Sunday, December 9, 2007

इसकी तो हिन्दी कर दी ....

भोन्दू , भद्दा , भदेस वाले आलेख पर टिप्पणी में बालकिशन ने आग्रह अनुरोध किया है कि भद्र शब्द की इतनी अवनति कैसे हो गई कि एकदम ही अर्थ का अनर्थ हो गया। इसे स्पष्ट करने के लिए मैने अपनी दो पुरानी पोस्ट का हवाला दिया है ।
बुद्ध से बुत और बुद्ध से ही बुद्धू के संदर्भ में इसे समझा जा सकता है। मूढ़ या मूर्ख शब्द की व्युत्पत्ति मुह् धातु से हुई है जिसमे मुग्ध होने का भाव निहित है। मोहन, मोहिनी , सम्मोहिनी, मुग्ध, मुग्धा जैसे अनेक शब्द इससे बने मगर इससे ही बने मूर्ख में सारे भाव उलट जाते हैं। दरअसल मुह् के मूल में जड़ हो जाना (सम्मोहन में यही तो होता है) , भूल जाना अथवा भ्रान्ति जैसे भाव शामिल हैं। ये सभी किसी न किसी रूप में अज्ञान या चेतना के विपरीत क्रिया से जुड़ते हैं।

मूर्ख है आत्ममुग्ध

बुद्ध मुद्रा में बैठे रहनेवाले व्यक्ति को कालांतर में यही उपाधि मिल गई। वक्त के साथ इसमें जड़ता का भाव प्रमुख हो गया और बुद्ध से बना बुद्धू, मूर्ख का पर्याय बन गया। यही हाल सम्मोहित व्यक्ति का होता है। वह भी जड़ हो जाता है। अथवा किसी के प्रभाव में काम करता है जाहिर है उसकी अपनी प्रज्ञा काम नहीं कर रही होती है। दुनियादारी में किसी भी ऐसी अवस्था को भी सम्मान नहीं मिलता है सो मुह् से बने मूर्ख या मूढ़ में भी यही बात पैदा हुई। आत्ममुग्ध व्यक्ति को भी हम मूर्ख ही तो समझते हैं।
भद्र से भद्दा बनने की अगर पड़ताल करें तो वहां भी कुछ यही बात सही होती लगती है। भद्र में निहित साधुता , सादगी वाले लक्षणों की वजह से जो वर्ग सामने आया वह था सिर घुटे साधुओं, श्रमणों का । ढीली-ढाली वेशभूषा आदि को ही भद्दा यानी कुरूपता का प्रतीक माना जाने लगा होगा। शब्दों की अवनति होने में जनमानस में पैठ रही धारणाएं खूब प्रभावी होती है।

शिष्ट माणूस

शब्दों की अधोगति कैसे होती ह इसे महाराष्ट्रीय समाज में शिष्ट शब्द के बर्ताव से समझ सकते हैं। हिन्दी - संस्कृत में शिष्ट शब्द का मतलब सामान्य तौर पर सर्वगुणसंपन्न, माननीय , विद्वान या सच्चरित्र होता है। मगर मराठी में आमतौर पर शिष्टमाणूस यानी शिष्ट मनुष्य उसे कहते हैं जो अतिशय समझदारी का प्रदर्शन करता हो। प्रकारांतर से अकड़ू, प्रदर्शनप्रिय जैसे अर्थों में ही इसका ज्यादा प्रयोग होता है।

हिन्दी हो गई

पाखंडी शब्द के बारे में भी सफर की पिछली कड़ी में लिखा जा चुका है। कहां तो मौर्यकाल का यह धार्मिक सम्प्रदाय समाज में आदर का पात्र था और कहां पाखंडी के अर्थ में ज़मानेभर में बदनाम हो गया। किसी चीज़ का रूप बिगाड़ देने के अर्थ में हिन्दी करना शब्द भी अब मुहावरे का रूप ले चुका है। जाहिर है आजादी के बाद राजभाषा समर्थकों ने जब कठिन से कठिन पारिभाषिक शब्दावलियां बना दीं तो यह मुहावरा चल पड़ा कि इसकी तो हिन्दी हो गई। यानी अच्छी भली चीज़ की शक्ल बिगाड़ दी गई।

9 कमेंट्स:

Sanjay Karere said...

असल में अजित भाई आपका शोध इतना संकरे पथ पर चलता है कि विचलन की कोई गुजाइश ही नहीं रहती लेकिन दूसरी ओर उत्‍सुक पाठकों के मन में कई जिज्ञासाएं पैदा हो जाती हैं. मेरा एक विनम्र सुझाव है यदि उचित लगे तो विचार कीजिएगा. यदि कोई पाठक किसी कड़ी को पढ़ने के पश्‍चात अपनी उत्‍सुकता के कारण अधिक जानकारी चाहे तो अगली कड़ी के अंत में उसे भले ही दो लाईन में जवाब अवश्‍य दें. यानि इस सफर को थोड़ा सा.. बस थोड़ा सा संवाद शैली में इंटरेक्टिव बना दें (जैसे आज किया)तो मुझे लगता है कि मेरे जैसे पढ़ने वालों का बहुत भला होगा. सिर्फ आग्रह है और मंतव्‍य यह कतई नहीं है कि इसे फरमाइशी स्‍वरूप दिया जाए. बहरहाल एक और रोचक जानकारी का शुक्रिया.
बाय द वे, क्‍या RJ से BPL आने वालों को हमेशा बस के सफर की यातना ही झेलनी पड़ती है, तब मैने भी झेली थी 16 घंटे की. :)

Bhupen said...

इस मुहावरे को मैंने दो-तीन साल पहले सुना था. जब एक प्राइवेट और सो कॉल्ड हाई-फाई मीडिया इंस्टीट्यूट से पासआइट होकर एक लड़की मेरे साथ काम करने आई. कोई बात थी और उसकी बेवकूफी ख़ुलकर सामने आ गई थी.तब वो बोली- सर आपने तो मेरी हिंदी कर दी. तब हिंदी का इस तरह का इस्तेमाल देखकर मैं सन्न रह गया था. आज उस घटना की याद आ गई.

Gyan Dutt Pandey said...

बड़ी अच्छी हिन्दी है!

Shiv Kumar Mishra said...

बहुत बढ़िया..

Asha Joglekar said...

बहुत रोचक जानकारी । हिंदी कर दी मुहावरा पहली बार सुना लेकिन हिंदी का यह अपमान बहुत साल गया ।

अनूप शुक्ल said...

शानदार जानकारी। बुद्दुपने की हिंदी हो गयी।

Sanjeet Tripathi said...

बढ़िया जानकारी!!

बालकिशन said...

बहुत कुछ शंकाओं का निराकरण हो गया आपके दिए तीनो लिंकों पर जाकर.
और नई जानकारी भी मिली. धन्यवाद.

ALOK PURANIK said...

धांसू च फांसू

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