Wednesday, February 3, 2010

भीष्म, विभीषण और रणभेरी

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पु राने ज़माने में तुरही जैसे जितने भी वाद्यों का प्रयोग जनसमूह या सेना को सचेत करने, जोश भरने के लिए होता था। सुषिर यानी फूंक से बजाए जानवाले वाद्यों का पोला होना आवश्यक है। इसके संकरे सिरे से प्रवेश कर हवा कम्पन करते हुए चौड़े सिरे से निकलती है जिससे तेज आवाज़ उत्पन्न होती है। मनुष्य ने वाद्यों का निर्माण तो बहुत बाद में किया, शुरुआत में तो उसे ये प्राकृतिक रूप में ही मिल गए थे। उसने तो बस हर पोली वस्तु को फूंक कर देखना शुरू किया। बांस, शंख और मृत पशुओं के सींग ऐसी ही वस्तुएं थी जो शुरुआती संगीत उपकरण बने। ऐसे ही कुछ उपकरण हैं जिनके नाम बांसुरी, वंशी, बंसी, शंख, रणसिंघा, रणभेरी आदि हैं।
पुराने ज़माने में युद्ध की मुनादी के लिए रणभेरी बजाई जाती थी। रणभेरी शब्द का इस्तेमाल अब नहीं होता है मगर मुहावरे के तौर पर यह हिन्दी में अब भी डटा हुआ है। किसी के साथ लम्बी अनबन के बाद लड़ाई की घोषणा को ही अब रणभेरी की संज्ञा दी जाती है चाहे नेपथ्य से किसी भी बाजे की आवाज़ न आ रही हो। रण शब्द का अर्थ होता है जंग, युद्ध लड़ाई, संग्राम, समर आदि। भेरी का अर्थ होता है भीषण, भयकारी ध्वनि होना। बड़ा धौंसा, तासा, दमामा आदि। यह शब्द बना है भी धातु से जिसमें भय, आतंक, संत्रास आदि का भाव है। इससे ही बना है भीत शब्द। मराठी में डर के लिए भीति शब्द इसी भीत से उपजा है। भय के मूल में भी यही भी धातु है जिसमें भी डर, आतंक, त्रास, संकट आदि भाव हैं। भय में खतरा, जोखिम भी निहित है जिससे डर उपजता है। भय से ही बना है भयानक अर्थात भयकारी या डरावना। जिससे भय उत्पन्न हो। रपोक के लिए संस्कृत में भीरू शब्द है जो इसी मूल से उपजे हैं। बकरी, गीदड़ जैसे पशुओं को भी tee9759 भीरु कहा जाता है। भी में निहित भय का भाव ही भेरः में भी है जिसका अर्थ युद्ध के अवसर पर बजाया जानेवाला ढोल है। युद्ध के समय इसे बजाने का विशेष उद्धेश्य शत्रु को भयभीत करना होता है ताकि उसकी साहस पहले ही क्षीण हो जाए। डरावना के अर्थ में हिन्दी में भीषण और विभीषण शब्दों का प्रयोग भी होता है जो इसी मूल से बने हैं। भी धातु से एक सुंदर नाम भी बना है भीष्म। इसका अर्थ है भयानक, डरावना, भीषण आदि। भीष्म जैसे सुंदर नाम के इन अभिप्रायों का क्या अर्थ है? भीष्म जो पुराणों में नायकों से भी अलग तरह की छवि रखते हैं, कहीं से भी भीषण नहीं लगते हैं। वैसे भी भीष्मराजकुमार थे।  पुराणों में भीष्म की कथा है जो गंगा और शान्तनु की संतान थे। दरअसल वे ही शांतनु की गद्दी के वारिस थे पर अपनी विमाता सत्यवती को दिए वचन से बंधे पिता के प्रति अपने कर्तव्य का निर्वाह उन्होंने भी एक प्रतिज्ञा के जरिये किया कि वे कभी राजसिंहासन पर नहीं बैठेंगे बल्कि सत्यवती से उत्पन्न संतान ही राज्य की वारिस बनेगी। इसे निभाने के लिए उन्होने आजन्म अविवाहित रहने की जो भीषण प्रतिज्ञा की उसकी वजह से वे भीष्म कहलाए। भयानक, रौद्र के अर्थ में इसी धातु मूल से उत्पन्न भैरव शब्द भी प्रचलित है। यह संज्ञा भी है। शिव के रौद्र रूप को ही भैरव कहते हैं। इसी तरह दुर्गा के रौद्र रूप को भैरवी कहा जाता है।
ब आते हैं रणसिंघा पर। रणसिंघा का अर्थ हुआ ऐसा वाद्य जो युद्ध की घोषणा करने का बाजा जिससे यौद्धाओं में उत्साह और ऊर्जा का संचार होता है। सिंघा शब्द बना है संस्कृत के शृंगम् से जिसका अर्थ होता है पशुओं का सींग। प्राचीनकाल में मृत पशुओं के सींगों की पोल को साफ कर और उसकी बाहरी परत पर नक्काशी कर एक खूबसूरत वाद्य का रूप दे दिया जाता था। इसके पतले सिरे को जब फूंका जाता था तो तेज गूंज वाली आवाज निकलती थी। शृंग से बना है हिन्दी का सींग और वाद्य के रूप में सिंघा शब्द। रणसिंघा अब युद्ध में नहीं बल्कि किन्हीं विशिष्ट मंदिरों में अब भी बजाया जाता है। लंबी, ऊंची पहाड़ी या पर्वतशिखर को भी पर्वतशृंग कहते हैं क्योंकि इसका आकार सींग जैसा ही नुकीला होता है।

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10 कमेंट्स:

Baljit Basi said...

आज तो आप बीर रस में हैं,मैं तो भयभीत हो गया. 'चंडी दी वार' में रण बजाये जाने वाले बहुत से वाद्यों का जिकर है.
ग्रन्थ साहिब में गुरू नानक फरमाते हैं:
कहा सु खेल तबेला घोड़े कहा भेरी सहनाई.

भीषण और विभीषण शब्दों की जानकारी लेकर भयानक संतुष्टि हुई.

Himanshu Pandey said...

’भी’ धातु जरूरी लगती है ! डरना, डराना सब शामिल है इसमें !

बेहतरीन विश्लेषण ! आभार ।

निर्मला कपिला said...

बहुत ही ग्यानवर्द्धक पोस्ट धन्यवाद

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बांसुरी, वंशी, बंसी, शंख, रणसिंघा, रणभेरी आदि सभी कुछ तो हैं!
बस महाभारत होने ही वाला है!

Sunita Sharma Khatri said...

बहुत ही अच्छी जानकारी........
महाकुम्भ व हरिद्वार के बारे में जानिए
visit blog Ganga Ke Kareeb
http://sunitakhatri.blogspot.com

उम्मतें said...

तो फिर भय उपकरणों के पोलेपन से या उसमें फूंके गये सुरों से ? :)

Mansoor ali Hashmi said...

रणभेरी ने अलख जगया,
भीरु बोले,तू चल मै आया.

मज़ेदार पोस्ट!

अजित वडनेरकर said...

भय तो पोलेपन में अधिक है अलीभाई,
फूंके गए सुरों से प्रभावित होना न होना तो हमारे भीतर के भय या भीतरी पोल पर निर्भर करता है।
खोट तो पोल में ही नज़र आती है।

गोकि संजोने-समोने के लिए पोल ज़रूरी है, पर उस पोल और इस पोल में फर्क है।

आपकी अर्थवान टिप्पणियों की आतुरता से प्रतीक्षा रहती है।

किरण राजपुरोहित नितिला said...

राजस्थान के गोड़वाड़ अंचल में भय के लिये बी शब्द भी प्रचलित है। भी भय से ही, बी, बना है क्या? इस शब्द की चर्चा अक्षर यात्रा राजस्थान पत्रिका में भी हुई थी।

Baljit Basi said...

भीम भी शायद इसीसे(भी) बना है. कुछ स्रोत जैसे स्कीट इसको लेटिन के जरिये अंग्रेजी फीवर fever के साथ जोड़ते हैं.

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