Monday, September 10, 2007

रंगमहल के दस दरवाजे ...

हिन्दी के द्वार , अग्रेजी के डोर और फारसी के दर शब्द मूलतः एक ही परिवार के सदस्य हैं। इन तमाम शब्दों के लिए संस्कृत का शब्द है द्वार्इसका अर्थ है फाटक – दरवाजा,उपाय या तरकीब । हिन्दी में आमतौर पर बोले जाने वाले द्वारा शब्द ( इसके द्वारा, उसके द्वारा ) में भी उपाय वाला भाव ही है। द्वार् से ही द्वारम् भी बना है जिसके मायने है तोरण, प्रवेशद्वार, घुसना, मार्ग वगैरह। इसके अलावा शरीर के छिद्र ( आंख, कान, नाक वगैरह ) भी द्वार कहलाते है इसीलिए मानव शरीर को दशद्वार की उपमा दी गई है। मध्यकाल में सूफी कवियों ने भी आत्मा परमात्मा के संदर्भ में देह को रंगमहल की उपमा देकर इसके दस दरवाजों की बात कही है। गुजरात के पश्चिमी छोर पर स्थित कृष्ण की राजधानी के द्वारवती, द्वारावती या द्वारका जैसे नाम भी समुद्री रास्ते से भारत में प्रवेश वाले भाव की वजह से ही ऱखे गए है। प्राचीन उल्लेखों के अनुसार इस नगर में प्रवेश के भी कई द्वार थे इसलिए इसे द्वारवती कहा गया।
इंडो-यूरोपीय भाषा परिवार में द्वार शब्द के लिए मूल धातु dhwer या dhwor है। अब संस्कृत के द्वार (dwaar) शब्द से इसकी समानता पर गौर करें। ओल्ड इंग्लिश में इसके लिए दुरा शब्द है तो पोस्ट जर्मेनिक में दुर। ग्रीक में इसे थुरा तो रशियन में द्वेर ,स्लोवानी में दुरी, चेक में द्वेरी और पोलिश में द्रेज्वी कहते हैं। इसी क्रम में आता है अंग्रेजी का डोर
उर्दू में भी फाटक के लिए दरवाज़ा शब्द आम है और हिन्दी में भी खूब इस्तेमाल किया जाता है। दरअसल प्राचीन ईरान की भाषा अवेस्ता और वेदों के भाषा मे काफी समानता है। अवेस्ता में भी द्वारम् शब्द ही चलन में था जिसने पुरानी फारसी में द्वाराया की शक्ल ले ली और फारसी तक आते आते बन गया दरः जिसका मतलब है दो पहाड़ों के बीच का रास्ता। संस्कृत के द्वारम् का अर्थ रास्ता भी है। इसी से निकला है दर्रा या दर लफ्ज के मायने भी यही हैं। बीच का रास्ता वाली विशेषता पर गौर करे। फारसी में एक लफ्ज है सफदर पर जिसके मायने हैं शूरवीर, यौद्धा, महारथी आदि। यह भी बना है दर से ही । दर शब्द के मद्देनज़र इसका भाव हुआ सेना की पंक्ति को चीरता हुआ आगे बढ़ जाने वाला। सेना की बीच से रास्ता बना लेने वाला अर्थात सफदर। फारसी के दरगाह या दरबान और हिन्दी के द्वारपाल, द्वारनायक अथवा द्वाराधीश जैसे शब्द इससे ही बने हैं। दर शब्द से हिन्दी में कई मुहावरे जन्में हैं मसलन दर दर की ठोकरें खाना, दरवाज़े पर नाक रगड़ना, दरवाज़ा बंद होना, दरवाज़ा खुलना आदि।

6 कमेंट्स:

बसंत आर्य said...

बहुत बढिया चल रहे ऐ.

अभय तिवारी said...

शानदार..

Udan Tashtari said...

सही है अजित भाई. जारी रहें.

बोधिसत्व said...

अजित भाई आप लगातार हैं और नित नूतन हैं। मैं पढ़ रहा हूँ पर टिप्पणी करने के रह गया हूँ। जायसी के शब्दों में-
हौं पंडितन केर पछलगा।
आप के पीछे हूँ। मौन मुखर जैसा भी हूँ, हूँ।
लगे रहें।

Saurabh said...

Aapke abhi tak ke lekhon mein yah lekh sabse shaandaar hai. Aapke hi shabdon mein: Shaabbash

स्वप्नदर्शी said...

बहुत अच्छा , इसी बहाने सफ्दर के मायने पत चले. ननिताल मे भी सफ्दर की याद मे हर साल नुक्कड नाटक होते है.

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