भवानी प्रसाद मिश्र अपनी सीधी सरल बानी में बहुत कुछ कहने के
लिए जाने जाते रहे। उनकी छोटी-छोटी कई कविताएं इन्हीं गुणों के चलते सूक्तियों का सा असर पैदा कर देती हैं। शिल्प के नज़रिये से ये हाइकू जैसा मज़ा भी देती हैं। गौरतलब है कि भवानीभाई उस युग में ये कविताएं लिख चुके थे जब हाइकू भारत में नहीं आई थीं।
उसे आदमी कहो सरासर
सीधी बात समय पर सूझे
कठिनाई से बढकर जूझे,
दिशा समझकर चले बराबर
उसे आदमी कहो सरासर
दो दिन रूप
तीन दिन रूपा
गुन-बिन
छूंछ उडे़ ज्यों सूपा
अंधेरा-उजाला
तुमने कभी ठीक से
देखा-भाला है ?
अंधेरा काफी हद तक उजाला है
सफेद काफी हद तक काला है
Sunday, September 23, 2007
हाइकू सी लगती भवानीबानी
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 11:08 PM
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1 कमेंट्स:
भाई, हाईकु के अपने जटिल नियम हैं...इन्हें क्षणिकायें कहना ही बेहतर है. हैं बहुत बेहतरीन!!
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