Thursday, September 20, 2007

विरही ब्लॉगर, नाहक दुंद मचाय रे....

बीते चंद रोज़ से ब्लाग जगत में टिप्पणी ( प्रकारांतर से खुद के लिखे की प्रशंसा ) को लेकर काफी कुछ पढ़ने को मिल रहा है। सार यही कि टिप्पणी के लिए सभी व्याकुल हैं। ज़ाहिर है व्याकुलता उसी चीज़ के लिए होती है जो दुर्लभ हो। ये महत्वपूर्ण शिक्षा ( या तथ्य ) पूरे भारत में नर्सरी पाठ्यक्रम से ही शामिल कर देनी चाहिए कि प्रशंसा सुनने के प्रबल आकांक्षी भारतीयजन प्रशंसा में कंजूस होते हैं । प्रशंसा की आकांक्षा इतनी प्रबल होती है कि हम खुद ही महत्वपूर्ण तथ्यों की स्थापना कर लेते हैं मसलन देश के हर शहर में कोई न कोई ऐसी बात ज़रूर है जो यह स्थापित करती है कि वह शहर ऐशिया में फलां मामले में अव्वल है, ( चाहे देश में ही उसके मुकाबले का तथ्य निकल आए )।
बहरहाल , टिप्पणीरानी का विरह झेलनेवाले ब्लागरों के लिए स्थिति जोग-बिजोग और आत्मा-परमात्मा के मिलन जैसी हो गई है-

बालम आवो हमारे गेह रे ।
तुम बिन दुखिया देह रे ।।


विचित्र स्थिति है । ब्लागिंग के चक्कर में पहले ही दिन-रात चौपट हो चुके हैं। अब चाह बढ़ चुकी है मगर एक झलक दिखला कर हमारी जीवनी शक्ति ही लुका-छिपी पर उतर आई है। उतर क्या आई है अन्तर्ध्यान ही हो गई है। ब्लॉगपथ के साधु को भला यह स्थिति क्यो सुहाएगी ? उसे तो हर कदम पर उम्मीद थी कि दर्शन होंगे पर नहीं हो रहे? ठगिनी , दूसरों के धाम पर नैन मटका रही है इधर क्या कमी है ? जीवन नष्ट हुआ , घरवाले नाराज़ है। कुछ देर तो आ ताकि उन्हें भी बता सकें और लाज रह सके।

है कोई ऐसा पर उपकारी , पिव सौं कहे सुनाय रे ।
अब तो बेहाल कबीर भयो है, बिन देखे जिव जाय रे ।।


कभी-कभी दूसरों के ब्लाग पढ़कर ऐसी अनुभूति भी होती है कि -

जाग पियारी , अब का सोवै ।
रैन गई , दिन काहे को खोवै ।।
जिन जागा तिन मानिक पावा ।
तैं बौरीं सब सोय गंवाया ।।

पर क्या किया जा सकता है ? रात दिन के मानी ये तो नहीं कि हमें उससे मिलने का स्मरण नही, या यत्न नही। पर किस समय उधर नज़र चली गई और हम तब क्या कर रहे थे जो हम पर नहीं गई, यही सोचते रह जाते हैं । ‘अरे मन धीरज काहे न धरे’। कभी – कभी लगता है कि गगन दमामा गूंजेगा और सुनाई पड़ेगा-

मोको कहां ढूंढे रे बंदे, मैं तो तेरे पास में .....
कहे कबीर सुनो भई साधो , सब स्वांसों की स्वास में।

छोड़िये चक्कर। जिन्हें ब्लागरोल में सहेजा है उन्हें दिल में भी बिठाइये। कभी – कभी फुनियाइये-बतियाइये। इस बीच दुनिया को भी देखिये । सार-सार सब लीजिये, थोथे को पड़ा रहने दें। ब्लागिंग का मतलब टिप्प्णी ही पाना नहीं बल्कि दुनिया से जुड़ना है।
धीरज, धरम , मित्र, अरु नारी , आपद काल परखिये चारी ( कृपया नारियों का अपमान करने का आरोप न लगाया जाए। बाबा की पंक्तियां धैर्य रखने की प्रेरणा देने के उद्धेश्य से ही लिखी हैं , और कुछ मंतव्य नहीं। )

9 कमेंट्स:

काकेश said...

धन्यवाद इस आलेख के लिये.

Udan Tashtari said...

ब्लागरोल देख लिया आपका. :)

आलेख भी अच्छा लगा.

टिप्पणी आ भी गई आपके द्वारे. :)

ऐसे ही लिखते रहें और सार्थक विमर्श में हिस्सा लेते रहें.

अनिल रघुराज said...

ब्लॉगिंग का मतलब दुनिया से जुड़ना है। सही कहा। टिप्पणियां वगैरह तो बाई-प्रोडक्ट हैं। फिर भी आज के जमाने में मार्केटिंग की अपनी अहमियत है। आप बहुमूल्य चीज लेकर टहलते रहिए। जब तक उसे मार्केट नहीं करेंगे, लोग उसके बारे में कैसे जानेंगे?

mamta said...

टिप्पणी और ब्लॉगिंग का चोली -दामन का साथ है। :)
मिले तो :) और ना मिले तो :(
पर जैसा की आपने कहा कि ब्लॉगिंग का मतलब दुनिया से जुड़ना है तो हम इसे बिल्कुल सही समझते है।

Neelima said...

अजित जी आप भी चल पढे टिप्पणी महिमा बखान मार्ग पर ?

ALOK PURANIK said...

जल्दी ही मैं कमेंट्स डाट काम खोल रहा हूं। कमेंट के साइज के हिसाब से चार्ज करुंगा। पर कंपटीशन समीरलाल जी से है, फोकटी में इतना किये दे रहे हैं कि हमरे को कोई पूछ ही नहीं ना रहा है।

Sanjeet Tripathi said...

बहुत सही लिखा आपने कि ब्लॉगिंग का मातलब टिप्पणी ही पाना नहीं बल्कि दुनिया से जुड़ना है!


ब्लॉगरोल में जगह देकर आपने मेरी इज़्ज़त बढ़ाई इसलिए मैं आभारी हूं!

सागर नाहर said...

आज पहली बार आये पर आपका लेखन अच्छा लगा, अब कल सारे पुराने लेख पढ़ने पड़ेंगे।
दुनिया से जुड़ने वाली बात से मैं भी सहमत हूँ, टिप्प्णी की बात दूसरे नंबर पर रही, कितने ही ऐसे रिश्ते बन गये हैं लोगों से कि एक दिन बात ना करें तो खाली खाली लगता है।
www.nahar.wordpress.com

manish joshi said...

ऐसा होता है जब लिखने की इच्छा नहीं होती तो लेख मैनेजमेंट होता है। लेख मैनेजमेंट मतलब दिमाग में जो भी है उसे जैसे-तैसे मैनेज कर के लिख दिया जाए। खैर होता है लेकिन जम गया मामला।

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