कहावत है कि इश्क और मुश्क छुपाए नहीं छुपते । इश्क का मतलब सभी जानते हैं और मुश्क यानी एक खास तेज लुभावनी सुगंध जो दुर्लभ प्रजाति के हिमालयी हिरण के शरीर की एक ग्रंथि में होती है। संस्कृत में इसे कस्तूरी कहते हैं। इसी से इसका नाम भी कस्तूरी मृग पड़ा। यह ग्रंथि इसकी नाभि के अंदर छुपी होती है और जहां जहां से मृग गुजरता है इस गंध को पीछे छोड़ता जाता है। संस्कृत में कस्तूरी के लिए मुष्क: शब्द भी है। यह बना है मूल धातु मुष् से जिसका मतलब है चुराना, मुग्ध करना, लुभाना, पीछे छोड़ देना-आगे बढ़ जाना। इस गंध की अनुभूति इतनी तीव्र होती है कि खुद मृग इस बात से अंजान कि इसका स्रोत वह स्वयं है, जंगलभर में इसकी तलाश करता फिरता है। जीव और ब्रह्म के दार्शनिक रिश्ते को स्पष्ट करने के लिए सूफी सोच वाले कवियों ने इस दृष्टांत का खूब उपयोग किया है। एक जगह कबीर कहते हैं -
कस्तुरी कुंडल बसै, मृग ढ़ूढै वन माहिं।
ऐसे घटि-घटि राम है, दुनियां देखे नाहिं।।
जाहिर है ये तमाम अर्थ मुष्क: के यानी कस्तूरी गंध की विशेषताओं की ओर इगित करते हैं। गौरतलब है कि हिरण की ग्रंथि का स्राव होने से मुष्क: चिपचिपे और काले रंग के पदार्थ के रूप में मिलता है। कस्तूरी केवल नर मृग में ही होती है और इसे पाने के लिए ही लोग उसका शिकार होता रहा है और यह सुंदर प्राणी दुर्लभ श्रेणी में आ गया है। अब यह कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तरांचल एवं सिक्किम के कुछ क्षेत्रों तक ही सीमित रह गया है। इन क्षेत्रों में यह करीब चार हज़ार मीटर की ऊँचाई पर पाया जाता है। इसकी नाभि में कस्तूरी नामक एक ग्रन्थि होती है जिसमें भरा हुआ गाढ़ा तरल पदार्थ अत्यन्त सुगन्धित होता है। यही पदार्थ मुश्क है ।
खास बात ये कि संस्कृत से ही यह शब्द फारसी और फिर अरबी में गया। फारसी ने इसके संस्कृत रूप को ज्यों का त्यों मुश्क के रूप में अपना लिया । इसी तरह अरबी में भी इससे मिलता-जुलता रूप मिश्क मिलता है। फारसी में मुश्क से ढेर सारे शब्द बन गए जैसे मुश्कीं यानी मुश्क जैसा सियाह और सुगंधित, मुश्करंग माने काले रंग का और मुश्कअफ्शां यानी सुगंध बिखेरनेवाला। संस्कृत से फारसी और अरबी में होते हुए मुश्क सबसे पहले ग्रीक मे मस्खस बन कर दाखिल हुआ। ग्रीक से इसने मस्क के रूप में फ्रैंच भाषा में प्रवेश किया और फिर लैटिन में मस्कस का रूप लेते हुए अंग्रेजी में भी मस्क के रूप में दाखिल हुआ।
Monday, September 24, 2007
छुपाए नहीं छुपते, इश्क और मुश्क
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 12:25 AM लेबल: animals birds
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3 कमेंट्स:
aap bahut achha kaam kar rahe hain.agar koi hindi seekhna chahta hai to uske liye aapka blog kafi sahayak hai. hamari kai boliyaan hai jismein aise shabd hai jo manak Hindi mein nahi hai.jaise ki malwi mein 1 shabd hota hai "abliya gabliya". is shabd ka upyog us samay kiya jaata hai jab koi vyakti kisi aisi sthiti mein hai ki usko samajh nahi aa raha hai ki kya karna hai. sthiti gambheer nahi hai lekin wo vyakti smajh nahi pa raha hai ki kya karna hai. agar aapke paas samay hai to saath saath aise shabdon par bhi prakash daaliye.
क्या कहने भाई। आनन्द ही आनन्द है यहाँ तो।
Ok
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