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Wednesday, September 9, 2009
अंगोछा, गमछा, गमोसा
रो टी, कपड़ा और मकान की मुहावरेदार अर्थवत्ता का मैं कायल हूं। समूचा जीवन इन तीन शब्दों मे समा गया है हालांकि ये तीनों ही शब्द दार्शनिक नजरिये से जीवन के भौतिक स्तर को छूते हैं। जीवन का दूसरा आयाम आध्यात्मिकता भी है। भौतिकता का स्पर्श किए बिना आध्यात्मिकता भी बेमानी है। रोटी, कपड़ा और मकान के न जाने कितने पर्याय भाषा के समुद्र में मौजूद हैं। मसलन रोटी को ही लें तो डबल रोटी, रोटड़ा, फुलका, चपाती, बाटी, बाफला, बन, रस, टोस्ट, बिस्कुट, पूरी, परांठा और न जाने क्या क्या पदार्थ इसमें आ जाएंगे। मकान को देखें तो निवास, कुटीर, कुटिया, गुफा, कंदरा, खोह, झोपड़ी, चाल, केबिन, हॉल, कमरा जैसे आश्रय के विभिन्न रूप सामने आते हैं। इसी तरह जब कपड़े की बात चलती है तो ओढ़ने-पहनने-बिछाने से जुड़ी शब्दावली में अनेक शब्दों की कतार नजर आती है मसलन रजाई, तकिया, गद्दा, अंगरखा, घाघरा, पेंट, शर्ट, कमीज़, धोती, बुशर्ट, अंगवस्त्रम् आदि। इसी कड़ी में आता है अंगोछा।
अंगोछा शब्द का अभिप्राय ऐसे कपड़े से है जिससे शरीर को पोछा जाए। इसे तौलिया भी कहा जा सकता है। लेकिन अंगोछा के मूल में बदन को ढकने का संस्कार छिपा है और अंगोछा के विविध उपयोगों में एक उपयोग शरीर को पोछना-सुखाना भी है वर्ना अंगोछा शरीर पर लपेटा भी जाता है, सिर पर बांधा भी जाता है। अंगोछे को कंधे पर भी डाला जाता है। ज़रूरत पड़ने पर उसे बिछाया भी जाता है और ओढ़ा भी जाता है। अंगोछा बना है संस्कृत के अंगवस्त्रम् शब्द से। अंगवस्त्रम् प्राचीन भारतीय संस्कृति का सबसे महत्वपूर्ण वस्त्रविधान है जिसका प्रचलन विविध रूपों में आज भी है। यह अंग+वस्त्रम् से बना है अर्थात शरीर, काया पर धारण किया जाने वाला वस्त्र। वस्त्र शब्द के मूल में वस् धातु है जिसका मतलब होता है रहना, बसना। वास, निवास, आवास जैसे शब्द इसी वस् धातु से निकले हैं। वस से ही बसना, बसाहट जैसे शब्द भी बने है। रिहाइश के लिए बास या बासा जैसे शब्दों का रिश्ता भी इससे है। परिधान के अर्थ में वस् धातु का वस्त्र में भाव दिलचस्प है। अर्थात जिसमें शरीर निवास करे। मकान से पहले हमारा तन वस्त्रों में बसता है। वस् धातु की छाप अरबी लिबास में भी नजर आती है।
प्राचीन अंगवस्त्रम् धारण करनेवाले की हैसियत के मुताबिक रेशमी और सूती होते थे। इनकी लम्बाई डेढ़ से ढाई गज तक होती है। प्रायः सूती अंगवस्त्रम् का प्रचलन रहा है। अंगवस्त्रम् से अंगोछा का रूपांतरण कुछ इस क्रम में हुआ। अंगवस्त्रम् (angvastram) > अंगवस्सम > अंगच्छम > अंगोछअ > अंगोछा। भारत की कई भाषाओ में अंगवस्त्रम् या इससे बने रूप प्रचलित हैं। दक्षिण की चारों भाषाओं अर्थात मलयालम, तमिल, तेलुगू और कन्नड़ में यह इसी रूप में बोला जाता है। मराठी में अंगोछा को अंगूचे के अलावा साफी और पंचा pancha भी कहा जाता है। पंचा द्रविड़ भाषा परिवार का शब्द है। तेलुगू में भी इसे पंचा और कन्नड़ में पंचे कहते हैं। मराठी का साफी शब्द दरअसल हिन्दी साफा safa का ही रूप है। हिन्दी में साफा उस कपड़े को कहते हैं जिससे पगड़ी बांधी जाती है। मगर मराठी के पंचा या साफी से सिर्फ शरीर पोछा जाता है या ढका जाता है। साफी/साफा अरबी के सूफ़ से बना है जिसमें श्वेत वस्त्र, सूती वस्त्र का भाव है। इसका गुजराती रूप अंगूछो, सिन्धी रूप अगोचा है। हिन्दी के गमछा शब्द के मूल में भी अंगवस्त्रम् ही है। वैसे यह अंगोछा का वर्णविपर्यय है अर्थात अंगोछा में अं अनुस्वार ने म वर्ण का रूप ले लिया और गम्मछा होते हुए बन गया गमछा। असमी में गमछा का रूप गमोसा gamosa हो जाता है।
गमछा शब्द से कहीं ज्यादा शहरी परिवेश में अब टॉवेल या तौलिया शब्द का इस्तेमाल होता है। टॉवेल अंग्रेजी का शब्द है जबकि तौलिया हिन्दी का प्रतीत होता है, मगर यह भी विदेशी शब्द है। ये दोनों ही शब्द एक ही परिवार के हैं मगर हिन्दी में तौलिया अंग्रेजी से नहीं बल्कि पुर्तगाली से आया। टॉवेल और तौलिया जर्मनिक मूल के शब्द हैं। भाषाविज्ञानियो के मुताबिक प्राचीन जर्मनिक के थ्वाख्लिजॉ शब्द में वस्त्र का भाव था। इसका फ्रेंच में देशज रूप हुआ तोएल्ले जिससे अंग्रेजी का towel बना। इसका स्पैनिश रूप तोल्ला, इतालवी रूप तोवेग्लिया और पुर्तगाली रूप बना तोआला toalha बना। पुर्तगालियों के भारत आगमन के साथ चौदहवी-पंद्रहवी सदी में भारत में इस शब्द का आगमन हुआ और हिन्दी में यह तौलिया बन कर दाखिल हुआ। तौलिया का ही छोटा रूप है नैपकिन। यह शब्द भी अब खूब बोला जाता है जो हिन्दी में अंग्रेजी से आया है। यह बना है प्राचीन फ्रैंच के नैप्पे+किन nappe+kin से। नैप्पे का मतलब होता है मेजपोश जो बना है लैटिन के मैप्पे से जो मूल रूप से हिब्रू का शब्द है। अंग्रेजी के किन का मतलब है लघु, छोटा। इसतरह से नैपकिन का मतलब है हाथ पोछने का कपड़ा या रुमाल।
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प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 12:18 AM
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20 कमेंट्स:
अंगवस्त्रम् (angvastram) > अंगवस्सम > अंगच्छम > अंगोछअ > अंगोछा। मैने अभी अभी ढाई-तीन हज़ार वर्ष की इस शब्द-ध्वनि यात्रा को मात्र 5 सेकन्ड मे दोहरा कर देखा ।(मित्रों से अनुरोध-आप भी करके देखिये) अद्भुत !! यह अंगवस्त्रम ही अंगोछा या गमछा है । अर्थात हम सुबह फ्रेंच स्टाइल मे नैपकिन से मुह पोछते है ;फिर स्नान के बाद पुर्तगाली तरीके से तौलिये से देह पोछते हैं लेकिन धूप बारिश और अन्य समय हमारा यह अंगवस्त्रम या अंगोछा ही काम आता है। अजित भाई लेकिन एक गड़बड़ हो गई.. हमारे यहाँ कुछ लोग दिन भर घर मे तौलिया लपेटे घूमते हैं अब वे कहेंगे " तौलिया थोड़े ना लपेटा हूँ .. भाई यह तो पुर्तगाली ड्रेस है"
समय और स्थान का कितना अंतराल paar करके नित नए रूप धारण करने वाले ये शब्द जब अपने उत्पत्ति का मूल दिखलाते हैं तो अलग ही आनंद देते हैं. आपका बहुत आभार इस ब्लॉग के लिए जो निरंतर ज्ञानवर्धन ही करता है.
कमाल वाह !
कमाल बोले तो ज़बरदस्त कारीगरी.
वाह !
बहुत बेहतरीन रहा..हमारे यहाँ उप्र में अंगोछा कहा जाता है और जबलपुर में गमछा..विस्तार से जानकर अच्छा लगा.आपका आभार.
@शरद कोकास
भारतीय लोग विविध परिधानों के शौकीन हैं कोई ताज्जुब नहीं कि अंगोछा, तौलिया में घूमना कुछ के लिए मजबूरी और कुछ के लिए ये आराम की बात है।
भाषा विज्ञान में अर्थान्तर और ध्वन्यान्तर का बड़ा महत्व है।
मुझे तो लगता था तौलिया हिंदी का ही शब्द है . अंगोछा ही इस्तेमाल करते है ज्यादा लोग क्योकि मल्टी परपज है नाहो तो पोछो ,आराम करो तो पहनो , हवा लगे तो सर पर बांधो, बाज़ार गए थैला नहीं तो सौदा इसी में लपेट लो और न जाने कितने प्रयोग
कमाल वाह !
कमाल बोले तो ज़बरदस्त कारीगरी.
हमेशा की तरह ज्ञानवर्धक लेख!!
पंचा और साफ़ी,अंगोछा या गमछा बहुत कुछ साफ़ कर गया।दिमाग पर पडी धुंध भी साफ़ करता है।
बेहद रोचक ......
बहुत रोचक धन्यवाद्
बहुत बढिया जानकारी । कभी सोचा भी न था कि अंगोछा की जड़ अंगवस्त्र में छुपी है।
पर इसके फायदे साफे ही की तरह अनेक है। आधी उन्नीसवी शती जब तक धोती कुर्ता मुख्य पहनावा था। तब हर व्यकित साफा और अंगाोछा अवश्य धारण करता था। यह दोनों ओढने बिछााने, ,तकिया, सिर का धूप व वार से बचाव,रस्सी, तन ढकने के काम आते थे।
"ओढ़ने-पहनने-बिछाने से जुड़ी शब्दावली में अनेक शब्दों की कतार नजर आती है मसलन रजाई, तकिया, गद्दा, अंगरखा, घाघरा, पेंट, शर्ट, कमीज़, धोती, बुशर्ट, अंगवस्त्रम् आदि। इसी कड़ी में आता है अंगोछा।"
व्याख्या बहुत सधी हुई प्रस्तुत की है, आपने।
बधाई!
बहुत रोचक
रोचक तथा ज्ञानवर्धक शब्द विवेचना....के लिए आपका बहुत बहुत आभार...
अंगोछे से मुझे स्मरण हो आया कि भारतीयपह पहरावे धोती का उपयोग लोग कितने प्रकार से किया करते थे...पहनने ओढ़ने से लेकर कुएं से पानी खींचने तक में धोती प्रयोग में ले आते थे...
असमी का गमोसा रुच रहा है मुझे । शब्द-यात्रा कराने का आभार ।
कुछ नजर का धोखा है - मैं बार बार समोसा पढ़े जा रहा हूं!
शरद कोकास जी अपनी टिपण्णी में पश्चिम [यूरोप] का ज़िक्र ले आये तो याद आया कि मर्लिन मोनरो स्वयं अंगोछे यानि तौल्ये से अपना शरीर पोंछने का कष्ट नही करती थी?
पंचा तो इसे मेरे हाड़ोतियन दादाजी भी कहते थे। और 24 में से 20 घंटे इसे ही पहनते थे।
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