Friday, February 5, 2010

जड़ से बैर, पत्तों से यारी

tree-roots

तही सोच-समझ और मतलबपरस्ती के लिए एक कहावत है जड़ से बैर, पत्तों से यारी । इसी तरह खुद को प्रतिष्ठित करने या दूसरे को नुकसान पहुंचाने, पूरी तरह नष्ट कर देने के अर्थ में हिन्दी में दो मुहावरे आमतौर पर इस्तेमाल होते हैं । जड़ जमाना और जड़ उखाड़ना। यहां चाहे जड़ का शाब्दिक अर्थ वृक्ष के मूल से है मगर मगर भाव उस आधार से है जो किसी भी चीज़ को मज़बूती प्रदान करता है। किसी वस्तु या व्यक्ति के आधार को कम करने के लिए जड़ों को खोखला करना, जड़ों में मट्ठा डालना अथवा जड़ें खोदना जैसे मुहावरों का प्रयोग होता है। हिन्दी में जड़ शब्द का तीन तरह से प्रयोग होता है। दिलचस्प बात यह कि तीनों ही प्रकारों में जड़ शब्द का अर्थ अलग अलग है।
जड़ -1 मतौर पर इस जड़ का प्रयोग विशेषण के रूप में होता है। निष्क्रिय, निष्चेष्ट या आलसी को जड़ शब्द प्रचलित है। यह बना है संस्कृत के जड से जिसका मतलब होता है अत्यधिक शीत, ठंड, ठिठुरन या जमाव बिंदु तक सर्दी होना। दिलचस्प बात यह कि जड शब्द का निर्माण जल् धातु से हुआ है जिसका मतलब भी स्फुर्तिहीन, ठंडा या शीतल ही होता है। इसी से बना है पानी के लिए जलम् शब्द । जाहिर सी बात है कि तरलता के बाद पानी का सबसे बड़ा गुण उसकी शीतलता ही है और अपने मूलस्रोत पर तो यह हिमशीतल रहता है। शीतलता के इन्हीं भावों से एक और नए शब्द का  जन्म हुआ जाड्यम् जिसमे यही सारे अर्थ समाहित हैं। गौर करें कि अत्यधिक सर्दी में मनुष्य का मन कुछ काम नही कर पाता dog sweater 1इसी लिए जाड्यम् में अनासक्ति, आलस्य और निष्क्रियता जैसे अर्थ भी जुड़ गए। लगातार बर्फीले क्षेत्र में निवास अवसाद तक उत्पन्न कर देता है। जाड्यम का ही अर्थविस्तार हिन्दी शब्द जाड़ा के रुप में हुआ । सर्दी के मौसम को जाड़े का मौसम भी कहा जाता है। ठिठुरन के साथ आने वाले बुखार को देहात में जुड़ी का बुखार कहते हैं जो इसी मूल से उपजा शब्द है। अत्य़धिक शीत या बर्फ में निवास से शरीर निष्क्रिय होते होते निश्चेत होने लगता है। इस अवस्था में मस्तिष्क बहुत ज्यादा नहीं सोच पाता।  इसी स्थिति के लिए जड शब्द का प्रयोग होता है जिसे हिन्दी में जड़ कहा जाता है। कालांतर में निष्क्रिय या निश्चेत की बजाय मंदबुद्धि, मूर्ख, बुद्धू आदि के लिए जड़ शब्द का प्रयोग किया जाने लगा। गौरतलब है कि अक्लमंद की बुद्धि तीक्ष्ण होती है सो इसी के विपरीत मूर्खों को मोटी बुद्धिवाला कहा जाने लगा। जड़ यानी मोटी बुद्धिवाला । जड़बुद्धि वाले को पहले जाड़ा या जाड्या कहा गया। इसी मुकाम पर आकर लोकभाषा सक्रिय होती है और जड़ से जाड़ा यानी मोटा जैसा शब्द बना लेती है। मालवा, महाराष्ट्र और गुजरात के कुछ हिस्सों में मोटे या मोटी के लिए जाड़ा या जाड़ी जैसा शब्द भी है। मूर्ख के लिए हिन्दी में जड़भरत विशेषण भी है। दरअसल ये पौराणिक पात्र हैं। ये ऋषभ के पुत्र थे और बहुत बड़े विद्वान थे । सांसारिक मायामोह से उचाट के चलते ये अपने ज्ञान का परिचय किसी को नहीं देते थे और उदासीन, जड़वत रहते थे। उनके व्यक्तित्व को सम्मान देते हुए तत्कालीन समाज ने उन्हें जड़ भरत कहना शुरू कर दिया। मगर कालांतर में समाज ने मंदबुद्घि और मूर्ख की उपमा के तौर पर इस शब्द को सीमित कर दिया। बुद्ध से बुद्धू, पाषंड से पाखंडी और वज्रबटुक से बजरबट्टू वाला किस्सा यहां भी दोहराया गया ।
जड़ -2 किसी वस्तु में दूसरी वस्तु को समाहित करना , बैठाना या संयुक्त करने के लिए इस जड़ का प्रयोग किया जाताroots है। जड़ का यह तीसरा प्रकार क्रिया के रूप में ही प्रयुक्त होता है। इसका जन्म भी जट् धातु से हुआ है जिसमें जुड़ाव, सम्मिलन आदि का भाव प्रमुख है। जड़ना, जड़ाऊ, जड़ित जैसे शब्द इससे ही बने हैं। जड़ देना जैसा मुहावरा खासतौर  पर इस शब्द की देन है जिसमें झूठी बातें बनाना जैसा भाव है तो दूसरी ओर अचानक जोर से मार देना अर्थात थप्पड़ जड़ देना भी शामिल है।
जड़ -3 ह जड़ दरअसल संज्ञा के रूप में हमेशा प्रयोग में आता है। जड़ यानी वृक्ष का वह अंग जो धरती के अंदर होता है और जिससे पेड़ को भरण-पोषण प्राप्त होता है। जड़ बना है संस्कृत धातु जट् से जिसमें पेचीदा, उलझाव, जुड़ाव, गुत्था और सम्मिलित होने का भाव है। पेचीदा व्यक्ति अथवा बात के लिए जटिल शब्द का प्रयोग होता है जो इसी जट् धातु से बना है। जटाजूट की तरह उलझाव का गुण ही किसी चीज़ को जटिल बनाता है। किसी ज़माने में साधुओं के एक सम्प्रदाय को जटिल कहते थे क्योंकि वे लम्बी घनी जटाएं रखते थे और गढ़ बातें करते थे। पोषण के अतिरिक्त जड़ का प्रमुख काम वृक्ष को थामे रखने का भी है। जड़ की विशेषता होती है जितना वृक्ष सतह के ऊफर ऊंचा-फैला रहता है उतनी ही वह भी धरती के अंदर गहरी-फैली रहती है -अपने सभी लक्षणों यानी मिट्टी-पत्थर में उलझती, गुत्था बनाती, पेचीदा राह तलाशती और चट्टानों से जुड़कर मज़बूत पकड़ बनाती हुई। इस तरह जड़ पेड़ को सहारा देती है सो जड़ में एक और भाव समाहित हुआ आधार का। यही भाव जड़ से उखाड़ना या जड़ जमाना जैसे मुहावरों में प्रमुखता से उभर रहा है। जड़ें बड़ी गुणकारी होती हैं इसलिए छोटे पौधों की जड़ कहलाई जड़ी और उसमें बूटी जुड़ कर औषधि के लिए जड़ीबूटी जैसा शब्द भी बन गया । मूल आशय जड़ और पत्ते से है। बूटा शब्द बना है विटप से जिसका अर्थ है पौधा, छोटा वृक्ष। इसमें पत्ते का आशय भी समा गया। नवकोपल, नवपल्लव। पंजाबी में जड़बूट कहते हैं। यानी जड़ और पौधा। बूटा का अर्थ नन्हा भी होता है। कोई भी छोटी चीज़। बूटा क़द यानी छोटा क़द। जड़ ज़मीन के नीचे, बूटा ऊपर। चूँकि पेड़ पौधों के पत्ते सर्वाधिक गुणकारी होते हैं इसलिए जड़ीबूटी युग्म में दवा का भाव आया। बेलबूटा का अर्थ है वल्लरी और विटप। यानी वृक्ष और लता। कपड़ों पर जब छोटे छोटे फूल-पत्ती की आकृतियाँ काढ़ी जाती हैं, उसे बेलबूटा कहते हैं।  

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13 कमेंट्स:

Udan Tashtari said...

जुड़ी का बुखार यहाँ से निकला, जानना सुखद रहा! धन्यवाद!

निर्मला कपिला said...

आज तो शेर लिखने के लिये फिकरा मिल गया बहुत बहुत धन्यवाद । लिख कर सुनाऊँगी ।

ghughutibasuti said...

बहुत बढ़िया! जाट शब्द भी क्या भरण-पोषण करने वाले से आया?
घुघूती बासूती

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

अच्छी और रोचक बातें पता चलती हैं आपके ब्लाग पर.

Rangnath Singh said...

हमारे जड़ जमाए भाषाई अज्ञान को कम करने के लिए आभार।

परमजीत सिहँ बाली said...

रोचक व बढिया जानकारी।आभार।

Gyan Dutt Pandey said...

पता नहीं जड़ की बात पढ़ कर भग्वद्गीता का वह वृक्ष याद आ गया जिसकी पत्तियां नीचे हैं और जड़ ऊपर!

Baljit Basi said...

जड़ -1 में तो बहुत पते की बात बताई. जल से जड और फिर जड़. पंजाबी में 'जिडा' विशेषण है मतलब है गतीहीन .
जड़ -3 में आये शब्द 'जटाजूट' से मुझे पंजाबी 'जटबूट' की समझ आई. मैं तो इसे जट(जाट) से जोड़ता था लेकिन हैरान था यह
अंग्रेजी बूट कहाँ से आ गया. अब समझ आई यह बूट दरअसल बूटा है और 'जटबूट' का भाव होगा बूटे की जड़ के समान. लेकिन हमारे इसका मतलब पेचीदा नहीं बल्कि (जट) जाट की तरह सीधा सादा है. खैर भाषा में दुसरे शब्द भी अर्थ को प्रभावित करते हैं.बरगद पेड़ की लटकती जड़ों को पंजाबी में 'जटां' या 'दाड़ी' बोलते हैं.
आपके इन लेखों से मुझे पंजाबी भाषा के शब्द समझने में बहुत लाभ हो रहा है.

दिनेशराय द्विवेदी said...

आज समझ में आया कि मूली को मूली क्यों कहते हैं। उस की (मूल)जड़ जो खाने के काम आती है।

Pushpendra Singh "Pushp" said...

वाह ज्ञान वर्धक रचना
बहुत बहुत आभार...........................

उम्मतें said...

जड़ से बैर, पत्तों से यारी की कहावत मूल से सूद प्यारा जैसा भाव रखती है ! दिलचस्प बात ये है कि एक तरफ, जड़ खोदने / जड़ में मट्ठा डालने / थप्पड़ जड़ देने से क्षति पहुंचाने के संकेत मिलते हैं ! वहीं दूसरी तरफ इसका अपना अलग सा सौंदर्यशास्त्र भी है ज़रा गौर फरमाइये कि भरत के व्यक्तित्व में माया मोह से उचाट होना या उदासीनता जड़ दी गयी जो उनके व्यक्तित्व का सौन्दर्य है यानि संत सा , देवत्व सा अहसास , फिर भले ही बाद में उसमें मंदबुद्धि जैसा नकारात्मक शेड जोड़ा गया ! इसी तरह से 'गहनों में मनके जड़' देना भी सौन्दर्य की अभिवृद्धि का ही कृत्य तो है ! लगता ये है कि विनाश, मुक्ति और विलास का सौन्दर्य गढ़ने में जड़ दा जबाब नहीं ! अब चलते चलाते यह भी कह डालूं कि
मेरे लिए बदशक्ल होना भी सौन्दर्य का ही एक रूप है :)

Baljit Basi said...

जड़ का यह तीसरा प्रकार क्रिया नहीं, दूसरा प्रकार !

Baljit Basi said...

जड़ -1 : इसका भारोपी मूल है gel-/gol-जिसका मतलब है शीत "cold." जुड़ी का बुखार की तरह अंगेरजी में है common cold OR bad cold

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