हाल ही में जब देश की पहली महिला राष्ट्रपति के रूप में प्रतिभाताई पाटील के चुने जाने का प्रसंग चल रहा था तो हिन्दी के कई अखबार उनके उपनाम के साथ पाटिल लिख रहे थे। पाटील नाम के साथ बडी़ ई की मात्रा सही है यह सिद्ध होता है इस शब्द की व्युत्पत्ति से। दरअसल जो हिन्दीभाषी क्षेत्रों में पटेल है वही महाराष्ट्र में पाटील है। पटेल गुजरात में भी खूब होते है। आज प्रचलित तौर पर गांवों में पटेल उस व्यक्ति को कहते हैं जो गांव का प्रमुख हो या मुखिया हो। गौरतलब है कि संस्कृत मे एक शब्द है पट्टकील जो पाटील या पटेल का आधार है। यह लफ्ज बना है संस्कृत के पट्टः या पट्टम् और कीलकः के मेल से। संस्कृत में पट्ट के कई अर्थ है जैसे सूत, रेशम, कपड़ा, तख्ती,राजाज्ञा, शिला, पेढ़ी आदि।
पट्ट से ही जन्मा है हिन्दी का दुपट्टा यानी ओढनी या उत्तरीय। यह शब्द बना है पट्ट में द्वि उपसर्ग लगने से । अर्थात ऐसा कपड़ा जो दोहरा हो। इससे ही बना है पटोल या पटोला शब्द जिसका मतलब होता है एक प्रकार का रेशमी कपड़ा। साड़ी की एक खास किस्म जो बंगाल में पाई जाती है, वह भी पटोला कहलाती है। यह सिल्क यानी रेशमी होती है । ढाका की मलमल चूंकि मशहूर थी, अतः बंगाल से इसका रिश्ता स्वाभाविक है।
मौर्यकाल में सूत से बने पट्टे पर भूमि संबंधी स्वामित्व का उल्लेख किया जाता था। ये लिखित पट्ट, कीलकों में रखे जाते थे । कीलक यानी धातु या बांस की पोली नलकियां जिनमें गोल घुमाकर इन सरकारी दस्तावेजों को सुरक्षित रखा जाता। जिसके अधिकार में पट्टकील होता उसे पट्टकीलक कहा जाता। इस विवरण से स्पष्ट है कि पट्टकीलक एक पदवी थी। यह व्यक्ति राजा का विश्वासपात्र और प्रमुख कर्मचारी होता था जिसके पास राज्य का भूमि संबंधी रिकार्ड रहता था। यह व्यवस्था तत्कालीन समाज में शासन के उच्चतम स्तर से नीचे तक थी अर्थात छोटे सामंतों के यहां भी भूमि बंदोबस्त का काम पट्टकीलक देखते और वे गांव के प्रमुख व्यक्ति कहलाते। आज भी भू अभिलेख संबंधी दस्तावेजों को पट्टा कहा जाता है और इस रिकार्ड को रखने का काम एक सरकारी कर्मचारी करता है जिसे पटवारी कहते हैं।
बाद के दौर में तांबे की पट्टियों पर यानी ताम्रपत्रों पर भू-अभिलेखों का चलन शुरू हुआ तो भी ऐसे अभिलेख पट्टकीलकों के ही पास सुरक्षित रहते। यही पट्टकीलक पट्टईल में तब्दील होते हुए पाटील, पाटेल, पाटैलु या पटेल कहलाए। बाद में यह कार्य जातिगत विशेषण में तब्दील हो गया। गुजरात के पटेल या मालवा के पाटीदार भी इसी मूल से जुड़ते हैं।
Tuesday, September 11, 2007
पाटील का दुपट्टा
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 3:44 AM
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3 कमेंट्स:
भाई अद्भुत और विशेष कार्य कर रहे हैं | कम से कम आपके धाम में आकर यही महसूस करता हूँ मैं | आपकी वजह से बहुत जानकारियां बढ़ रही है हमारी ... हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं | हमने कुछ पालित के बारे मे सुना है क्या उन्हें भी पाटिल में गिनते हैं क्या ?
हर बार कोई नई दिलचस्प जानकारी । किसी खोज पर जाने जैसा । सचमुच बढिया ।
अच्छा है. हम कंफ्यूजन में थे; पर "पाटील" सही लिखते थे!
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