आज शब्दों के सफर पर निकलना था और किसी पड़ाव पर ठहरना था मगर जब ईमेल चेक की तो एक खूबसूरत कविता के दर्शन हुए। कविता है हिन्दी के वरिष्ठ पत्रकार और गुरूकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय में पत्रकारिता के प्राध्यापक डॉ कमलकांत बुधकर की । बुधकरजी मन से कवि , स्वभाव से कलाकार, रूझान से पत्रकार और पेशे से अध्यापक हैं। पत्रकार के रूप में हरिद्वार के पण्डों, घाटों, हरिद्वार के कुम्भ अर्द्धकुंभ , देवबन्द के दारूल उलूम आदि से सम्बद्ध फीचर देशभर में चर्चा का विषय बने। बुधकरजी मेरे गुरू भी हैं और मामाश्री भी । देखें , क्या कहती है कविता -
सुख में जो लगाम खींचता रहे मेरी
और दुख में सौंप दे मुझे
अनन्त आकाश
जीभर उडानों के लिये ।
जो मोड़कर ले जाए
मेरा रथ
रणभूमि की ओर
जब मैं अपनों के प्यार में डूबा
उनसे कह न पाऊं
कि वे गलत हैं कदम कदम पर ।
क्या कोई ऐसा दोस्त
है मेरी प्रतीक्षा में ।
जिसके कंधे मेरे माथे को जगह दे सकें
उन क्षणों में जब
मेरे भीतर
उफन रही हो दुख की नदी
तब कोई
और मेरे अन्दर सोए
उत्सवों को जगा जाए ।
क्या आजकल ऐसे दोस्त होते हैं
कहां मिलते हैं वे कोई बताएगा मुझे ।
कमलकांत बुधकर
Friday, September 21, 2007
क्या ऐसा दोस्त है कही ?
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 3:40 AM
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6 कमेंट्स:
मामा जी को साधुवाद दें. अब आपकी काबिलियत का बहाव को स्त्रोत दिखा. बहुत खूब. क्यूँ न हो!!!
बधाई. मामा जी की और रचना लायें. इन्तजार रहेगा.
बहुत अच्छी कविता है।
अरे, आप तो भौत धांसू भांजे निकले।
क्या बात है!! आप और क्या क्या करते हैं? पहले से बता दीजिये तो कम से कम आश्चर्य तो नही प्रकट करना पड़ेगा... बहुत खूब ...
बहुत गहराई है इस रचना में बहुत-बहुत बधाई रचनाकार को भी और उसको प्रेषित करने वाले को भी...
भई बाळू (प्रिय अजीत), तुमने कमाल कर दिया । मेरी कविता को तुमने अपने ब्लॉग पर डालकर पांच विशिष्ट सम्मतियां भी मुझ तक पहुंचवा दीं। प्यार और प्रशंसा दो ही विटामिन कारगर होते हैं। ये दोनों मुझ पर असर कर रहे हैं। शुक्रिया। भाई आलोक पुराणिक के प्रति विशेष आभार, शेष मित्रों को हार्दिक धन्यवाद । अब कुल मिलाकर हुआ यह कि आज पल्लव ने मेरा भी ब्लॉग बना दिया हैं। मैंने सींग कटा लिये हैं और अब मैं तुम बछडों के रेवड में शामिल हो रहा हूं। मुझे झेलना और संभालना ।
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