Sunday, February 21, 2010

आगे ख़ंदक, पीछे खाई

संबंधित कड़िया-1.3मिठास के कई रूप, खंड-कंद-कैंडी.2.उत्तराखंड से समरकंद तक [आश्रय-5]

खं दक शब्द हिन्दी में खूब प्रचलित है। आमतौर पर इसका अर्थ है खाई, गहराई, नहर या गढ़ा मगर मूलतः यह सैन्य शब्दावली का शब्द है। खंदक का मूलार्थ है सामरिक योजना के तहत फौजी ठिकाने या किले को बचाने के लिए उसके चारों और खोदी गई खाई या नहर जिसमें या तो पानी भर दिया जाता है ताकि शत्रु किले तक न पहुंच सके अथवा उथली खंदक में छुपकर सैनिक शत्रु पर वार करते हैं। हिन्दी में ख़दक़ शब्द बरास्ता फारसी, अरबी से आया है। भाषाविज्ञानियों के मुताबिक ख़दक़ शब्द मूलतः इंडो-इरानी भाषा परिवार का है। अरबी का ख़दक़ दरअसल फारसी के कंद का रूपांतर है जिसमें खाई, खुदाई, दरार का भाव है। इसके अलावा कंद में उत्कीर्णन, नक़्काशी का भी भाव है। इसकी रिश्तेदारी संस्कृत हिन्दी के खंड से है। ये सभी क्रियाएं आश्रय निर्माण से जुड़ी हैं जिसके मूल में है संस्कृत की खन् धातु। खंदक खोदना या खाई खोदना हिन्दी के प्रसिद्ध मुहावरे हैं जिसमें अपनी सुरक्षा और शत्रु को नुकसान पहुंचाने की योजना बनाने का भाव है। आगे कुआं, पीछे खाई मुहावरे में हर तरफ मुसीबत से घिरे रहने की बात उभरती है।
हिन्दी का खंड शब्द आया है संस्कृत के खण्डः से जिसका अर्थ है दरार, खाई, भाग, अंश, हिस्सा, अध्याय, समुच्चय, समूह आदि। इस खण्ड में ही आज भारत समेत दुनिया के कई इलाकों के आवासीय क्षेत्रों, प्रदेशों और नगरों के नाम छुपे हुए हैं। संस्कृत में एक धातु है खडः जिसका अर्थ होता है तोड़ना, आघात करना आदि। खण्ड् का भी यही अर्थ है। कुल मिलाकर प्राचीन ईरानी में कंद, कुड, कड, कथ आदि तमाम शब्द किला, कोट में रहनेवाली आबादी यानी दुर्गनगर की अर्थवत्ता ही रखते हैं। प्राचीन ईरानी, अवेस्ता और संस्कृत में उपस्थित इस खडः, खड या खण्ड की व्याप्ति आवासीय भू-भाग, हिस्सा, प्रभाग, खांड़ यानी गुड़ आदि के तौर पर है। क्षतिग्रस्त, ध्वस्त या प्राचीन इमारत के अवशेषों को खण्डहर कहने में अंश-अंश या टूट-फूट का भाव उजागर है। किसी बात का विरोध करना, गलत ठहराना खंडन कहलाता है क्योंकि ऐसा करने के लिए उस कथन को काटा जाता है। इसीलिए यह विरोध खंडन कहलाता है। खान या खाना शब्द में भी आश्रय  का बोध होता है क्योंकि इन शब्दों का निर्माण खन् धातु से हुआ है जिसका अर्थ है खोदना, तोड़ना, छेद बनाना आदि। खन् शब्द के मूल में खण्ड् ही है जो ध्वनिसाम्य से स्पष्ट हो रहा है। उज्बेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान आदि इलाकों में khaiकई शहरों के नामों के साथ कंद शब्द लगा मिलता है जैसे ताशकंद, समरकंद, यारकंद , पंजकंद आदि। ये सभी मूलतः खण्ड ही हैं।
खंड शब्द में निहित आश्रय का भाव इसे एक अन्य शब्द से जोड़ता है। हिन्दी में प्रचलित गंज शब्द का अर्थ होता है बाजार, ठिकाना या भंडार। इसका संस्कृत रूप है गञ्ज जिसमें खान, खदान, घर, निवास जैसे भाव शामिल हैं। गञ्ज शब्द की मूल धातु है गंज्। इसमें निहित गन् ध्वनि पर गौर करें। संस्कृत की एक धातु है खन् वर्ग में के बाद आता है । ध्यान रहे कि प्राचीनकाल में मनुष्य या तो कन्दराओं में रहता था या पर्णकुटीरों में। छप्पर से कुटिया बनाने के लिए भूमि में शहतीर गाड़ने पड़ते हैं जिसके लिए ज़मीन को कुरेदना, छेदना पड़ता है। यहा खुदाई का भाव है। खन् में यही खुदाई का भाव प्रमुख है। खाना khana शब्द इंडो-ईरानी परिवार और इंडो-यूरोपीय परिवार का है जिसमें आवास, निवास, आश्रय का भाव है। संस्कृत की खन् धातु से इसकी रिश्तेदारी है जिसमें खनन का भाव शामिल है। खनन के जरिये ही प्राचीन काल में पहाड़ो में आश्रय के रूप में प्रकोष्ठ बनाए। हिन्दी, उर्दू, तुर्की का खाना इसी से बना है। खाना शब्द का प्रयोग अब कोना, दफ्तर, भवन, प्रकोष्ठ, खेमा आदि कई अर्थों में होता है मगर भाव आश्रय का ही है।
स्पष्ट है कि अरबी का ख़दक़ शब्द मूलतः फारसी के कंद का रूपांतर है जिसकी रिश्तेदारी संस्कृत मूल के कई शब्दों से है और प्राकृतों और ईरानी परिवार की भाषाओं में इसका समानांतर विकास होता रहा जो गंज और गञ्ज से उजागर हो रहा है। ख़ंदक़ का एक अन्य रूप है खाई जो हिन्दी में प्रचलित है जिसका अर्थ भी किले, महल या फौजी पड़ाव के इर्द-गिर्द खोदी गई नहर से है जिसमें खतरे के वक्त पानी भर दिया जाता है। गहरी घाटी को भी खाई कहा जाता है। खाई के मूल में भी संस्कृत का खानि या खाति शब्द है। छुपकर वार करने के लिए ज़मीन में खोदे गए गढ़े को भी ख़ंदक़ या खाई कहते हैं। संस्कृत में खन् धातु से बना खात शब्द है जिसमें खोदना, खोखला करना, चीरना, फाड़ना जैसे भाव है। खाती शब्द का हिन्दी क्षेत्र की बढ़ई जाति से कोई रिश्ता नहीं है। खातिका शब्द से बना है खाई। चौड़े गहरे खड्डे को हिन्दी में खंति कहते है। बारिश में इनमें पानी भर जाता है। हिन्दी के खंद, खंदा जैसे शब्दों में खोदना, खोदनेवाला का भाव है।

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13 कमेंट्स:

स्वप्न मञ्जूषा said...

वाह !!
सही बताया आपने भी खंड, कंद, गंज की व्युत्पत्ति और अर्थ..
'कान्धार' भी क्या इसी श्रेणी में आएगा..?
बस एक बात आई मन में तो पूछ लिया है..

Smart Indian said...

नहीं अदा जी कंधार गंधार का तद्भव है.

Udan Tashtari said...

आभार इस ज्ञानसागर का....

Baljit Basi said...

हिमाचल का 'कोटखाई' और पंजाब का 'खाई फेमे की' नगर तो मैंने देखे हुए हैं, और भी कई हैं.
पंजाबी में खाई को खतान भी बोलते हैं खास तौर पर सड़कों के साथ साथ वाले.
छत की दो शहतीरिओं के बीच वाले हिस्से को 'खण' बोलते हैं.
पंजाबी में 'खड' का मतलब भी खाई होता है. खड आम शब्द है.

शरद कोकास said...

पुरातत्ववेत्ता को आपकी यह खुदाई वाली पोस्ट पसन्द आई । कहाँ कहाँ से उत्खनन कर आप यह जानकारी जुटाते हैं । हाँ लेकिन यह खुदाई ,खुदा की खुदाई से अलग है.. जनता इस बात का ध्यान रखे ।

शरद कोकास said...

अजित भाई..याद आया हमारे यहाँ पुरातत्व मे जो खन्दक खोदी जाती है उसे ' निखात ' कहते हैं ( अंग्रेजी मे trench) इसके उद्भव पर भी प्रकाश डालिये ।

उम्मतें said...

अजित भाई
ख़न्दक से मिलता जुलता एक लफ्ज़ है ख़द / ख़द्द जिसका मतलब है भूमि के भीतर दरार / गर्त और ... रुख़सार ! अब दोनों ही ठिकाने ...ज़ाहिर है इंसान यहां बसते हैं निगाहें वहां ! और भी ज्यादा बड़प्पन से काम लिया जाये तो कहिये धरती के रुखसारों पर इंसानों नें आसरे बनाये हैं !

Gyan Dutt Pandey said...

कभी सोचता था कि खन्दक का खुन्दक से कोई रिश्ता है। अगर है तो यह कहा जा सकता है कि ब्लॉगजगत बहुत खन्दकी है! :-)

किरण राजपुरोहित नितिला said...

badhiya !!
tabhi kai shahro ke naam sheoganj.kishnganj aadi hai.

निर्मला कपिला said...

ांअपके ग्यान के साथ साथ ग्यानदत्त जी की टिपनी बहुत अच्छी लगी। धन्यवाद्

शोभा said...

अलमारी के खानों (हिस्सों ) के बारे में क्या ख्याल है ? हमारे यहाँ इन खानों को खन भी बोलते है . इसके अलावा मकानों की मंजिलो को भी खन के नाम से बोला जाता है.

रंजना said...

सदैव की भांति अतिसुन्दर ज्ञानवर्धक शब्द विवेचना...

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

संस्कृत से ही शब्द निकले और अब संस्कृत ही एछिक हो गई

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