Tuesday, December 29, 2009

कँवर साब का कुँआरापन

girl-child
कम् धातु में निहित स्नेह और अनुराग जैसे भावों के बावजूद इन्सान अपनी ही संतान यानी कुमार/कुमारी में फर्क करने लगा

संबंधित कड़ी-जवानी दीवानी से युवा-तुर्क तक

बिन ब्याहे युवक या युवती के लिए कुँआरा/कुँआरी शब्द प्रचलित हैं। एक खास आयु तक विवाह संयोग न होने से ये विशेषण विवाहोत्सुक या विवाह-योग्य पुरुष पात्रों के लिए जहां सामाजिक परिहास का विषय बन जाते हैं वहीं कन्या के लिए यह अनुभव प्रताड़ना से कम नहीं होता। इन शब्दों के मूल में दरअसल कुमार या कुमारी शब्द हैं और प्रायः समूचे भारत में कमोबेश बालक या बालिका के नाम के पीछे ये विशेषण लगाने का रिवाज है। राजघरानों संतानों के लिए राजकुमार या राजकुमारी शब्द इसी मूल से उपजे हैं। इनके देशज रूप हैं राजकुँवर, राजकुँअर, राजकुँअरी या राजकुँवरी आदि। क्षत्रियों या पूर्व सामन्तों में खुद को कुँवर साहब, कुँवरजी आदि कहलाने की परिपाटी है। इसका एक रूप कंवर साब भी है।  इसके मूल में सामन्ती ठसक ज्यादा है। महिलाओं के लिए कुँवरानी कहलाने का चलन है। पंजाब में लड़की के नाम के साथ कौर जुड़ा होता है जो इसी कुमारी का अपभ्रंश है।
कुमार/कुमारी शब्दों का जन्म हुआ है संस्कृत की कम् धातु से जिसमें लालसा, प्रेम, अनुरक्ति का भाव है। इस धातु की अर्थवत्ता बहुत व्यापक है। कम् से बने कुमार शब्द का अर्थ है पांच वर्ष से कम आयु का बालक, पुत्र अथवा युवा। इसका अर्थ राजकुमार अथवा युवराज भी है। मोनियर विलियम्स के संस्कृत इंग्लिश कोश के अनुसार अग्नि, तोता और सिन्धु नद का भी नाम भी कुमार है। बच्चों की देखरेख करनेवाले को कुमारपालन कहते हैं। कुंअर या कुंआरा की व्युत्पत्ति हुई है कुमारकः से जिसका अर्थ युवा या बालक है। इसी तरह कुमारी शब्द बना है कुमारिका से। संस्कृत ग्रंथों में दस से बारह वर्ष के बीच की आयु वाली कन्या कुमारी कहलाती है। स्मृतियों में इसका और सूक्ष्म वर्गीकरण है यानी आठ वर्षीय कन्या गौरी है और दस वर्षीया रोहिणी तथा बारह वर्ष की कन्या कुमारी कहलाती है।– अष्टवर्षा भवेद् गौरी दशवर्षा च  रोहिणी। सम्प्राप्ते द्वादशे वर्षे कुमारीत्यभिधीयते।। लक्षणों के आधार पर सोलह वर्ष की वय तक कन्या को कुमारी कहा जा सकता है। वह लड़की कुमारी कहलाती है जो अविवाहिता है।
म् धातु में निहित लालसा, प्रेम और अनुराग जैसे भावों को संतति के प्रति वात्सल्य के अर्थ में ही देखना चाहिए। संतान के kidsप्रति सहज प्रेम और अनुराग होता है इसलिए कम् धातु से बने कुमार शब्द में संतति का बोध है। यूं काम, कामना, कामिनी, कामदेव जैसे शब्द भी कम् धातु से ही जन्मे हैं। कामः का अर्थ पदार्थ की इच्छा करना, मन में अनुराग या विषय-भोग की कामना जागना है। काम का अर्थ अग्नि भी है। इच्छाएं अग्नि के समान ही हैं जो तेजी से प्रसारित करती हैं और मन में अशान्ति का दाह उत्पन्न करती हैं। व्यापक अर्थ में काम शब्द के दायरे में यौन क्रिड़ा, लम्पटता, रंगरेली, प्रणयोन्माद, उद्दाम आसक्ति जैसे भाव आ जाते हैं। अनियंत्रित सुखोपभोग का लालची व्यक्ति, उद्दाम वासना से वशीभूत व्यक्ति को कामुक, कामातुर कहा जाता है क्योंकि उसके चरित्र में व्यभिचार के बीज होते हैं। कुबेर का एक नाम कामेश भी है। बच्चों के रोगोपचार की एक शाखा कुमारतंत्र कहलाती है।
दुर्गा, पार्वती जैसी देवियों का नाम भी कुमारी है। पार्वती को कन्याकुमारी भी कहा जाता है। भारत का दक्षिणी छोर कुमारी अन्तरीप कहलाता है जो पार्वती के नाम से ही है। हिन्दुओं में कुमारिका को बहुत सम्मान प्राप्त है। नवरात्र में कुमारी पूजन का बड़ा महत्व है। प्राचीनकाल में कुमारी संबंधी मान्यताओं में बहुत विकार आया था और दक्षिण भारत में देवदासी प्रथा प्रचलित थी। आमतौर पर कौमार्य शब्द का रिश्ता कन्या से जोड़ा जाता है। कौमार्य एक दशा  है जिसका अर्थ है कुमार होने की अवस्था। शिष्टाचार के अंतर्गत विवाह बंधन में बंधने के बाद कौमार्य अवस्था को भंग माना जाता है। कौमार्य अवस्था में ही काम-सम्बंध बनाना भी कौमार्य भंग की श्रेणी में आता है।  कम धातु में निहित स्नेह और अनुराग जैसे भावों के बावजूद इन्सान अपनी ही संतान यानी कुमार/कुमारी में फर्क करने लगा और कुमारों के आगे कुमारियों का अस्तित्व दांव पर लग गया। कन्या भ्रूण हत्या की वृत्ति मनुष्य के नाम पर कलंक है। कुमार और कुमारिकाओं में भेदभाव अगर जारी रहा तो वह दिन दूर नहीं जब सचमुच पांच साल का बच्चा ही नहीं, पचास साल का बुजुर्ग भी कुमार कहलाने को अभिशप्त होगा।

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15 कमेंट्स:

Baljit Basi said...

आलेख के अखीर में कुछ गड़बड़ है, इसको दरुस्त करें.

अजित वडनेरकर said...

@बलजीत बासी
शुक्रिया साहेब। ब्लॉगर में इन दिनों बहुत दिक्कत चल रही हैं। हमने ड्राफ्ट का बटन दबाया और वह पब्लिश हो गई। सोचा था कि पहले खाना गर्म कर लें, फिर पढ़ कर पब्लिश कर देंगे। लौटे तो देखा आपकी टिप्पणी मुंह चिढ़ा रही थी:(
कई लोगों को हमारा ब्लाग आईई-7 पर नहीं दिखता। कई साथियों को टिप्पणी करने में दिक्कत आती है क्योंकि यह बक्सा उन्हें पहचान के आप्शन ही नहीं बताता। मुझे खुद यह आईई-7 में नहीं दिखता अलबत्ता सामान्य एक्सप्लोरर में दिखता है पर तब भी नोटिस मिलते रहते हैं।
मामला इतना मुश्किल नहीं है। तोड़ा तो वक्त का ही है। इतना समय नहीं कि दीगर चीज़ों पर ध्यान दिया जाए।
फिर भी आपका शुक्रिया। क्या इसे ही टिप्पणी मान लें?

Baljit Basi said...

अपने फिर ध्यान नहीं दिया, यह शब्द दुहराए गए हैं :

दुर्गा, पार्वती जैसी देवियों का नाम भी कुमारी है। पार्वती को कन्याकुमारी भी कहा जाता है। भारत का दक्षिणी छोर कुमारी अन्तरीप कहलाता है जो पार्वती के नाम से ही है। हिन्दुओं में कुमारिका को बहुत सम्मान प्राप्त है। नवरात्र में कुमारी पूजन का बड़ा महत्व है। प्राचीनकाल में कुमारी संबंधी मान्यताओं में बहुत विकार आया था और दक्षिण भारत में देवदासी प्रथा प्रचलित थी। आमतौर पर कौमार्य शब्द का रिश्ता कन्या से जोड़ा जाता है।

बात तो इतनी बड़ी नहीं, पर सोचता हूँ की कुछ छपने से रह ना गया हो?

Baljit Basi said...

और पंजाब में हर लड़की के नाम के साथ नहीं केवल सभी सिख लड़कियों और स्त्रियों के नाम के पीछे कौर लगता है. मतलब हिन्दू लड़कियों के नाम के पीछे नहीं . सभी सिख परुषों के नाम के पीछे सिंह लगता है. अब मेरी बस हो गई . आज इतना ही!

Udan Tashtari said...

यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि आप हिंदी में सार्थक लेखन कर रहे हैं।

हिन्दी के प्रसार एवं प्रचार में आपका योगदान सराहनीय है.

मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं.

नववर्ष में संकल्प लें कि आप नए लोगों को जोड़ेंगे एवं पुरानों को प्रोत्साहित करेंगे - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।

निवेदन है कि नए लोगों को जोड़ें एवं पुरानों को प्रोत्साहित करें - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।

वर्ष २०१० मे हर माह एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाएँ और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।

आपका साधुवाद!!

नववर्ष की अनेक शुभकामनाएँ!

समीर लाल
उड़न तश्तरी

विवेक रस्तोगी said...

आज कम धातु के बारे में अच्छी चीजें सीखने को मिलीं।

मनोज कुमार said...

बहुत अच्छी जानकारी। बहुत-बहुत धन्यवाद ।
आपको नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।

abcd said...

बहुत खूब ...अजित भईय्या को नए साल की ढेरों शुभकामनाएं..
आप को आज कल दैनिक भास्कर में भी पढ़ रहे है.....

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

हमारे यहाँ खासकर क्षत्रियो में दामाद को कुंवर साहब कहते है .

sanjay vyas said...

@baljeet ji,
'kaur' with the names of sikh girls and women may be true to the case of punjab, but in jodhpur it is prevalently used as a suffix with the names of women belonging to a particular brahmin caste.please throw some light on why it is the case specific to only sikh community in punjab.

कार्तिकेय मिश्र (Kartikeya Mishra) said...

सुन्दर जानकारी के लिये आभार..

एक समस्या है.. जिन बच्चों के नाम में माता-पिता कुमार लगा देते हैं, क्या विवाहोपरांत यह कुमार हटा देना चाहिये?

Baljit Basi said...

Sanjay Vyas ji,
I quote relevent passeges from authoritative Sikh sources though I slightly differ from them:

Kaur, in modern day Punjabi means "princess" and is the name widely used as the second name by female Sikhs. This custom was first introduced in 1699 by Guru Gobind Singh, the tenth Sikh Guru when he administered Amrit (baptism) to both males and female Sikhs. All female Sikhs were asked to use the name Kaur after their forename and males were to use the name Singh (lion). This custom further confirmed the equality of both genders as was the tradition set by the founder of Sikhism, Guru Nanak.

However, the original meaning of "Kaur" was "Prince" as in Rajasthan where the word "Kuwar" means prince. In Rajasthan, 'Kuwar' (from Sanskrit Kumāra) is commonly used to refer to a prince, and Kuwari (sanskrit Kumāri) or Kunari is used for a princess (for example see Aleena Kunari). However, the word Kuwari in Punjabi means "an unmarried, single girl". Guru Gobind Singh's intention was for the name to be used by both married and unmarried Sikh females, so he gave the name Kaur, which was taken from Sanskrit (Kumāri), and then converted it into Kaur.

Kaur provides Sikh women with a status equal to all men. This was also intended to reduce the prejudice created by caste-typing based on the family name. Prejudice based on caste was still rampant during Guru Gobind's time (17th century). This particularly affected women who were expected to take their husband's family name upon marriage.

Some Sikhs today have chosen to retain their traditional caste-system based family names in addition to the suffix Kaur or Singh. This appears to defeat part of the purpose of Guru Gobind's mission in requiring a standardised naming system independent of caste or family background.

It is encouraged for Sikhs to follow the tradition set by the tenth Guru in abolishing the caste system and to use the surnames 'Singh' and 'Kaur', or the middle name 'Singh' and 'Kaur'."

I hope this satisfies you.

अजित वडनेरकर said...

@कार्तिकेय
कुमार तो अब परम्परा बन गई है। वैसे नए दौर में बच्चे कुमार या कुमारी लगाना पसंद नहीं करते।
गौर करें, कि कुमार में युवराज का भी भाव है। हर दम्पती के लिए उसकी संतान युवराज या राजकुमारी से कम नहीं होती। सो वैवाहिक स्थिति से नाम में कोई अंतर नहीं आता।

सफर का उद्देश्य तो शब्दों की रोचक व्युत्पत्तियां बताना है। शब्दों के प्रयोग तो अब रूढ़ हो चुके हैं।

सोनू said...

यह संज्ञा दिए हुए संस्कृत वाक्य में नहीं है--

अलका संज्ञा स्त्री० [सं०] १. कुबेर की पुरी। यक्षों की पुरी। उ०- हलका छुटत सोर अलका परत हैं।-गंग०, पृ० १०५।२. आठ से दस वर्ष उम्र तक की लड़की [को०]।

अजित वडनेरकर said...

@सोनू
भाई प्रस्तुत श्लोक में यह संज्ञा क्यों होनी चाहिए थी? अलबत्ता इस शृंखला में अलका का उल्लेख कर आपने शब्दों के कारवां में रौनक ला दी है। बने रहे साथ।

नीचे दिया गया बक्सा प्रयोग करें हिन्दी में टाइप करने के लिए

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