाह नाम धन्य हो गया मेरा तभी तो हर पल व्यस्त रहती हूँ --- चले चलो बस
बहुत ग्यानवर्द्धक पोस्ट है शुभकामनायें

किरण राजपुरोहित नितिला said...

कप बसी पहली बार सुना है.
अचरज होता है कि शब्द पनपता तब क्या होता है और क्या बन के निकलता है .

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

ज्ञानवर्धक पोस्ट-आभार

Sanjay Kareer said...

मैं सोचता था कि बसी बुंदेलखंड में ही बोला जाने वाला शब्‍द है और इसे केवल यहां के देहाती बोलते हैं... हां नालायक बताने के लिए इसका मुहावरे वाला इस्‍तेमाल तो अपने पर होते कई बार सुना.. यहां पढ़ कर मजा आया।

उम्मतें said...

अजित भाई
कमाल ये है कि इनके 'स्वामित्व' और 'इस्तेमाल' तक कोई 'वर्ग भेद' नहीं हुआ करता लेकिन 'सफाई' और 'समझाइश' से नाता जुड़ते ही ये निम्न वर्ग के प्रतीक बन जाते हैं !

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

कप बसी " का प्रयोग अक्सर महाराष्ट्र में किया जाता है
गुजराती लोग " कप - रकाबी " बोलते हैं
बहुत सारे शब्द इसी तरह भाषा के बोलचाल से निकलकर प्रयुक्त होते रहते हैं
सुंदर पोस्ट रही अजित भाई

Baljit Basi said...

'बसी' पंजाब में तो होती नहीं,शायद पंजाब समुंदर से दूर होने की वजह से पहुँचते पहुँचते रास्ते में टूट गई.
इधर तो 'कुप्प' होता है जिसने अपने आकार की वजह से सब कप,कुपी और कुप्पों को मात कर दिया. यह कुप्पे की शकल का होता है और गेहूं की नाली से बनाया जाता है. यह एक कमरे से भी ऊँचा होता है और इसमें गेहूं का भूसा डाला जाता है.
कूएं को पंजाबी में 'खूह' कहा जाता है. इस से जुडी बहुत सी कहावतें और मुहावरे हैं. कुछ पेश करता हूँ : खूह की मिट्टी खूह को लग जाती है, अक्लां बिना खूह खाली, खूह खोदते खाता तयार, खूह विच डिगी इट सुक्की नहीं निकलदी, खूह खाते( बेकार काम), खूह विच धक्का देना, खूह विचों बोलना(बहुत धीमा बोलना).
एक 'गोरा खूह' होता है जो गाँव के पास ही होता है. यहाँ गाँव के लोग पशुओं को पानी पिलाते है. दिल्ली में 'धौला कूआं' नाम का एक इलाका है, कहते हैं खोदते वक्त इसमें से सफेद रेत निकली थी.

अजित वडनेरकर said...

अली भाई,
बहुत बारीक बात कह दी। कल्लू चायवाले की कप बसियों में क्या बाम्हन, क्या राजपूत और क्या अछूत, सब एक साथ ही चाय पीते हैं।

Gyan Dutt Pandey said...

वाह! कूप या कप जरा सी चीज हुई। और कूपार हुआ समुद्र!

Abhishek said...

मेरी फोटो लगाने के लिए शुक्रिया

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