किसी की प्रशंसा में बेसाख्ता जो लफ्ज अक्सर जबान पर आता है वह है शाबाश। ये एहसास कुछ ज्यादी ही गहरा हो तो निकलता है शाब्बाश। हिंदी उर्दू शबदकोशों मे इसका अर्थ खुश रहो, मजे करो जैसे आशीर्वाद के रूप में मिलता है। सवाल उठता है फारसी मूल के इस शब्द का जन्म कैसे हुआ?
फारसी का ही एक शब्द है शादबाश। शाद यानी आनंद और बाश यानी रहनेवाला। अर्थ हुआ-खुश रहो। कुछ जानकार इस लफ्ज के पीछे ईरान के किसी सूबे के राजा शाह अब्बास को खड़ा देखते है। दरअसल यह शाह अब्बास कोई और नहीं इस्फहान का प्रसिद्ध बादशाह शाह अब्बास महान था जो सफावी वंश का था। शाह अब्बास (१५५७-१६२९) गजब की बहादुरी और ईमान के लिए जाने जाते थे।
समाज में उनकी इतनी शोहरत थी कि हर अच्छे काम के लिए लोग उन्हीं की मिसालें दिया करते । क्या खूब ... बिल्कुल शाह अब्बास जैसा काम किया है। बाद में तारीफ हासिल करने वाले को ही शाह अब्बास कह कर सराहा जाने लगा। घिसते घिसते यह शाबाश हो गया। ठीक वैसे ही जैसे बुद्ध ने ही घिस-घिस कर फारसी में बुत का रूप अख्तियार कर लिया और हिंदी में बुद्धू बन गया। गौरतलब है कि फरसी निकला शाबाश लफ्ज आज हिंदी के साथ साथ अंग्रेजी में भी इसी अर्थ में इस्तेमाल किया जाता है। खासतौर पर ब्रिटिश फौज की शब्दावली में तो यह धड़ल्ले से बोला जाता है। कुछ शाह अब्बास के बारे में
सन् पंद्रह सौ से सत्रह सौ के बीच ईरान विशुद्ध ईरानियों द्वारा शासित रहा । यह दौर सफावी वंश का था। इसी वंश के थे शाह अब्बास। इन्हें पश्चिम में ओटोमन तुर्कों का मुकाबला करना पड़ा। तब तुर्कों ने समूचे अजरबैजान पर कब्जा किया हुआ था। इसी तरह पूर्व में इन्हें उज्बेकों से टक्कर लेनी पड़ी जो खुरासान में घुस आए थे और हेरात और मशहद पर कब्जा किए बैठे थे। शाह अब्बास ने पहले तो तुर्कों से संधि करके उज्बेकों को मार भगाया। बाद में तुर्कों को पटखनी देते हुए अजरबैजान , आर्मीनिया और जार्जिया छीन लिया। अब्बास ने अंग्रेजों की मदद से १५९८ में हथियारों की ढलाई का एक कारखाना खोला। इस्फहान को राजधानी बनाया। दस हजार घुड़सवारों और बीस हजार पैदल सैनिकों की फौज खड़ी की। उन्होंने ईरान के विकास के लिए खूब काम किए। ईरान का प्रसिद्ध बंदरगाह बंदरअब्बास उन्हीं की देन है। सन १६२२ में उन्होंने होरमुज़ से पुर्तगालियों को खदेड़ा था और यहां एक सुव्यवस्थित बंदरगाह बनाया। शाह अब्बास के युरोप से अच्छे संबंध थे। उसके शासन काल में ही इस्फहान की आबादी छह लाख थी। उसने शीराज, तबरेज आदि प्राचीन शहरों को भी आधुनिक बनाया। वह गैर मुस्लिमों के प्रति भी उदार थे। शाह अब्बास के बाद दूसरा कोई महान शासक इस वंश में प्रसिद्ध नहीं हुआ १७२५ ईस्वी के बाद सफावी वंश का पतन शुरू हो गया और तुर्की-रूसी विद्रोहों ने इसे कमजोर कर दिया।
Friday, September 7, 2007
शाब्बाश ! वाह, शाह अब्बास
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 12:48 AM
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4 कमेंट्स:
शाब्बाश। लिखते रहो....
"घिसते घिसते यह शाबाश हो गया। "
भाषाई घिसाई बहुत बढ़िया चीज है. जैसे अठन्नी घिस कर चवन्नी बन जाये!
भैया अब तो चवन्नी की व्युत्पत्ति और विकास पर पोस्ट लिख ही डालो!
अर्थसंकोच,अर्थविस्तार और मुखसुख से हुए परिवर्तन शब्द का कुल-गोत्र-संस्कार-प्रवाह सब कुछ अपने में समेटे होते हैं .
दो दिन के बाद आपके चिट्ठे पर आया और दोनों लेख एक दम पढ गया -- शास्त्री जे सी फिलिप
जिस तरह से हिन्दुस्तान की आजादी के लिये करोडों लोगों को लडना पडा था, उसी तरह अब हिन्दी के कल्याण के लिये भी एक देशव्यापी राजभाषा आंदोलन किये बिना हिन्दी को उसका स्थान नहीं मिलेगा.
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