मुल्क के सियासी हुक्मरानों के लिए अब होशियार होने का वक्त आ गया है। उनके पसंदीदा शगल यानी ‘राष्ट्रीय एकता’ मे कुछ अन्य लोग बेहद दिलचस्पी ले रहे हैं। यह नया तबका है करतबबाज एकता कामियों का।
छत्तीस करोड़ देवी देवताओं वाले देश में आज सवासौ करोड़ इन्सान बसते हैं। राष्ट्रीय एकता की घुट्टी बीते छह दशकों में छोटे-बड़े, औरत –मर्द , अमीर-गरीब हर किसी को पिलाई जा चुकी है। इसका असर अब दिखाई पड रहा है। हो ये रहा है कि आप घंटों सिर के बल खड़े रहते हैं या पानी में शीर्षासन लगाते हैं। लगातार कूद-कूद कर चलते हैं या दंडवत करते हुए भारत दर्शन कर लेते हैं। दांतों से हवाई जहाज या रेल का इंजन खींचकर पराक्रम दिखाते हैं। गर्ज यह कि उन सारे कारनामों को अंजाम दिया जा रह है , जिन्हें कारोबारे दुनिया में कोई अहमियत नहीं दी गई है। इस सच्चाई को ये तमाम लोग भी जानते हैं, इसलिएराष्ट्रीय एकता के नाम पर इन्हें अमली जामा पहनाते है।
आज हर कोई बस , फकत राजनीति या समाजसेवा की छिछली परत छू भर लोने को उतावला है। इसी वजह से ये सारे करतब ! ये असली देशभक्त हैं ? शायद इन्हें यह भी नहीं मालूम होगा कि देश की भौगोलिक विशेषताएं क्या है ? कितने राज्य हैं और राजधानियों के नाम क्या है। क्यों नहीं यह सब केवल साहसिक कारनामों या एडवेंचर के नाम पर किया जाता ? गिनीज़ बुक में हजारों परदेशियों के साहसिक कारनामें दर्ज हैं, मगर यह कहीं नहीं लिखा कि ऐसा उन्होने देश की एकता की खातिर किया।
सवाल उठता है, क्या सारे एडवेंचरिस्ट राष्ट्रवादी एकताकामी होते है ? एक मिसाल देखिये। कुछ बरस पहले मध्यप्रदेश के एक जिला मुख्यालय के एक चिथड़ा अखबार के टपोरी संवाददाता को मारपीट के बाद जिलाबदर कर दिया गया। इन साहब ने एक छुटभैये कांग्रेसी नेता से साइकल स्पांसर करा ली । वक्त काटने का इससे नायाब तरीका और क्या हो सकता था। श्रीमानजी ‘राष्ट्रीय एकता यात्रा’ की तख्ती साइकल पर लगाकर एक साल के लिए भारत भ्रमण पर निकल पड़े और जिला स्तरीय हीरो का दर्जा पा गए।
कुछ अर्सा पहले एक बच्ची चर्चा में थी। राष्ट्रीय एकता के नाम पर उससे रोलर स्केटिंग कराई जा रही थी। बच्चों से और भी कई तरह के कारनामें लगातार कराए जाते रहे हैं। वे बच्चे जिन्हें यह तक नहीं पता कि किस काम से देश की भलाई होनी है उनसे राष्ट्रीय एकता के मायने समझने की उम्मीद ?जिन्हें शायद यह नहीं पता कि पेप्सी बहुराष्ट्रीय कंपनी है मगर वही उसका पसंदीदा पेय है। मैगी नूडल्ज उसे भाते हैं मगर इस स्विस कंपनी की महंगी हकीकत उस पर उजागर न हुई हो । इन करामाती बच्चों के अभिभावक भी शायद न जानते हों कि मैगी से भी बेहतर नूडल्ज ईद के मौके पर हमारी मुस्लिम खवातीन बना डालती हैं जिन्हे सिंवैया कहते । देश का भला तो छोटी –छोटी बातों से भी हो सकता है।
जिस मुल्क का खेलों की दुनिया में कोई नाम न हो , वहां राष्ट्रीय एकता के नाम पर करतबबाजों की फौजी कवायद वाकई शर्मनाक है। आपकी मंजिल ओलिंपिक नहीं है और नही आप खुली स्पर्धा में शारीरिक क्षमता दिखाना चाहते हैं। इन एडवेंचरिस्ट एकताकामियों से कहीं कमतर नहीं है गांवों-कस्बों के मेलों-ठेलों में लगातार साइकल चलाने वाला वह अनपढ़-बेढब कलाकार जो पूरे सात दिन साइकल चलाता है। उसी पर रोजमर्रा के काम भी निपटाता है। क्या उसे भी यह सब करतब दिखाने के लिए ‘राष्ट्रीय एकता जादुई मंत्र’ को नहीं सीखना चाहिए ? हमारे देश के इन साहसियों को कब समझ आएगा कि उनके कारनामे केवल मानवीय क्षमता भर दिखाते हैं, इससे ज्यादा कुछ नहीं। इनका देश जाति, मजहब और अंततः राष्ट्रीय एकता से कोई लेना देना नहीं है। हमारी राष्ट्रीय एकता न तो इतनी कमजोर है और न ही इन करतबों से मजबूत होती है। इन्ही करतबों से राष्ट्रीय एकता मजबूत होनी होती तो देश की दर्जनों सर्कस कंपनियों के हजारों कलाकार इसे बरसों पहले कर चुके होते ।
Sunday, September 9, 2007
राष्ट्रीय एकता बनाम करतबबाजियां
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 8:34 PM
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4 कमेंट्स:
अब तो टीवी चैनल भी करतबबाजों के जरिये टीआरपी बढ़ाने में लगे है। पंजाब के एक सरदारजी तो किसी भी मौके पर उससे संबंधित मिनियेचर आर्टपीस बनाकर प्रचार हासिल कर लेते हैं।
सचमुच आप जो कह रहे उससे मैं सहमत हूं. कितना अजीब है ये सब..
इट हैप्पनस ओनली इन इंडिया, बहुत सही कह रहे हैं.
बात तो सही है। मगर इन गुमनाम लोगों की राष्ट्रीय एकता मुहिम तो ठीक है बीसीसीआई के बैनर तले खेलने वाली टीम को भारतीय टीम का दर्जा मिलना और इन खिलाड़ियों के रूतबे के ज़रिये विज्ञापन कंपनियों द्वारा देशप्रेम का छद्म वातावरण बनाकर बीसीसीआई, खिलाड़ियों और उद्योगजगत की जेब भरने के दुश्चक्र पर क्या कहेंगे ? जब बीसीसीआई की टीम भारतीय टीम हो सकती है इसीलिए एक साथ सवा सत्ताइस गालियां बकने की सामर्थ्य रखनेवाला हिन्दुस्तानी भी राष्ट्रीय एकता यज्ञ में आहुति देने पर उतारू हो जाता है।
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