फलसफा या फिलॉसॉफी की रिश्तेदारी सूफी शब्द से भी गहराई से जुड़ती है । जानेंगे अगले पड़ाव में ।
Saturday, September 29, 2007
ज्ञानमार्ग का दर्शन
'फलसफा प्यार का तुम क्या जानों....' किसी हिन्दी फिल्म की इस पंक्ति में फलसफा शब्द का बेहद खूबसूरत प्रयोग हुआ है। फलसफा या
अंग्रेजी का फिलॉसॉफी शब्द हिन्दी में प्रचलित दर्शन का पर्यायवाची है । दर्शन यानी देखना क्रिया संस्कृत की दृश् धातु से निकली है। अर्थ इसका भी देखना ही है मगर थोड़ी गहरी नज़र से। फिलॉसॉफी की उत्पत्ति ग्रीक philosophia से हुई है जिसका मतलब है ज्ञानमार्ग अथवा ज्ञान की लगन। ग्रीक से यह गया लैटिन में और फिर पुरानी फ्रेंच में filosofie बनकर नमूदार हुआ और फिर अंग्रेजी में इसका रूप philosophy . यह दो लफ्जों के मेल से बना है- philo यानी प्रेमपूर्ण और sophis यानी ज्ञान, प्रज्ञा आदि। उर्दू – फारसी के ज़रिये हिन्दी में भी समझा जाने वाला फ़लसफ़ा शब्द मूलतः अरबी का है। यह माना जाता है कि अरबी में इस शब्द की आमद ग्रीक से ही हुई है। अरब में जब ग्रीक फिलॉसॉफिकल साहित्य की तर्जुमानी होने लगी तभी इस शब्द ने आकार लिया ।
दर्शन में दृष्टिपात करने के साथ-साथ मन से दृष्टिगोचर करना, सीखना , जानना और समझना जैसे भाव हैं। इसमें किसी भी पार्थिव या अपार्थिव वस्तु अथवा विषय को अंतर्ज्ञान ( अन्तर्दृष्टि ) से देखना - परखना अथवा दिव्यानुभूति रखना आता है। लोगों को रास्ता दिखलाना, ज्ञानबोध कराना, सिद्ध करना बतलाना, साक्षी बनना और साक्षात्कार कराना आदि सब बातें दर्शन के दायरे में आती हैं। कहने का तात्पर्य यह कि प्राचीन काल से जो भी जगत मे ज्ञान की परिधि में गूढ़ है, रहस्य है उसे समझने का प्रयास दर्शन है। डॉ इन्द्रचंद्र शास्त्री के शब्दों में कहें तो रहस्य का साक्षात्कार। हमारे यहां आस्तिक और नास्तिक दोनों दर्शन हैं। जैन दर्शन, बौद्ध दर्शन और चार्वाक दर्शन नास्तिक दर्शन की श्रेणी में आते हैं क्योंकि ये वेदों को प्रमाण नहीं मानते । जबकि वेदों को प्रमाण मानने वाले दर्शन आस्तिक दर्शन कहलाते हैं।
वैदिक साहित्य संहिता, ब्राह्मण, आरण्यक और उपनिषदों में है और ये ही दर्शन के मूल स्रोत हैं। दर्शन छह प्रकार के बताए गए हैं-(1) न्याय दर्शन। इसमें तर्क प्रणाली का सहारा लिया जाता है। इसे सामने लाने वाले महर्षि गौतम हैं। (2) वैशेषिक दर्शन। इसमें पदार्थों और द्रव्यों की विवेचना है। इसके प्रणेता कणाद ऋषि हैं। (3)सांख्य दर्शन। इसमें निरीश्वरवाद प्रमुख है। प्रणेता हैं कपिल मुनि। (4) योग दर्शन। यह योगविद्या द्वारा मोक्ष की पैरवी करता है। इसके प्रवर्तक हैं पतंजलि। (5) पूर्व मीमांसा। कर्मकांड की व्याख्या करने वाला दर्शन। जैमिनी ने की विवेचना। (6) उत्तर मीमांसा। जीव और ब्रह्म की एकता को स्थापित क रने वाला दर्शन। इसके प्रतिपादक थे महर्षि व्यास।
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 3:01 AM
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3 कमेंट्स:
सही है.
अगले पड़ाव का इंतजार है.
अच्छा समझाया है आपने। साधुवाद।
अच्छा समझाया है आपने।साधुवाद।
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