जन्माष्टमी पर जब बंसी की वंशावली की थाह ली तो बहुत कुछ हाथ लगा। जो हाथ लगा वो पूरा का पूरा अष्टमी का प्रसाद न बन सका और तिथि बदल गई। खैर, शब्दों के सफर में तिथियां मायने नहीं रखतीं लिहाजा वंशावली का अगला हि्स्सा पेश है।
वंशवृक्ष शब्द का मतलब यूं तो आज कुलपुरूषों, कुटुम्बियों के नामों की उस तालिका से लगाया जाता है जो वृक्ष की शाखाओ –प्रशाखाओं की तरह तरह अलग अलग कालखंडों में विभाजित कर बनाई गई हो। मगर प्राचीनकाल में तो वंशवृक्ष का मतलब सिर्फ बांस का पेड़ ही था। एक और शब्द है वंशवृद्धि यानी परिवार का बढ़ना या कुटुम्ब में इजाफा होना । अब कृष्ण हमेशा हाथ में बांसुरी लिए रहते थे सो बंशीधर कहलाए। इसका ही तत्सम रूप वंशीधर भी प्रचलित है। जिस पेड़ की नीचे उनका वंशीरव गूंजा करता था वह कहलाया वंशीवट। यानी बरगद का पेड़।
नामश्रंखला में एक नाम खूब चलता है वह है हरबंस। इस नाम में भी बांस या वंश की महिमा छुपी है। हरबंस यानी हरिवंश अर्थात् श्रीकृष्ण का वंश। इस नाम से एक पुराण भी है जिसे महाभारत का उपांश कहा जा सकता है। कुछ लोग इसे उपपुराण भी मानते हैं मगर अठारह पुराणों और उपपुराणों मे इसका शुमार नहीं है। महाभारत में मुख्यतः युद्ध का पूरा वृत्तांत है मगर कृष्ण व यादवों के बारे में विस्तार से सब कुछ नहीं है । इसी के लिए महाभारत के परिशिष्ट के तौर पर सौति ने हरिवंश की रचना की। सौति ने ही नैमिषारण्य मे ऋषियों को महाभारत कथा सुनाई थी।
Thursday, September 6, 2007
वंशगान - बांस और बरगद की रिश्तेदारी
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 2:36 AM
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2 कमेंट्स:
आज सुबह सुबह आपका यह लेख पढा. व्युत्पत्ति से संबंधित कुछ और बातें पता चलीं. लिखते रहें -- शास्त्री
मेरा स्वप्न: सन 2010 तक 50,000 हिन्दी चिट्ठाकार एवं,
2020 में 50 लाख, एवं 2025 मे एक करोड हिन्दी चिट्ठाकार!!
आपके ब्लॉग में जब भी आना होता है कुछ ना कुछ नई जानकारी लेकर ही लौटना आना होता है।
अच्छा लगता है आपका इस तरह जानकारियां देते रहना।
शुक्रिया इस शब्दों के सफ़र में हमें सहयात्री बनाने के लिए!!
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