दर्शन शब्द को बोलचाल में दरसन कहकर भी उच्चारा जाता है । दर्शन का मतलब सब
जानते हैं मगर इसके पीछे क्या है ? संस्कृत की धातु दृश् से जन्मा है दर्शन जिसके मायने हुए देखना, नज़र डालना या अवलोकन करना। इसमें समीक्षा, सर्वेक्षण, विवेचन, ज्ञान आदि भी समाहित हैं। इसमें दिखलाना , प्रदर्शन करना भी शामिल है। उपस्थित होना या किसी के सम्मुख जाना जैसे भाव भी इसमें शामिल हैं। प्रदर्शन भी इससे ही निकला है । दर्शक शब्द हिन्दी में खूब इस्तेमाल होता है जिसका अर्थ है देखनेवाला या अनुष्टान करने वाला। नज़ारे के अर्थ में दृश्य शब्द भी इसी श्रंखला में आता है जिसमें देखे जाने योग्य अथवा दर्शनीय का भाव निहित है।
दृश् धातु से बने अन्य शब्दों में आते हैं दर्श: जिसमें देखना , देखने योग्य जैसे भावों के साथ एक पाक्षिक यज्ञ जो सिर्फ अमावस्या को होता है का भी शुमार है।
हमारे देश में आदर्श का खूब ढिंढोरा पीटा जाता है। इस आदर्श की उत्पत्ति भी इसी दृश् से हुई है। दरअसल दृश् में आ उपसर्ग लगने से ही बना है संस्कृत का आदर्श: । हिन्दी में आदर्श का अर्थ ऐसे व्यक्ति या कार्य से है जिसका अनुकरण किया जाए। यह अर्थ सभी जानते हैं मगर आदर्श का मतलब शीशा, मुंह देखने का आईना भी होता है। इसका अन्य अर्थ है मूल प्रति या पांडुलिपि। इसी से बना एक अन्य शब्द है प्रादर्श जिसका मतलब होता है नमूना, कृति वगैरह। प्रदर्शनी शब्द के पीछे भी यही शब्द श्रंखला काम कर रही है। जिन्हें प्रदर्शनी में रखा जाता है वे कहलाते हैं प्रादर्श।
तकनीकी खामी की वजह से हमे अभी तक ब्लाग दर्शन नहीं हो रहा है। वर्तनी की अशुद्धि के लिए क्षमा चाहते हैं।
अगली कड़ी में दर्शन-फिलॉसफी-फलसफा
1 कमेंट्स:
अच्छा लगा आज का शब्द सफ़र!
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