अधर धरत हरि के परत, ओंठ, दीठ, पट जोति।
हरित बाँस की बाँसुरी, इंद्र धनुष दुति होति॥
यह शब्द बना है संस्कृत शब्द दृष्टि से जिसका मतलब है आंख की देखने की शक्ति अर्थात देखना, नजर डालना, चितवन और विचार आदि । इसी श्रंखला में आते हैं दृष्टिगोचर, दृष्टिपात, दृष्टिगत दृष्टिमान, और दृष्टिहीन आदि शब्द भी । ये तमाम शब्द बने हैं संस्कृत धातु दृश से। दीठ या दृष्टि से संबंधित कई मुहावरे भी बने है जैसे नज़र लगने के लिए दीठ लगना भी प्रचलित है। इसी तरह दीठ चुराना यानी किसी का सामना करने से बचना, दीठ गड़ाना या दीठ जमाना यानी टकटकी लगाए ताकना वगैरह ।
दृश का एक रुप ददृश भी है। फारसी का दीदः (दीदा) इसका ही समरूप है जिसमें भी नयन और नज़र का आशय है। इससे ही बना दीद जो हिन्दी में दृष्टि का पर्यायवाची है। बरसात की रात फिल्म का बड़ा प्यारा सा गीत है जिसे श्यामा पर फिल्माया गया-
मुझे मिल गया बहाना तेरी दीद का ,
कैसी खुशी लेके आया चांद ईद का
दीद से उपजे कई शब्द हिन्दी-उर्दू में भी आमतौर पर इस्तेमाल हो रहै हैं मसलन दीदादिलेरी अर्थात दुस्साहस या बेशर्मी, दीदार, दीदाबाजी, दीदावर (पारखी), दीदावरी यानी भले बुरे की पहचान आदि। दीदे मटकाना, दीदे नचाना, दीदे फूटना या फोड़ना जैसे मुहावरे भी प्रचलित हैं।
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4 कमेंट्स:
अधर धरत हरि के परत, ओंठ, दीठ, पट जोति।
हरित बाँस की बाँसुरी, इंद्र धनुष दुति होति॥
इंद्र धनुष दुति होति कि फिर काहे ठिठोना
मुन्ना काला होए तो फिर काहे का रोना
कहे समीर कविराय, बात ये मेरी मानो
दिठौने का परताप, यूँ बचा ले तो जानो.
--बहुत सही ज्ञान दिये हो भाई!!! हमें तो कभी लगाया नहीं गया दिठौना...हम तो खुद ही दिठौना टाईप थे अपने आजू बाजियों को बचाते. :)
अजित जी, आपने याद दिला दिया। बचपन में हम लोग कूद-कूद कर गाते थे - दिया, दियाली कोने कै, बारह रोज दिठौने कै...
ज्ञान वर्धक!
बोलचाल की भाषा में प्रचलित कुछ और शब्दों कि व्युतपत्ति एवं आपासी संबंध आज समझ में आया -- शास्त्री जे सी फिलिप
हिन्दीजगत की उन्नति के लिये यह जरूरी है कि हम
हिन्दीभाषी लेखक एक दूसरे के प्रतियोगी बनने के
बदले एक दूसरे को प्रोत्साहित करने वाले पूरक बनें
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