बांसों का झुरमुट
सन्ध्या का झुटपुट
है चहक रही चिड़िया
टि्वी टि्वी टुट टुट
बांस का जब कभी भी सन्दर्भ आता है तो कविवर सुमित्रानंदन पंत की ये पंक्तियां मुझे अक्सर याद आ जाती हैं। बांस बना है संस्कृत के वंश से। आमतौर पर कुटुम्ब, कुल, और खानदान के अर्थ में वंश शब्द इस्तेमाल मे लाया जाता है। ये तमाम अर्थ जुड़ते हैं घनत्व, संग्रह या समुच्चय से । अब बांस की प्रकृति पर गौर करें तो पाएंगे कि इसे जहां भी लगाया जाए , इकाई से दहाई और सैंकडे़ की प्रगति नज़र आती है। वंशावली शब्द पर ध्यान देना चाहिए। प्राचीन अर्थों में तो इसका अर्थ बांसों की पंक्ति ही होगा मगर आज इसका रूढ़ अर्थ कुल परंपरा या एनसेस्ट्री ही है। पूर्ववैदिक युग में वंश शब्द का अर्थ बांस ही रहा होगा। प्राचीन समाज में लक्षणों के आधार पर ही भाषा में अर्थवत्ता विकसित होती चली गई। स्वतः फलने फूलने के बांस के नैसर्गिक गुणों ने वंश शब्द को और भी प्रभावी बना दिया और एक वनस्पति की वंश परंपरा ने मनुश्यों के कुल, कुटुंब से रिश्तेदारी स्थापित कर ली। इस नाते वंशज शब्द का मतलब सिर्फ संतान या रिश्तेदार ही नहीं मान लेना चाहिये बल्कि इसका मतलब बांस का बीज भी हुआ। बांस की यह रिश्तेदारी यहीं खत्म नहीं हो जाती । बांसुरी के रूप में भी यह नज़र आती है। संस्कृत के वंशिका से बनी बांसुरी ने भगवान श्रीकृष्ण से संबंध जोड़ा इसी लिए वे बंसीधर भी कहलाए। यही नहीं वेणु का मतलब भी बांस ही होता है और प्रकारांतर से इसका एक अन्य अर्थ मुरली हो जाता है इसीलिए श्रीकृष्ण का एक नाम वेणुगोपाल भी है।
वंश से जुड़े कुछ अन्य शब्द है बंसकार, बंसोड़ या बंसौर जो बांस से जुड़ी अर्थव्यवस्था वाले समूदाय हैं। बांस की टोकरियां , चटाई या सूप बनानेवाले लोग।
अंग्रेजी में बांस के लिए बैम्बू शब्द प्रचलित है। देसी बोलियों और फिल्मी गीतों संवादों में बम्बू का प्रयोग साबित करता हैं कि बांस का यह अंग्रेजी विकल्प भी हिन्दी का घरबारी बन चुका है। दरअसल कुछ लोग बैम्बू का रिश्ता वंश से ही जोड़ते हैं। यह शब्द अंग्रेजी में आया डच भाषा के bamboe से जहां इसकी आमद पुर्तगाली जबान के mambu से हुई। पुर्तगाली ज़बान में यह मलय या दक्षिण भारत की किसी बोली से शामिल हुआ होगा।
वंश की मूल धातु पर गौर करें तो यह पहेली कुछ सुलझती नज़र आती है। वंश का धातु मूल है वम् जिसके मायने हैं बाहर निकालना, वमन करना, बाहर भेजना , उडेलना, उत्सर्जन करना आदि। इससे ही बना है वंश जिसके कुलवृद्धि के भावार्थ में उक्त तमाम अर्थों की व्याख्या सहज ही खोजी जा सकती है। इस वम् की मलय भाषा के मैम्बू से समानता काबिलेगौर है।
Wednesday, September 5, 2007
कैसे-कैसे वंशज - बांस , बांसुरी और बंबू !
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 2:05 PM
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3 कमेंट्स:
हम तो बांस हैं,
जितना काटोगे,उतना हरियायेंगे.
हम कोई आम नहीं
जो पूजा के काम आयेंगे
हम चंदन भी नहीं
जो सारे जग को महकायेंगे
हम तो बांस हैं,
जितना काटोगे, उतना हरियायेंगे.
पूरी कविता फुरसतिया के पन्ने पर देखिएगा. http://fursatiya.blogspot.com/2005/09/blog-post_14.html
ji accha bataya aapne bashon k bare me
क्या पोस्ट है! बांस से चल कर बांसुरी बजाती वंश विरुदावली गाने वाली!
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